Saturday, November 18, 2017
ये मत कहना कोई कमतर होता है - सलीम रज़ा रीवा
Thursday, November 16, 2017
New हार कर रुकना नहीं ग़र तेरी मंज़िल दूर है
चांद का टुकड़ा है या कोई परी या हूर है
उसके चहरे पे चमकता हर घड़ी इक नूर है
हुस्न पर तो नाज़ उसको ख़ूब था पहले से ही
आइने को देख कर वो और भी मग़रूर है
हार कर रुकना नहीं ग़र तेरी मंज़िल दूर है
ठोकरें खाकर सम्हलना वक़्त का दस्तूर है
हौसले के सामने तक़दीर भी झुक जायेगी
तू बदल सकता है क़िस्मत किसलिए मजबूर है
आदमी की चाह हो तो खिलते है पत्थर में फूल
कौन सी मंज़िल भला इस आदमी से दूर है
ख़ाक का पुतला इंसाँ ख़ाक में मिल जाएगा
कैसी दौलत कैसी शोहरत क्यों भला मग़रूर है
वक़्त से पहले किसी को कुछ नहीं मिलता कभी
वक़्त के हाथो यहाँ हर एक शय मजबूर है
उसकि मर्ज़ी के बिना हिलता नहीं पत्ता कोई
उसका हर एक फैसला हमको रज़ा मंज़ूर है
Friday, November 10, 2017
नाराज़गी है कैसी भला ज़िन्दगी के साथ - SALIM RAZA REWA
Saturday, November 4, 2017
बातों ही बातों में उनसे प्यार हुआ- सलीम रज़ा रीवा
बातों ही बातों में उनसे प्यार हुआ.
A 20 GAZLEN SALEEM RAZA REWA
🅰️ 20 ग़ज़लें 01 मुज्तस मुसम्मन मख़बून महज़ूफ़ मस्कन मुफ़ाइलुन फ़इलातुन मुफ़ाइलुन फ़ेलुन 1212 1122 1212 22 ——— ——— —— —— ———- हर एक शय से ज़ि...
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01- मफ़ऊल फ़ाइलात मुफ़ाईलु फ़ाइलुन 221 2121 1221 212 बहरे मज़ारिअ मुसमन अख़रब मकफूफ़ मकफूफ़ महज़ूफ़ ——————————————– ह मने हरिक ...
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हँस दे तो खिले कलियाँ गुलशन में बहार आए वो ज़ुल्फ़ जो लहराएँ मौसम में निखार आए o o मदहोश हुआ दिल क्यूँ बेचैन है क्यूँ आँखें रंग...
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61 . मुज़ारे मुसम्मन अख़रब मकफ़ूफ़ महज़ूफ़ मफ़ऊल फ़ाइलात मुफ़ाईलु फ़ाइलुन 221/2121/1221/212 ——— ——— —————— ——— ——— मेरे वतन में आते हैं सारे जहा...