जो मेरी छत पे कबूतर उदास बैठे हैं
वो तेरी याद में दिलबर उदास बैठे हैं
तुम्हारी याद के लश्कर उदास बैठे हैं
हसीन ख़्वाब के मंज़र उदास बैठे हैं
तमाम गालियाँ हैं ख़ामोश तेरे जाने से
तमाम राह के पत्थर उदास बैठे हैं
बिना पिए तो सुना है उदास रिंदों को
मियाँ जी आप तो पी कर उदास बैठे हैं
ज़रा सी बात ने रिश्तों को कर दिया घायल
ज़रा सी बात को लेकर उदास बैठे हैं
तेरे बग़ैर हर एक शय की आँख पुरनम है हमी नहीं मह-ओ-अख़्तर उदास बैठे हैं
तमाम शहर तरसता है उनसे मिलने को
'रज़ा' जी आप तो मिलकर उदास बैठे हैं
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सलीम रज़ा रीवा
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