Monday, September 30, 2019

कितने अल्फाज़ मचलते हैं संवरने के लिए - सलीम 'रज़ा'


सलीम 'रज़ा' रीवा 









चौदहवीं  शब  को सरे बाम वो जब आता है
माह--कामिल भी उसे देख के शरमाता है

मैं उसे चाँद कहूँ, फूल कहूँ, या  शबनम
उसका ही चेहरा हर एक शय में नज़र आता है

जब तसव्वुर में तेरा चेहरा  बना लेता हूँ
तब कहीं जाके मेरे दिल को सुकूं आता है

रक़्स करती हैं बहारें भी तेरे आने से
हुस्न मौसम का ज़रा और निखर जाता है

कितने अल्फाज़ मचलते हैं संवरने के लिए
जब ख़्यालों में कोई  शेर उभर आता है

मैं मनाऊँ तो भला  कैसे मनाऊँ उसको
मेरा महबूब तो बच्चो सा मचल जाता है
 
जब उठा लेती है माँ हाथ दुआओं के लिए
रास्ते से मेरे तूफ़ान भी हट जाता है
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                    सलीम 'रज़ा'

चौदहवीं शब @ चौदहवीं की रात
सरे बाम @छत के ऊपर
माह-ए-कामिल @ पूरा चाँद 
हर एक शय @ हर एक चीज़ 
तसव्वुर @ ख़्याल 
रक़्स करती हैं बहारें @ख़ुशी से बहारें नाच रही हैं 


Monday, September 2, 2019

वो मंज़र कर्बला का - सलीम रज़ा रीवा

ख़िराज-अक़ीदतخراج عقیدت

ये दिल बेचैन होता है कलेजा काँप जाता है

वो मंज़र कर्बला का जिस घड़ी भी याद आता है
یہ دل بے چین ہوتا ہے کلیجا کانپ جاتا ہے
وہ منجر کربلا کا جس گھڑی بھی یاد آتا ہے

रहे हैं भूखे प्यासे फ़ौज के घेरे में रात-ओ-दिन
मगर होटों पे सच्चाई का परचम मुस्कुराता है
رہے ہیں بھوکے پیاسے فوج کے گھیرے میں رات و دن
مگر ہونٹوں پہ سچایی کے پرچم مسکراتا ہے

गले में चुभ गया फ़ौज-ए-लईं का तीर  बेकस पे
तड़पता प्यास से  मा'सूम असग़र याद आता है
گلے میں چبھ گیا فوجِ  لعیں کا تیر بے کس پے
تڑپتا پیاس سے معصوم اصغر یاد آتا ہے 

कहीं शमशीर की धारे कहीं पे खूं  की बौछारें
वो चीख़ो का समाँ रोना तड़पना याद आता है
کہیں شمسیر کی دھاریں کہیں پہ خوں کی بوچھاریں
وہ چیخوں کا سماں رونا تڑپنا یاد آتا ہے

ये थी ईमान की ताक़त ये दिल में रब चाहत थी
नबी का लाडला सजदे में अपना सर कटाता है
یہ تھی ایمان کی طاقت یہ دل میر رب کی چاہت تھی
نبیؐ کا لاڈلا سجدے پہ اپنا سر کٹاتا  ہے

हुसैन इब्ने अली का ही जिगर था ऐ जहाँ वालों
कोई दुनिया में है، जो इस तरह वादा निभाता है
حسین ابن علی کا ہی جگر تھا اے جہاں والو
کوئی دنیا میں ہے، جو اس طرح وعدہ نبھاتا ہے

ज़माना कांप जाता है 'रज़ा' उस ख़ूनी मंज़र से
जो  सुनता वाक़्या-ए-करबला आँसू बहाता है
زمانہ کانپ جاتا ہے رضا اس خونی منظر سے
جو سنتا واقعا ے کربلا آنسو بہاتا ہے

سلیم رضا ریوا- salim raza rewa

A 20 GAZLEN SALEEM RAZA REWA

  🅰️ 20 ग़ज़लें  01 मुज्तस मुसम्मन मख़बून महज़ूफ़ मस्कन मुफ़ाइलुन फ़इलातुन मुफ़ाइलुन फ़ेलुन  1212 1122 1212 22 ——— ——— —— —— ———- हर एक शय से ज़ि...