बेटी से खुशनुमा है ये संसार दोस्तो
रौशन इसी से आज है घर-बार दोस्तो
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बेटी कही पे माँ कही बहना के रूप में
पत्नी बहु ये बनके निकलती है धूप में
सुब्हे किरन से शाम तलब घर संवारती
बच्चो के रूप रंग को हर दम निखारती
ये तो अजब निभाती है किरदार दोस्तों
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सारी ये क़ायनात बदौलत इसी से है
सारे जहाँ में फैला मोहब्बत इसी से है
चंपा चमेली बनके चमन में महक रही
बातों से यूं लगे की है बुलबुल चहक रही
ये सबको दे रही है सदा प्यार दोस्तों
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अपने पती के संग ये बनवास में रही
जंगल में भूंख प्यास की हर मुश्किलें सही
बनकर के माँ दुआ से ये जन्नत दिलाएगी
इज्जत भी ये दिलाएगी शोहरत दिलाएगी
इसकी दुआ में खुशियों का अम्बार दोस्तो
10-10-2008