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Saturday, November 4, 2023

मेरा महबूब जब संवरता है - salim raza rewa


मेरा महबूब जब सँवरता है
हुस्न रह-रह के हाथ मलता है


नूर चेहरे से यूँ छलकता है
जैसे सूरज कोई चमकता है


एक दफ़ा ख़्वाब में वो क्या आया
घर मेरा अब तलक महकता है


क्या कशिश है तुम्हारे आंखो में

देखकर तुमको दिल धड़कता है


अब तलक इन ज़’ईफ़ आँखों में

सिर्फ़  तेरा  बदन चमकता है

………………05/11/18………………..

नूर-आभाया रौशनी। एक दफ़ा-एक बार। 

ज़ईफ़- वृद्ध या कमज़ोर।


……………………………
میرا محبوب جب سنورتا ہے
 حُسن رہ رہ کے ہاتھ ملتا ہے
💕
نور چہرے سے یوں چھلکتا ہے
 جیسے سورج  کوئی چمکتا ہے
💕
ایک دفعہ خواب میں وہ کیا آ یا
گھر  میرا اب تلگ مہکتا ہے

💕

       کیا کشِش ہے تمہاری آنکھوں میں

    دیکھکر تمکو دلِ دھڑکتا ہے

💕

 اب تلک اِن ضعیف آنکھوں میں 

صرف تیرا بدن چمکتا ہے


……………………………

Shayar Salim raza rewa 

……………………बह्र…………………..


ख़फ़ीफ़ मुसद्दस मख़बून महज़ूफ़ मक़तू

2122  1212  22

फ़ाएलातुन मुफ़ाइलुन फ़ेलुन 

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A 20 GAZLEN SALEEM RAZA REWA

  🅰️ 20 ग़ज़लें  01 मुज्तस मुसम्मन मख़बून महज़ूफ़ मस्कन मुफ़ाइलुन फ़इलातुन मुफ़ाइलुन फ़ेलुन  1212 1122 1212 22 ——— ——— —— —— ———- हर एक शय से ज़ि...