Wednesday, April 24, 2024

C 20 GAZLEN SALIM RAZA REWA


C20 ग़ज़लें

41

फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़े

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दर दर फिरते लोगों को दर दे मौला 

बंजारों को भी अपना घर दे मौला 


जो औरों की ख़ुशियों में ख़ुश होते हैं 

उन का भी घर ख़ुशियों से भर दे मौला 


ज़ुल्म-ओ-सितम हो ख़त्म न हो दहशत-गर्दी 

अम्न-ओ-अमाँ की यूँ बारिश कर दे मौला 


भूके प्यासे मुफ़्लिस और यतीम हैं जो 

उन पर भी कुछ रहम-ओ-करम कर दे मौला 


जो करते हैं ख़ून-ख़राबा ज़ुल्म-ओ-सितम 

उन के भी दिल में थोड़ा डर दे मौला 


मस्त मगन मैं उड़ूँ परिंदों के जैसा

मुझको भी वो ताक़त वो पर दे मौला


…………………ए शे’र…………………

मेरे मौला लाज रख लेना  मेरी

मेरी बिटिया अब सियानी हो गई

…………………………………………..

ज़ुल्म-ओ-सितम -अन्याय और अत्याचार। दहशतगर्दी- डरावना माहौल। अम्न-ओ-अमाँ- सुख शांति। मुफ़लिस- निर्धन। ज़ाहिद-गुनाह से दूर रहने वाला।

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42

मफ़ऊल मुफ़ाईलु मुफ़ाईलु फ़ऊलुन 

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रुख़्सार जहाँ में कोई ऐसा नही होगा
उनसे भी हसीं चाँद का चेहरा नही होगा


तुम चाँद सितारों की चमक में रहे उलझे
तुमने  मेरे महबूब  को देखा नही होगा


है कौन भला सर पे  बलाएँ जो ले तेरी
कोई भी तो माँ-बाप के जैसा नही होगा


अल्लाह के महबूब पे है ख़त्म नाबूवत 
अब कोई नबी दुनिया में पैदा नहीं होगा 


जो मेरे दिलो जान को करता है मु’अत्तर
गुलशन में कोई फूल भी ऐसा नही होगा


दिल खोल के करता है मोहब्बत जो किसी से 
दुनिया में  रज़ा वो कभी रुसवा नही होगा

…………………ए शे’र…………………

ये चाँद सितारे ये ज़मी फूल ये  खुशबू

हर चीज़ बनी है मेरे सरकार के सदक़े

………………………………………………

रुख़्सार- चेहरा। बलाएँ- परेशानियाँ। मु’अत्तर- ख़ुशबूदार

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43

मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन 

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ये दुनिया ख़ूबसूरत है ज़माना  ख़ूबसूरत है

मोहब्बत की नज़र से देखने की बस ज़रूरत है

 

वो  मेरे बिन तड़पते हैं मैं उनके बिन तड़पता हूँ

यही तो उनकी चाहत है यही मेरी मोहब्बत है

 

वो ख़ालिक़ है वो मालिक है वो दाता है ज़माने का

उसी के हाथ इज़्ज़त है उसी के हाथ शोहरत है

 

मोहब्बत से ही दुनिया का हर एक दस्तूर ज़िंदा है

हर-एक रिश्ता हर-एक नाता मोहब्बत की बदौलत है

 

सभी को प्यार से मिलने की आदत है 'रज़ा' हमको

यही इंसानियत है और यह अनमोल दौलत है


…………………ए शे’र…………………

जहाँ से कर गए हिजरत मोहब्बत के सभी जुगनू

 वहां पर छोड़ देती हैं  ये खुशियाँ आना जाना भी

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44 

मुज़ारे मुसम्मन अख़रब मकफ़ूफ़ महज़ूफ़

मफ़ऊल फ़ाइलात मुफ़ाईलु फ़ाइलुन 
  • 221
  • 2121
  • 1221
  • 212


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रिश्ते वफ़ा के सब से निभाकर तो देखिए

मुफ़्लिस को भी गले से लगाकर तो देखिए


ख़ुशबू से मह-महाएगा घर बार आपका

उजड़े हुए चमन को बसाकर तो देखिए


इसका सिला मिलेगा ख़ुदा से बहुत बड़ा

भूखे को आप खाना खिलाकर तो  देखिए

 

खिल जाएगा ख़ुशी से वो चेहरा गुलाब सा

रोते हुए को आप हँसा कर तो देखिए

 

इक चौंदवी का चाँद नज़र आएगा 'रज़ा'

ज़ुल्फ़ें रुख़-ए-हसीं से हटाकर तो देखिए


…………………ए शे’र…………………

मेरा ख़ुलूस मेरी मोहब्बत  को  देखकर

जुड्ते  गये हैं आके  मेरे कारवाँ  से लोग

…………………………………………..

रिश्ते वफ़ा के-प्रेम के रिश्ते। सिला-बदला।

जुल्फे रुख़-ए-हँसी- सुंदर चेहरे से बाल।

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45

मुज़ारे मुसम्मन अख़रब मकफ़ूफ़ महज़ूफ़

मफ़ऊल फ़ाइलात मुफ़ाईलु फ़ाइलुन 
  • 221
  • 2121
  • 1221
  • 212


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यूँ मज़हबों में बँट के न संसार बाँटिए

कुछ बाँटना है आपको तो प्यार बाँटिए

 

नदियाँ बहे न ख़ून कि आँगन मे फिर कभी

अपने ही  घर मे तीर न तलवार बाँटिये


हर धर्म  के गुलो से  महकता है ये चमन

ख़ंजर चला  के आप न गुलज़ार बाँटिये


रहने भी दीजे ग़ुंचा-ओ-गुल को इसी तरह

गुलशन  हरा  भरा है न श्रंगार  बाँटिये

 

जब भी मिलें किसी से बड़े प्यार से मिलें

छोटी सी ज़िन्दगी  में न तकरार बाँटिये


…………………ए शे’र…………………

यही ख़ुदा से दुआ माँगता हूँ रातो दिन

कि मै भी जी लूँ ज़माने में आदमी तरह

…………………………………………..

ग़ुंचा-ओ-गुल- कली और फूल। तकरार-झगड़ा

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46

फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़े 

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जाने कैसे होंगे आँसू बहते हैं तो बहने दो

भूली बिसरी बात पुरानी कहते हैं तो कहने दो

 

हम बंजारों को ना कोई बाँध सका ज़ंजीरों में

आज यहाँ कल वहाँ भटकते रहते हैं तो रहने दो

 

मुफ़लिस की तो मजबूरी है सर्दी गर्मी बारिश क्या

रोटी के ख़ातिर सारे  ग़म सहते हैं तो सहने दो

 

अपने सुख को मेरे दुख के साथ कहाँ ले जाओगे

अलग अलग वो इक दूजे से रहते हैं  तो रहने दो

 

मस्त मगन हम अपनी धुन में रहते हैं दीवानो सा

जाने कितने हमको पागल कहते हैं तो कहने दो

 

प्यार में उनके सुध-बुध खोकर ऐसे 'रज़ा' बेहाल हुए

लोग  हमे  आशिक़ आवारा कहते हैं तो कहने दो


…………………ए शे’र…………………

आएगा मुश्क़िलों में भी जीने का फ़न तुझे

कूछ दिन गुज़ार ले तू मेरी ज़िन्दगी के साथ

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47

फ़ाएलातुन फ़ाएलातुन फ़ाइलुन

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सुब्ह रंगी शब सुहानी हो गई
जब से उसकी मेहरबानी हो गई


रूठना हँसना मनाना प्यार में
ज़िंदगी कितनी सुहानी हो गई


उस ने माँगी ज़िंदगी सौग़ात में 
नाम उस के ज़िंदगानी हो गई


इब्तिदा-ए-ज़िंदगी की सुब्ह से
शाम तक पूरी कहानी हो गई


खो गए मसरूफ़ियत की भीड़ में 
ख़त्म इस में ज़िंदगानी हो गई


जिसकी सुन्दरता पे सबको नाज़ था
वो इमारत अब पुरानी हो गई


मेरे मौला लाज रख लेना  मेरी
मेरी बिटिया अब सियानी हो गई


ना-ख़ुदा जब ज़िंदगी का वो 'रज़ा'
पार अपनी ज़िंदगानी हो गई

……………………………………

रंगी-रंगीन।शब-रात। सौग़ात- भेट। इब्तिदा-ए-ज़िंदगी-ज़िंदगी की शुरुआत। मसरूफ़ियत- व्यस्त। नाज़-घमंड।ना-ख़ुदा- नाविक।

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48 

मुज़ारे मुसम्मन अख़रब मकफ़ूफ़ महज़ूफ़

मफ़ऊल फ़ाइलात मुफ़ाईलु फ़ाइलुन 
  • 221
  • 2121
  • 1221
  • 212


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नाज़-ओ-अदा के साथ कभी बे-रुख़ी के साथ

दिल में उतर गया वो बड़ी सादगी के साथ


आएगा मुश्क़िलों में भी जीने का फ़न तुझे

कूछ दिन गुज़ार ले तू मेरी ज़िंदगी के साथ

 

ख़ून-ए- जिगर निचोड़ के रखते हैं शे’र में

यूँ ही नहीं है प्यार मुझे शायरी के साथ

 

अच्छी तरह से आपने जाना नहीं जिसे

यारी कभी न कीजिए उस अजनबी के साथ

 

मुश्किल में कैसे जीते हैं यह उनसे पूछिये

गुज़रा है जिनका वक़्त सदा मुफ़लिसी के साथ

 

उस पर न ऐ’तिबार  कभी कीजिए 'रज़ा'

धोका किया है जिसने हमेशा सभी के साथ


…………………ए शे’र…………………

आईना देख के वो मुस्कुरा के कहते हैं

ऐसी सूरत भी भला तुमने कहीं देखी है

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नाज़- नख़रा। ऐ’तिबार-भरोसा

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49

 मफ़ऊल मुफ़ाईलुन मफ़ऊल मुफ़ाईलुन

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हँस दे तो खिले कलियाँ गुलशन में बहार आए 

वो ज़ुल्फ़ जो लहराएँ मौसम में निखार आए 


मिल जाए कोई साथी हर ग़म को सुना डालें 

बेचैन मिरा दिल है पल भर को क़रार आए 


मदहोश मेरा दिल है बेचैन है ये साँसें 

देखा है तुझे जब से आँखों में ख़ुमार आए 


खिल जाएँगी ये कलियाँ महबूब के आमद से 

जिस राह से वो गुज़रे गुलशन में बहार आए 


जिन जिन पे इनायत है जिन जिन से मोहब्बत है 

उन चाहने वालो में मेरा भी शुमार आए 


फूलों को सजाया है पलकों को बिछाया है 

ऐ बाद-ए-सबा कह दे अब जाने बहार आए 


बुलबुल में चहक तुम से फूलों में महक तुम से 

रुख़्सार पे कलियों के तुम से ही निखार आए 

……………………………………………

बाद-ए-सबा- सुबह की हवा। रुख़्सार-चेहरे

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50 

फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़े 

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जो बनकर के जीता है  इंसान सदा

उसके लब पे रहती है मुस्कान सदा

 

हक़ पे चलने वाले हक़ पे चलते हैं 

उनको भी बहकाता है शैतान सदा

 

धीरे-धीरे शेर मेरे भी चमकेगें

पढ़ता हूँ मै ग़ालिब का दीवान सदा

 

रिज़्क़ में उसके बरकत हरदम होती है

जिसके घर में आते हैं मेहमान सदा

 

जो नफ़रत से दूर हमेशा रहता है

महफ़िल में वो पाता है सम्मान सदा


…………………ए शे’र…………………

टूटा-फूटा गिरा-पड़ा कुछ तंग सही

अपना घर तो अपना ही घर होता है

………………………………………

हक़-सच्चाई। रिज़्क-रोज़ी कमाई।

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51 

फ़ाइलुन मुफ़ाईलुन फ़ाइलुन मुफ़ाईलुन

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साथ तुम नहीं होते कुछ मज़ा नहीं होता

मेरे घर में ख़ुशियों का सिलसिला नहीं होता


राह पर सदाक़त की गर चला नहीं  होता 

सच हमेशा कहने का  हौसला नहीं होता

 

रौनक़ें नही जातीं मेरे घर के आँगन से

दिल अगर नहीं बँटता घर बँटा नहीं होता


थोड़े ग़म ख़ुशी थोड़ी,थोड़ी सिसकियाँ भी है

ज़िन्दगी से अब हमको कुछ गिला नहीं होता


कोशिशों से  देता  है  रास्ता समंदर भी

हौसला रहे क़ाएम फिर तो क्या नहीं होता 


डूबती नहीं कश्ती पास आके साहिल के  

बे-वफ़ा अगर मेरा ना-ख़ुदा  नहीं  होता 


उसकी शोख़ नज़रों ने ज़िन्दगी बदल डाली

वो अगर नहीं होता कुछ 'रज़ा' नहीं होता

………………..………………..

सदाक़त- सच्चाई। क़ाएम-बना रहना। ना-ख़ुदा- नाविक।शोख़-हँसमुख।

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52 


रमल मुसम्मन मख़बून महज़ूफ़ मक़तू

फ़ाएलातुन फ़इलातुन फ़इलातुन फ़ेलुन 
  • 2122
  • 1122
  • 1122
  • 22


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शर्बत-ए-दीद निगाहों को पिलाने आए

और बिगड़ी हुई क़िस्मत को बनाने आए


चाँद तारे भी यहाँ बन के दिवाने आए

तेरी रहमत के समन्दर में नहाने आए


रश्क करते हैं जिन्हे देख  के जाम-ओ-मीना

मस्त नज़रों से वही जाम पिलाने आए


तेरे दीदार से आंखों को सुकूँ मिलता है

ख़ुद से कर-कर के कई बार बहाने आए


तेरी निसबत से ज़माने की ख़ुशी हासिल है

मेरे हाथों में तो अनमोल ख़ज़ाने आए


…………………ए शे’र…………………

जब तिरी दीद को हम शहर में तेरे पहुँचें

अपने दामन से न लिपटा कोई इल्ज़ाम रहे

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शर्बत-ए-दीद-दीदार कीशर्बत। रश्क-ईर्षा। 

जाम-ओ-मीना-सुराही और प्याला, शराब का सामान।निसबत-संबंध

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53 

मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन 

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उसे मा'लूम है अपनी हक़ीक़त भी फ़साना भी

हमारे दिल में था अक्सर उसी का आना जाना भी 


बुलन्दी मेरे जज़्बे की ये देखेगा ज़माना भी
फ़लक के सहन में होगा मेरा इक आशियाना भी


अकेले इन बहारों का नहीं लुत्फ़-ओ-करम साहिब

करम-फ़रमा हैं मुझ पर कुछ मिजाज़-ए-आशिक़ाना भी


जहाँ से कर गए हिजरत मोहब्बत के सभी जुगनू
वहाँ पर छोड़ देती हैं ये खुशियाँ आना जाना भी


बहुत अर्से से देखा ही नहीं है रक़्स चिड़ियों का
कहीं पेड़ों पे अब मिलता नहीं वो आशियाना भी


हमारे शेर महकेंगे किसी दिन उसकी रहमत से
हमारे साथ महकेगा अदब का कारख़ाना भी 


न जाने किन ख़्यालों में नहाकर मुस्कुराती है
'रज़ा' आता नहीं है राज़-ए-दिल उसको छुपाना भी 

………………..………………..

मिजाज़-ए-आशिक़ाना- आशिक़ाना स्वभाव। हिजरत- जन्म भूमि छोड़ना। रक़्स-नाच।फ़लक के सहन-आसमान के आँगन।। लुत्फ़-ओ-करम-मेहरबानी और इनायत। करम-फ़रमा-मेहरबान।

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54

फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़े

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ये मत कहना कोई कमतर होता है  
दुनिया में  इन्सान  बराबर होता है

टूटा-फूटा गिरा-पड़ा कुछ तंग सही 
अपना घर तो अपना ही घर होता है

ताल में पंछी पनघट गागर चौपालें 
कितना सुन्दर गाँव का मंज़र होता है

काम नहीं  है तीरों का  तलवारों का
प्यार तो  गोली बम से बेहतर होता है 

मुश्किल में जो साथ रहे अपना बनकर
वो ही हमदम वो ही रहबर होता है

…………………ए शे’र…………………

सच का साथ भला कैसे दे पाएगा 
एहसानों के तले अगर दब जाएगा

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55 

ख़फ़ीफ़ मुसद्दस मख़बून महज़ूफ़ मक़तू

फ़ाएलातुन मुफ़ाइलुन फ़ेलुन 
  • 2122
  • 1212
  • 22


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मेरा मज़हब यही सिखाता है 
सारी  दुनिया  से  मेरा नाता  है 

ज़िन्दगी कम  है बाँट ले खुशियाँ 
दिल किसी का तू  क्यूँ  दुखाता है 

हर भटकते हुए मुसाफ़िर को 
सीधा रस्ता  वही  दिखाता है 

दुश्मनों के तमाम चालों से 
मेरा  रहबर मुझे बचाता  है 


दोस्त वो है जो मुश्किलों में भी
अपने यारों के काम आता है

…………………ए शे’र…………………

रिज़्क मे उसके बरकत हरदम होती है

जिसके घर में आते हैं मेहमान सदा

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56 

फ़ाएलातुन फ़ाएलातुन फ़ाएलातुन फ़ाइलुन

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मुश्किलों में दिल के भी रिश्ते पुराने हो गए

बाँटने वाले ठिकाने बे-ठिकाने हो गए


चंद दिन के फ़ासले के बाद हम जब भी मिले 
यूँ लगा जैसे  मिले  हमको ज़माने  हो गए 


अब भी है रग-रग में क़ाएम प्यार की ख़ुशबू जनाब
क्या हुआ जो जिस्म के कपड़े पुराने हो गए


आँख में शर्म-ओ-हया पाबंदियाँ रुस्वाइयाँ
उनके इतराने के ये अच्छे बहाने हो गए 


मुश्किलों  के साथ मेरे दिन गुज़रते थे कभी 
आप के आने से मेरे  दिन  सुहाने हो  गए    


मुस्कराहट उनकी कैसे भूल पाऊँगा रज़ा

इक नज़र देखा जिन्हें और हम दिवाने हो गए 


…………………ए शे’र…………………

जिसे मुश्किल में जीने का हुनर पर्फेक्ट होता है

मसाइब के अंधेरों से वही रिफ्लेक्ट होता है

………………..………………..


शर्म-ओ-हया -लाज और शर्म ।पाबंदियाँ -विवशता या लाचारी। शोख़ियाँ-चंचलता।

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57

 फ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ाइलुन

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मोतियों  की तरह जगमगाते रहो

बुलबुलों की तरह चहचहाते रहो


जब तलक आसमाँ में सितारें रहें

ये दुआ है मेरी  मुस्कुराते  रहो


इतनी ख़ुशियाँ मिले ज़िंदगी में तुम्हें

दोनों हाथों से सबको  लुटाते  रहो


हम भी तो आपके जाँ-निसारों में हैं

क़िस्सा-ए-दिल हमें भी सुनाते रहो 


इन फ़ज़ाओं में मस्ती सी छा जाएगी

अपनी ज़ुल्फ़ों की ख़ुशबू उड़ाते रहो


रात यूँ ही न कट पाएगी जाग कर 
कुछ तो मेरी सुनो कुछ सुनाते रहो


…………………ए शे’र…………………

बिना पिए तो सुना है उदास रिंदों को

मियाँ जी आप तो पी कर उदास बैठे हैं

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58


मुज़ारे मुसम्मन अख़रब मकफ़ूफ़ महज़ूफ़

मफ़ऊल फ़ाइलात मुफ़ाईलु फ़ाइलुन 
  • 221
  • 2121
  • 1221
  • 212


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हम दर-बदर की ठोकरे खाते चले गए
फिर भी तराने प्यार के गाते चले गए


कोशिश तो की भँवर ने डुबोने की बारहा
हम कश्ती-ए-हयात बचाते चले गए


अपना कहा किसी ने गले से लगा लिया

यूँ दुश्मनों को दोस्त बनाते चले गए


रुसवाइयों के डर से कभी बज़्में नाज़ में
हँस-हँस के दर्द-ए-दिल को छुपाते चले गए

करता है जो सभी के मुक़द्दर का फ़ैसला
उसकी 'रज़ा' की शम्अ जलाते चले गए


…………………ए शे’र…………………

कश्ती को डूबने से बचाया बहुत मगर

हो जाएँ गर ख़िलाफ़ हवाएँ तो क्या करें

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59 

फ़ाएलातुन फ़ाएलातुन फ़ाइलुन

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जिससे रौशन मेरी सुब्ह-ओ-शाम है

मेरे होटों पे फक़त वो नाम है


इस तरह धड़कन में तेरा नाम है

जिस तरह राधा के दिल में श्याम है

 

तू मिला मुझको तो सब कुछ मिल गया

ये मुक़द्दर का बड़ा इनआम है


हम किसी से दुश्मनी करते नहीं

दोस्ती तो प्यार  का  पैग़ाम है


दोस्ती उससे  मुनासिब है नहीं 

शहर की गलियों में जो बदनाम है


लोग कहते हैं बुरा कहते रहें

साफ़-गोई ही हमारा काम है


…………………ए शे’र…………………

सारे ग़म ज़िंदगी के भुलाते रहो 

गीत ख़ुशियों के हर वक़्त गाते रहो

………………………………..

वुजूद :- अस्तित्व,साफ़-गोई -ख़री बात

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60

 फ़ाएलातुन फ़ाएलातुन फ़ाएलातुन फ़ाइलुन 

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हार कर रुकना नहीं मंज़िल भले ही दूर है           
ठोकरें खाकर भी चलना वक़्त का दस्तूर है

हौसले के सामने तक़दीर भी झुक जायेगी
तू बदल सकता है क़िस्मत किसलिए मजबूर है

आदमी की चाह हो तो खिलते है पत्थर में फूल
कौन सी मंज़िल भला जो आदमी से दूर  है

ख़ाक का है पुतला इंसाँ ख़ाक में मिल जाएगा
कैसी दौलत कैसी शोहरत क्यों भला मग़रूर है

वक़्त से पहले किसी को कुछ नहीं मिलता कभी
वक़्त के हाथों यहाँ हर एक शय मजबूर है

…………………ए शे’र…………………

उस घर पे बलाओं का असर हो नहीं सकता

जिस घर में हो क़ुरआन के पारों की तिलावत

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A 20 GAZLEN SALEEM RAZA REWA

  🅰️ 20 ग़ज़लें  01 मुज्तस मुसम्मन मख़बून महज़ूफ़ मस्कन मुफ़ाइलुन फ़इलातुन मुफ़ाइलुन फ़ेलुन  1212 1122 1212 22 ——— ——— —— —— ———- हर एक शय से ज़ि...