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Monday, November 6, 2023

कोशिशे बेकार होती जा रही हैं आज कल Salim Raza rewa

 कोशिशे बेकार होती जा रही हैं आज कल

मुश्किलें भरमार होती जा रही हैं आज कल

کوُششیں   بیکار ہوتی جا  رہی ہیں آج کل

مشکلیں۔ بھرمار ہوتو جا رہی ہیں آج کل

 चाहिए इनको हमेशा इक दवाई की ख़ुराक

ख़्वाहिशें बीमार होती जा रही हैं आज कल

چاہئے انکو ہمیشہ اِک دوائی کی خوراک

خواہشیں   بیمار ہوتی جا رہی ہیں آج کل

वो अदा-ए-दिल नशीं, क़ातिल नज़र हुस्न ओ हुनर

क़ाबिल-ए-इज़हार होती जा रही हैं आज कल

  وہ ادا  دِل نشیں قاتِل نظر حُسن وہ   ہُنَر

 قابِل اِظہار ہوتی جا رہی ہیں آج کل

   दौलत-ओ-शोहरत का लालच बढ़ गया है इस क़दर

ज़िंदगी आज़ार होती जा रही हैं आज कल

دولت و شُہرت کا لالچ بڈھ گیا ہے اس قدر

زندگی آزر ہوتی جا رہی ہے آج کل

ऐ 'रज़ा' कुछ लड़कियाँ जो घर की ज़ीनत थीं कभी

रौनक़-ए-बाज़ार होती जा रही हैं आज कल

اے رضاؔ کچھ لڑکیاں جو گھر کی زِینت تھیں کبھی 

رونقِ   بازار   ہوتی  جا  رہی   ہیں آج  کل

Monday, October 30, 2023

रुख़ से जो मेरे यार ने पर्दा हटा दिया

रुख़ से जो मेरे यार ने पर्दा हटा दिया   

महफ़िल में हुस्न वालों को पागल बना दिया
 
उसकी  हर एक अदा पे तो क़ुर्बान जाइए        
मौसम को जिसने छू के नशीला बना दिया
 
आई बाहर झूम के ख़ुश्बू बिखेरती 
ज़ुल्फें उड़ा के कौन सा जादू चला दिया 
 
महफ़िल में होश वाले भी मदहोश हो गए
ये क्या किया की सबको  दिवाना बना दिया

देखा जो उसने प्यार से बस इक नज़र 'रज़ा
दिल में हमारे प्यार का गुलशन खिला दिया
                     सलीम रज़ा रीवा
  _________________________ Nov-1
 

Wednesday, October 11, 2023

'रज़ा' जी आप तो मिलकर उदास बैठे हैं - SALIM RAZA



जो मेरी छत पे कबूतर उदास बैठे हैं
वो तेरी याद में दिलबर उदास बैठे हैं

तुम्हारी याद के लश्कर उदास बैठे हैं
हसीन ख़्वाब के मंज़र उदास बैठे हैं

माम गालियाँ हैं ख़ामोश तेरे जाने से
तमाम राह के पत्थर उदास बैठे हैं

बिना पिए तो सुना है उदास रिंदों को           
मियाँ जी आप तो पी कर उदास बैठे हैं


ज़रा सी बात ने रिश्तों को कर दिया घायल
ज़रा सी बात को लेकर उदास बैठे हैं

तेरे बग़ैर हर एक शय की आँख पुरनम है 
हमी नहीं मह-ओ-अख़्तर उदास बैठे हैं  

तमाम शहर तरसता है उनसे मिलने को
'रज़ा' जी आप तो मिलकर उदास बैठे हैं  
_____________________________________                           
                  सली रज़ा रीवा

Saturday, August 19, 2023

जिंदगी का सहारा N


ज़िंदगी का  सहारा   मिले  ना  मिले
साथ  मुझको  तुम्हारा  मिले ना मिले
🎋
आजा  तुझको गले से लगा लू  सनम
फिर ये  लम्हें  दुबारा  मिले  ना मिले
🎋
जी ले खुशिओं की पतवार है हाँथ में
बहरे ग़म  में  किनारा  मिले न मिले
🎋
नीद में  ख़्वाब में  दिन  में  औ  रात  में
तू   मिले  कुछ  भी यारा  मिले ना मिले
🎋
क्या बताये  हुई  क्या है  मुझसे  ख़ता
सुनके  नज़रे  दुबारा    मिले ना मिले
____________________________

हमसफ़र तुम सा प्यारा मिले न मिले
साथ मुझको   तुम्हारा  मिले न मिले
🎋
इश्क़ का कर दे इज़हार तन्हा है वो
ऐसा  मौक़ा दुबारा   मिले  न  मिले
🎋
साँस बनकर रहो धड़कनों में मेरी
मुझको जन्नत ख़ुदारा मिले न मिले
🎋
वो भी होते तो आता मज़ा और भी
फिर सुहाना  नज़ारा  मिले न मिले
🎋
क्या बताये हुई क्या है मुझसे ख़ता
सुनके  नज़रे  दुबारा मिले ना मिले

Monday, September 30, 2019

कितने अल्फाज़ मचलते हैं संवरने के लिए - सलीम 'रज़ा'


सलीम 'रज़ा' रीवा 









चौदहवीं  शब  को सरे बाम वो जब आता है
माह--कामिल भी उसे देख के शरमाता है

मैं उसे चाँद कहूँ, फूल कहूँ, या  शबनम
उसका ही चेहरा हर एक शय में नज़र आता है

जब तसव्वुर में तेरा चेहरा  बना लेता हूँ
तब कहीं जाके मेरे दिल को सुकूं आता है

रक़्स करती हैं बहारें भी तेरे आने से
हुस्न मौसम का ज़रा और निखर जाता है

कितने अल्फाज़ मचलते हैं संवरने के लिए
जब ख़्यालों में कोई  शेर उभर आता है

मैं मनाऊँ तो भला  कैसे मनाऊँ उसको
मेरा महबूब तो बच्चो सा मचल जाता है
 
जब उठा लेती है माँ हाथ दुआओं के लिए
रास्ते से मेरे तूफ़ान भी हट जाता है
_________________________
                    सलीम 'रज़ा'

चौदहवीं शब @ चौदहवीं की रात
सरे बाम @छत के ऊपर
माह-ए-कामिल @ पूरा चाँद 
हर एक शय @ हर एक चीज़ 
तसव्वुर @ ख़्याल 
रक़्स करती हैं बहारें @ख़ुशी से बहारें नाच रही हैं 


Saturday, November 18, 2017

ये मत कहना कोई कमतर होता है - सलीम रज़ा रीवा

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ये मत कहना कोई कमतर होता है 
दुनिया  में  इन्सान  बराबर होता है 
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टूटा-फूटा  गिरा-पड़ा कुछ तंग सही 
अपना घर तो अपना ही घर होता है
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ताल  में  पंछी पनघट गागर चौपालें 
कितना सुन्दर गाँव का मंज़र होता है
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काम नहीं  है तीरों का  तलवारों का
प्यार तो एटम बम से बेहतर होता है
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पाकीज़ा  जज़्बात है जिसके सीने में 
उसका चेहरा रू-ए-मुनव्वर होता है  
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ज़ाहिद का तो काम नहीं मयख़ाने में  
मयख़ाना तो  रिंदों  का घर  होता है 
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जो तारीकी  में  भी  रस्ता दिखलाए 
वो  ही हमदम वो ही रहबर होता है
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अपना बनकर जो भी धोका देता है
बुज़दिल होता  है वो कायर होता है
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कैद करो न  इसको पिंजरों में कोई 
अम्न  का पंछी रज़ा कबूतर होता है

A 20 GAZLEN SALEEM RAZA REWA

  🅰️ 20 ग़ज़लें  01 मुज्तस मुसम्मन मख़बून महज़ूफ़ मस्कन मुफ़ाइलुन फ़इलातुन मुफ़ाइलुन फ़ेलुन  1212 1122 1212 22 ——— ——— —— —— ———- हर एक शय से ज़ि...