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Monday, May 26, 2025

A 20 GAZLEN SALIM RAZA REWA

 SALIM RAZA REWA -सलीम ‘रज़ा’ रीवा

ख़यालों का परिंदा 🦅 

मेरे अफ़कार को वो हौसला बख़्शा है मौला ने 

ख़यालों का परिंदा उड़ रहा है आसमानों में

01

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हर-एक शय से ज़ियादा वो प्यार करता है

तमाम खुशियाँ वो मुझ पर निसार करता है

 

मैं दिन को रात कहूँ वो भी दिन को रात कहे

यूँ  आँख मूँद के वो  ऐ’तिबार  करता   है

 

मैं जिस के प्यार को अब तक समझ नहीं पाया

वो रात-रात मेरा इंतज़ार करता है

 

हमें तो प्यार है गुल से चमन से ख़ुशबू से

वो कैसा शख़्स है फूलों पे वार करता है


मेरे वजूद को रखता है क़ल्बो-जाँ के क़रीब

हर इक दु’आ में वो, मुझ को शुमार करता है


मुझे उदास निगाहों  से देखना उस का 

अभी भी दिल को मेरे बेक़रार करता है

 

उसे ही ख़ुल्द की ने’मत नसीब होगी ‘रज़ा’

ख़ुदा का ज़िक्र जो लैलो-नहार करता है


—— 1212/1122/1212/22——-

हर शय- हर चीज़, क़ल्ब-ओ-जाँ- दिल और जान,  

ख़ुल्द-जन्नत,  लैलो-नहार- रात और दिन, 

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02

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वक़्त ने मुझ को कभी मुर्दा नहीं होने दिया

हाथ फैलाऊँ कभी, ऐसा नहीं होने दिया 


उस के एहसानों का दिल से शुक्रिया है लाखों बार

जिस ने इस नाचीज़ को रुसवा नहीं होने दिया


ढल गई अब तो जवानी, जिस्म बूढ़ा हो चला 

पर तुम्हारे प्यार को बूढ़ा नहीं होने दिया


तुम ने भी वादा निभाया इस क़दर कि उम्र भर

मुझ को पागल कर के फिर अच्छा नहीं होने दिया


तेरी ख़ुशबू ने मो’अत्तर कर दिया है इस क़दर 

मेरी ख़ुशबू ने मुझे, मेरा नहीं होने दिया 

                        

इस बदन को तेरी ख़ुशबू की लगन ऐसी लगी 

इस बदन से फिर कोई रिश्ता नहीं होने दिया


सच को काग़ज़ पर उतारा इस तरह मैंने ‘रज़ा’

सच लिखा और उस को, शर्मिंदा नहीं होने दिया

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नाचीज़- तुच्छ और हीन,  रुसवा-बदनाम, बे इज़्ज़त,  

मो’अत्तर- सुगंधित,  इस क़दर-इस तरह, 

24-03-24

—————2122/2122/2122/212————


03


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शर्तों पर ही प्यार करोगे ऐसा क्या 

तुम जीना दुश्वार करोगे ऐसा क्या 


लोगों ने तो ज़ख़्म दिए हैं चुन-चुन कर

तुम भी दिल पर वार करोगे ऐसा क्या


मुझ से रूठ के खाना पीना छोड़ दिए

ख़ुद को ही बीमार करोगे ऐसा क्या


मिलना हो तो मिल जाओ कुछ बात करें

वा'दा ही हर बार करोगे ऐसा क्या


जाने किस से लड़-भिड़ कर तुम आए हो

अब मुझ से तकरार करोगे ऐसा क्या


अब मुझ को तड़पाने की ख़ातिर तुम भी

दुश्मन से ही प्यार करोगे ऐसा क्या 

22/22/21/22/12/2


…..…………… 28-01-24…………


सब ख़्वाहिशें लपेट के पेटी में रख चुके 

उम्मीद जो बची थी वो खूँटी पे टाँग दी

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दुश्वार-मुश्किल,  तकरार- विवाद, झगड़ा,  फ़न- कला,

 ख़्वाहिशें- इच्छाएँ, 

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04


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तुम्हारे दिल में हमारा ख़याल है कि नहीं

कि साथ छोड़ने का कुछ मलाल है कि नहीं


तुझे लगा था कि मर जाऊँगा जुदा होकर 

तेरे बग़ैर हूँ ज़िंदा कमाल है कि नहीं


नहीं कहा था, जो देखोगे होश खो दोगे 

बताओ यार मेरा बे-मिसाल है कि नहीं


खिला रहा है जो बच्चों को तू मोहब्बत से

ये देख ले कि ये रोज़ी हलाल है कि नहीं 


ख़ुद अपने आपको माज़ी से जोड़ने वाले

बता कि तुझमें वो जाह-ओ-जलाल है कि नहीं


रज़ा’ बताओ कि तर्क-ए-त'अल्लुक़ात के बाद

हमारे जैसा ही उनका भी हाल है कि नहीं 

——— 1212/1122/1212/112————

कश्ती को डूबने से बचाया बहुत मगर

हो जाएँ गर ख़िलाफ़ हवाएँ तो क्या करें

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रोज़ी हलाल- ईमानदारी की कमाई, माज़ी-गुज़रा हुआ वक़्त, अतीत, जाहो-जलाल,  पद और वैभव, तर्क-ए-त'अल्लुक़ात,  रिश्ता तोड़/छोड़ देना, 

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05


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मैं ने हर इक उमीद का पुतला जला दिया 

दुश्वारियों को पाँव के नीचे दबा दिया 


मेरी तमाम उँगलियाँ घायल तो हो गईं 

लेकिन तुम्हारी याद का नक़्शा मिटा दिया 


मैं ने तमाम छाँव ग़रीबों में बाँट दी 

और ये किया कि धूप को पागल बना दिया 


फिर ख़्वाहिशों ने सर को उठाया नहीं कभी

मजबूरियों ने ऐसे ठिकाने लगा दिया 

 

उस के हसीं लिबास पे दिखला के एक दाग़ 

सारा ग़ुरूर ख़ाक में उस का मिला दिया 


ज़ख़्मों पे ज़ख़्म खाए मगर आपका रहा 

उस दिल पे फिर से आप ने ख़ंजर चला दिया 


उस ने निभाई ख़ूब मिरी दोस्ती 'रज़ा' 

इल्ज़ाम-ए-क़त्ल-ए-यार मुझी पर लगा दिया 


———221/2121/1221/212————-

दुश्वारियों-परेशानियाँ,  ग़ुरूर-घमंड,  ख़ाक़-मिट्टी, इल्ज़ाम-ए-क़त्ल-ए-यार, दोस्त को मारने का आरोप,  

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06

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तुझे पुख़्ता ठिकाना चाहिए था 

तो मेरे दिल में आना चाहिए था 

 

न कुछ मुझ से छुपाना चाहिए था 

कोई ग़म था, बताना चाहिए था


समझ लेता मुहब्बत का इशारा 

ज़रा सा मुस्कुराना चाहिए था 


मेरी ख़्वाहिश थी बस दो गज़ ज़मीं की 

उसे सारा ज़माना चाहिए था

 

उन्हें मुझ से ख़फ़ा होने की ख़ातिर

कोई ताज़ा बहाना चाहिए था


तुझे जब छोड़ना ही था मुझे तो

न मुझसे दिल लगाना चाहिए था


ग़लत-फ़हमी से रिश्ते टूटते हैं 

तुझे सच-सच बताना चाहिए था


मैं ख़ुद से ही बिछड़ कर रह गया हूँ

मुझे भी लौट जाना चाहिए था


किया  तर्क-ए-त'अल्लुक़ आपने जब 

‘रज़ा’ को भूल जाना चाहिए था

 ____________1222/1222/122___________


आज भी उनकी अदाओं में वही हैं शोख़ियाँ

आज भी तकते हैं रस्ता शह्र के पागल बहुत

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ख़्वाहिश- इच्छा। तर्क-ए-त'अल्लुक़,-रिश्ता नाता तोड़ लेना, मेल-जोल छोड़ देना, 05-04-25 

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  07

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दिल को मुहब्बतों का ठिकाना बना दिया 

रब ने मक़ाम-ए-दिल बहुत ऊँचा बना दिया 


कैसे कहें कि इश्क़ ने क्या क्या बना दिया

राधा को श्याम, श्याम को राधा बना दिया

 

उस बेर की मिठास तो बस जाने राम जी

शबरी ने जिस को चख के है मीठा बना दिया   

  

यूसुफ़ न बन सका कभी तेरी निगाह में

लेकिन तुझे तो मैंने ज़ुलेख़ा बना दिया


ये  इश्क़ है, जुनूँ  है, मुहब्बत है या नशा

मजनू बना दिया कभी राँझा बना दिया 


उस शोख़ की अदाओं पे क़ुर्बान जाइए

मौसम को जिस ने छू के नशीला बना दिया


उस ने ‘रज़ा’ ज़मीनो-फ़लक को सँवार कर

कितना हसीन सारा ज़माना बना दिया


 ———— 221 2121 1221 212———-

यूसुफ़-पैग़म्बर जो अत्यंत सुन्दर थे,  ज़ुलेख़ा -मिस्र की महारानी जो यूसुफ़ पर फ़िदा थीं, यूसुफ़-ज़ुलेख़ा की प्रेम कहानी की प्रेमिका, ख़ुलूस-ओ-मोहब्बत- प्यार और मोहब्बत,

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08

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हद से गुज़र गई हैं ख़ताएँ, तो क्या करें

ऐसे में उन से दूर न जाएँ तो क्या करें

 

उस की अना ने, सारे त’अल्लुक़ मिटा दिए

उस बे-वफ़ा को भूल न जाएँ तो क्या करें


 हम तो थकन उतार के बैठे हैं इश्क़ की

यादें तुम्हारी फिर भी सताएँ तो क्या करें 


सजदे में सर झुकाए मुसल्ले पे हैं पड़े 

लौट आती हैं फ़लक़ से दु’आएँ तो क्या करें 


मीना भी तू है, मय भी तू , साक़ी भी जाम भी

आँखों में तेरी डूब न जाएँ तो क्या करें

 

कश्ती को डूबने से बचाया बहुत मगर

हो जाएँ गर ख़िलाफ़ हवाएँ तो क्या करें

 

ख़ुशियों का इंतज़ार, 'रज़ा' मुद्दतों से है

पीछा अगर न छोड़ें बलाएँ तो क्या करें

…..……221/2121/1221/212……


 ख़ताएँ- ग़लतियाँ। अना-अहंकार। त’अल्लुक़- संबंध ।मीना-शराब की बोतल ।मय-शराब। साक़ी -शराब पिलाने वाला । ख़िलाफ़-विपरीत। बलाएँ-मुसीबतें। ज़ीनत- इज़्ज़त

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09

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समझ रहा था जिसे अपना वाक़ई अब तक 

वो कर रहा था मेरे दिल से दिल-लगी अब तक 


हसीन जाल मुहब्बत का फेंकने वाले 

समझ चुका हूँ हर-इक चाल मैं तेरी अब तक


मेरे बदन का लहू ख़ुश्क हो गया होता 

अगर न होती मेरे जिस्म में नमी अब तक 


रदीफ़ क़ाफ़िया बंदिश ख़याल सब तू है

मैं तेरे नाम से करता हूँ शा’इरी अब तक


उछल-उछल के ख़ुशी नाचती थी आँगन में 

खटक रही है उसी बात की कमी अब तक 


वो जिस के हुस्न का चर्चा था सारी दुनिया में 

भटक रही है वो गलियों में बावरी अब तक 

———1212/1122/122/22———-

ख़ुशियों से कह दो शोर मचाएँ न इस-क़दर

मेरे ग़मों को  नीद लगी है अभी-अभी 

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वाक़ई- सच में। ख़ुश्क-सूख जाना,आगही-समझ-बूझ, awareness।

10

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जिस तरह से फूलों की डालियाँ महकती हैं 

मेरे घर के आँगन में बेटियाँ महकती हैं 


फूल सा बदन तेरा इस क़दर मोअ'त्तर है 

ख़्वाब में भी छू लूँ तो उँगलियाँ महकती हैं 


माँ ने जो खिलाई थीं अपने प्यारे हाथों से 

ज़ेहन में अभी तक वो रोटियाँ महकती हैं 


उम्र सारी गुज़री हो जिस की हक़-परस्ती में 

उस की तो क़ियामत तक नेकियाँ महकती हैं 


हो गईं 'रज़ा' रुख़्सत घर से बेटियाँ लेकिन 

अब तलक निगाहों में डोलियाँ महकती हैं 

212/1222/212/1222

…..……………ए शेर………………


उन के एल्बम में है तस्वीर पुरानी  मेरी

अब वो देखेंगे तो पहचान नहीं पाएँगे 

…………………………..

मोअ'त्तर-ख़ुशबूदार, खुशबू में बसा हुआ,। ज़ेहन-दिमाग़।

हक़-परस्ती-सत्यनिष्ठता, धर्मपरायणता। क़ियामत-प्रलय का दिन, रुख़्सत-विदाई

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11

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ज़िंदगी से मात खा कर सो गए

वो चराग़े-जाँ बुझा कर सो गए


धूप का बिस्तर लगा कर सो गए

छाँव सिरहाने दबा कर सो गए


गुफ़्तगू की दिल में ख़्वाहिश थी मगर

वो मेरे ख़्वाबों में आ कर  सो गए

 

तंग थी चादर तो हमने यूँ किया

पाँव सीने से लगा कर सो गए

 

उन की नींदों पर निछावर मेरे ख़्वाब

जो ज़माने को जगा कर सो गए

 

बे-कसी में और क्या करते 'रज़ा'

ख़ुद को ही समझा-बुझा कर सो गए


2122/2122/212

…..……………ए शेर………….

जी भर के मुझ को नाच नचा ले ऐ ज़िंदगी 

मैंने भी घुँघरू बाँध लिये अपने पाँव में

…………………..……………..

चराग़-ए-जाँ-बुझाना -मौत को गले लगाना। गुफ़्तगू-बातचीत । ख़्वाहिश-इक्छा। बे-कसी-लाचारी

………………………


12

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तुम्हारी याद के लश्कर उदास बैठे हैं

हसीन ख़्वाब के मंज़र उदास बैठे हैं


तमाम गलियाँ हैं ख़ामोश तेरे जाने से 

तमाम राह के पत्थर उदास बैठे हैं


ज़रा सी बात पे रिश्तों को कर दिया घायल

ज़रा सी बात को लेकर उदास बैठे हैं 


तेरे बग़ैर हर एक शय की आँख पुरनम है 

हमी नहीं महो-अख़्तर उदास बैठे हैं 


बिना पिए तो है, देखा उदास रिंदों को

मियाँ जी आप तो पी कर उदास बैठे हैं


तमाम शह्र तरसता है जिन से मिलने को

'रज़ा' जी आप तो मिल कर उदास बैठे हैं

—-— 1212/1122/1212/22———-

ये और बात है कि वो मिलते नहीं मगर

किस ने कहा कि उन से मेरी दोस्ती नहीं

…..……………………………

याद के लश्कर- यादों का समूह।मंज़र- दृश्य,। रिंदों- शराबी,। मह-ओ-अख़्तर- चाँद और सूरज,

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  13 

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वो ख़यालों में नहीं आए  बहुत मुश्किल है

उस के बिन रात गुज़र जाए बहुत मुश्किल है


खोल कर बैठे हैं छत पर वो घनी ज़ुल्फ़ों को

ऐसे में धूप निकल पाए बहुत मुश्किल है


मेरे महबूब का हो ज़िक्र अगर महफ़िल में

और फिर आँख न भर आए बहुत मुश्किल है


वो सदाक़त, वो सख़ावत वो मुहब्बत लेकर

फिर कोई आप-सा आ जाए बहुत मुश्किल है


दिल की वीरान गली में है तेरे ग़म का हुजूम

अब कोई और गुज़र पाए बहुत मुश्किल है


वो हसीं वक़्त, जो मिल कर के गुज़ारा था “रज़ा” 

फिर वही लौट के आ जाए बहुत मुश्किल है

——-— 2122/1122/1122/22———-

दिल में बसा ली हम ने जब से तुम्हारी सूरत 

तब से सिवा तुम्हारे भाता नहीं है कोई 

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सदाक़त- सच्चाई,। सख़ावत- उदारता, दरियादिली,


14

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ज़िन्दगी का फ़ैसला हो जाएगा

तू सनम जिस दिन मेरा हो जाएगा

 

प्यार की, कुछ बूँद ही मिल जाए तो

गुलशन-ए-दिल फिर हरा हो जाएगा

 

दामने-महबूब जिस दम मिल गया

आँसुओं का हक़ अदा हो जाएगा

 

धड़कनें किस को पुकारेंगी मेरी 

तू अगर मुझ से जुदा हो जाएगा


रूठ जाएगीं सभी ख़ुशियाँ मेरी 

तू अगर मुझसे ख़फ़ा हो जाएगा 

 

गर्दिशों की आँच में तपकर 'रज़ा'

एक दिन तू भी खरा हो जाएगा


…..………2122/2122/212…………

आया है जब से नाम तुम्‍हारा ज़बान पर

होटों ने फिर किसी का भी चर्चा नहीं किया

…………………

गुलशन-ए-दिल,दिल का बग़िया। दामन-ए-महबूब

-प्रेमी का दामन । गर्दिशों-परेशानियों 

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15

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उसे मा’लूम है सारी हक़ीक़त भी फ़साना भी

हमारे दिल में था अक्सर उसी का आना-जाना भी


बुलंदी मेरे जज़्बे की ये देखेगा ज़माना भी

फ़लक के सहन में होगा मेरा इक आशियाना भी


अकेले इन बहारों का नहीं लुत्फ़-ओ-करम, साहिब

करम-फ़रमा हैं मुझ पर कुछ मिज़ाजे-आशिक़ाना भी


जहाँ से कर गए हिजरत मुहब्बत के हसीं जुगनू

वहाँ पर भूल जाती हैं बहारें आना-जाना भी


बहुत अर्से से, देखा भी नहीं है रक़्स चिड़ियों का

दरख़्तों पर नहीं दिखता कोई अब आशियाना भी


हमारे शे’र महकेंगे अदब के गोशे-गोशे में

हमारे साथ महकेगा अदब का कारख़ाना भी


न जाने किन ख़्यालों में नहा कर मुस्कुराती है

‘रज़ा’ आता नहीं है राज़े-दिल उस को छुपाना भी


————1222  1222  1222  1222———-


‘रज़ा’  मिजाज़-ए-आशिक़ाना- आशिक़ाना स्वभाव। हिजरत- जन्म भूमि छोड़ना। रक़्स-नाच।फ़लक के सहन-आसमान के आँगन।। लुत्फ़-ओ-करम-मेहरबानी और इनायत। करम-फ़रमा-मेहरबान।

——


16

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निछावर जिस पे मैंने ज़िंदगी की

उसे पर्वा नहीं मेरी ख़ुशी की


समझता ही नहीं जो दर्द मेरा

निगाहों  ने उसी की बंदगी की


वही इक शख़्स जो कुछ भी नहीं है 

हर इक  मुश्किल में उस ने रहबरी की 


अँधेरे दुम दबा कर  डर के भागे 

उजालों से जो मैंने दोस्ती की


उसे पागल बना डाला किसी ने

कभी जो आबरू थी इस गली की


मैं जिस के वास्ते सब छोड़ आया

उसे फ़ुर्सत नहीं है दो घड़ी की


शराब--‘इश्क़ आँखों से पिला कर

बुझा दो प्यास मेरी मय-कशी की

———— 1222  1222  122————

17

—————————————-

हम ठोकरों पे ठोकरें, खाते चले गए

लेकिन चराग़े-‘इश्क़, जलाते चले गए


कोशिश तो की भँवर ने, डुबोने की बारहा

हम कश्ती-ए-हयात बचाते चले गए


रुसवाइयों के डर से, सदा बज़्मे-नाज़ में

हँस-हँस के दिल का ज़ख़्म छुपाते चले गए


हम नें ग़मों को, रूह का हिस्सा बना लिया

यूँ , ज़िंदगी का बोझ उठाते चले गए


मंज़िल की जुस्तजू में क़दम जब कभी थके

हम हौसलों के पाँव बढ़ाते चले गए


जब भी चराग़े-‘इश्क़ बुझाया हवाओं ने 

हम हौसलों के दीप जलाते चले गए


करता है जो सभी के मुक़द्दर का फ़ैसला

उस की ‘रज़ा’ में हम भी समाते चले गए


—————221/2121/1221/212———-

कश्ती-ए-हयात,-ज़िंदगी की नाव । रुसवाई- अपमान,बेइज़्ज़ती । बज़्म-ए-नाज़,-प्रेमिका की महफ़िल । जुस्तजू-तलाश । ज़ीस्त-ज़िंदगी । रज़ा-ख़ुशी,इच्छा ।

18

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उन के आँगन में ख़ुशियों की रा’नाई मुस्काती है

जिन के होटों पर उल्फ़त की सच्चाई मुस्काती है


जिस की ख़ुशबू से ख़ुशबू है गुलशन के सब फूलों में

उस को छूकर आने वाली पुरवाई मुस्काती है


जिन के खिलने से दुनिया का हर आँगन गुलज़ार हुआ

उन कलियों की माँग सजा कर शहनाई मुस्काती है


जब मेहनत की छाँव तले सुस्ताता है ये बोझिल मन

तब बाँहों में आकर पगली अंगड़ाई मुस्काती है


जिस के ख़्यालों के ‘शॉवर’ से मन  को मैं नहलाता हूँ 

उस की ख़ुशबू पा कर दिल की अँगनाई मुस्काती है


यादें घायल साँसें बोझल जीना है दुश्वार मेरा

मेरी हालत देख के अब तो तन्हाई मुस्काती है

————— ए शे—————-

ख़यालों में महकती है मुसलसल प्यार की ख़ुशबू

तेरी यादों के लश्कर ने कभी तन्हा नहीं छोड़ा

—————————————-

उल्फ़त- प्रेम, रा’नाई-सुंदरता, बोझिल-थका हारा, शॉवर-स्नान करने वाला शॉवर नल, दुश्वार-मुश्क़िल, 


19

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नूर चेहरे से यूँ छलकता है

जैसे सूरज कोई चमकता है


एक दिन ख़्वाब में वो क्या आया

घर मेरा आज तक महकता है


क्या कशिश है तुम्हारी आँखों में

देख कर तुम को दिल धड़कता है


उस की दिलकश अदा हसीं चेहरा 

सब की नज़रों में क्यूँ खटकता है


चोट लगती है जब मुहब्बत में 

दर्द-ए-दिल आँखों से छलकता है


अब तलक इन नहीफ़ आँखों में

सिर्फ़ तेरा बदन चमकता है

————— ए शे—————-

देखकर आईना वो मुस्कुरा के कहते हैं 

ऐसी सूरत भी भला तुम ने कहीं देखी है


————— 2122121222—————-

नूर-आभाया रौशनी, एक दफ़ा-एक बार, नहीफ़- दुर्बल, नाज़ुक, कमज़ोर, 

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20

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हम जैसे पागल बहुतेरे फिरते हैं

आप भला क्यूँ बाल बिखेरे फिरते हैं 


काँधों पर ऐसे बल खाती हैं ज़ुल्फ़ें

जैसे लेकर साँप सपेरे फिरते हैं 


चाँद -सितारे क्यूँ मुझसे पंगा लेकर 

मेरे पीछे डेरे - डेरे फिरते हैं 


ख़ुशियाँ मुझको ढूँढ रही हैं गलियों में 

पर ग़म हैं जो घेरे - घेरे फिरते हैं


ना जाने कब उनके करम की बारिश हो

और न जाने कब दिन मेरे फिरते हैं 

————— ए शे—————-

जब लफ़्ज़ों की चादर तान के सोता हूँ

शे’र मेरे आज़ू-बाज़ू सो जाते हैं

………

बहुतेरे-बहुत सारे। पंगा-दुश्मनी। ग़म- परेशानी

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salim raza rewa

सलीम रज़ा रीवा 

मेरे अपने कर रहे हैं, साथ मेरे छल बहुत salim raza reaa

मेरे  अपने  कर  रहे  हैं  साथ  मेरे  छल  बहुत ये घुटन अब खाए जाती है मुझे हर पल बहुत बज रही है कानों में अब तक तेरी पायल बहुत तेरी  यादें  क...