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Tuesday, November 21, 2023

हम जैसे पागल बहुतेरे फिरते हैं-सलीम रज़ा रीवा


हम जैसे पागल बहुतेरे फिरते हैं
आप भला क्यूँ बाल बिखेरे फिरते हैं
💕
काँधों पर ज़ुल्फ़ें ऐसे बल खाती हैं
जैसे लेकर साँप सपेरे फिरते हैं
💕
चाँद -सितारे क्यूँ मुझसे पंगा लेकर
मेरे पीछे डेरे - डेरे फिरते हैं
💕
खुशियां मुझको ढूँढ रही हैं गलियों में
पर ग़म हैं की घेरे - घेरे फिरते हैं
💕
ना जाने कब उनके करम की बारिश हो
और जाने कब दिन मेरे फिरते है
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ہم جیسے پاگل بہتیرے پھرتے ہیں

آپ بھلا کیوں بال بکھیرے پھرتے ہیں

💕

کاندھوں پر زلفی ایسے بل کھاتی ہیں

جیسے لیکر سانپ سپیرے کرتے ہیں

💕

چاند ستارے کیوں مجھ سے پنگا لے کر

میرے پیچھے ڈیرے ڈیرے پھرتے ہیں

💕

خوشیاں مجھ کو ڈھونڈ رہی ہے گلیوں میں 

پر غم ہے کہ دھیرے دھیرے پھرتے ہیں

💕

نہ جانے کب ان کے کرم کی بارش ہو

اورنہ جانے کب دن میرے پھرتے ہیں

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ली रज़ा रीवा

A 20 GAZLEN SALEEM RAZA REWA

  🅰️ 20 ग़ज़लें  01 मुज्तस मुसम्मन मख़बून महज़ूफ़ मस्कन मुफ़ाइलुन फ़इलातुन मुफ़ाइलुन फ़ेलुन  1212 1122 1212 22 ——— ——— —— —— ———- हर एक शय से ज़ि...