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Thursday, February 8, 2024

निछावर जिसपे मैंने ज़िंदगी की SALEEM RAZA REWA | निछावर किसपे मैंने ज़िंदगी की


निछावर जिसपे मैंने ज़िंदगी की

उसे पर्वा नहीं मेरी ख़ुशी की


समझता ही नहीं जो दर्द मेरा

निगाहों  ने उसी की बंदगी की 


वही इक शख़्स जो कुछ भी नहीं है 

हर इक  मुश्किल में उसने रहबरी की 


उसी का रंग है मेरे सुख़न में

उसी से आबरू है शायरी की


अँधेरे भागते हैं दुम दबाकर 

उजालों से जो मैंने दोस्ती की


उसे पागल बना डाला किसी ने

कभी जो अबरू थी इस गली की


हर इक ज़र्रे का जो ख़ालिक है यारो

इबादत कर रहा हूँ मैं  उसी की

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पर्वा, परवाह - चिंता। सुख़न - कविता, शायरी । ख़ालिक-सष्टि की रचना करनेवाला, ख़ुदा

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نچھاور جس پہ مینے زندگی کی 

اسے  پروا  نہیں میرے خوشی کی


سمجھتا ہی نہیں جو درد میرا

نگاہوں نے اسی کی بندگی کی


وہی اک شخص جو کچھ بھی نہیں ہے

 ہر ایک مشکل میں اسنے رہبری کی 


اسی کا رنگ ہے میرے سُخن میں

اسی سے آبرو ہے شاعری کی 


اندھیرے بھاگتے ہیں دُم دباکر 

اُجالوں سے جو مَینے دوستی کی


ادیبوں میں ہے میرا نام شامل

میری عادت نہیں ہے مسخری کی


اسے پاگل بنا ڈالا کسی نے

کبھی جو آبرو تھی اس گلی کی


ہر اِک ذرّے  کا جو  خالق ہے یارو

عبادت کر رہا ہوں میں اُسّی کی 

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सलीम “रज़ा” سلیم رضا

मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन फ़ऊलुन 

1222 1222 122 

हज़ज मुसद्दस महजूफ़ 

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A 20 GAZLEN SALEEM RAZA REWA

  🅰️ 20 ग़ज़लें  01 मुज्तस मुसम्मन मख़बून महज़ूफ़ मस्कन मुफ़ाइलुन फ़इलातुन मुफ़ाइलुन फ़ेलुन  1212 1122 1212 22 ——— ——— —— —— ———- हर एक शय से ज़ि...