Tuesday, October 31, 2023

हद से गुज़र गई हैं ख़ताएँ तो क्या करें SALEEM RAZA REWA

 

हद से गुज़र गई हैं ख़ताएँ तो क्या करें
ऐसे में उनसे दूर ना जाएँ तो क्या करें
 
सकी अना ने सारे त’अल्लुक़ मिटा दिए
उस बे-वफ़ा को भूल  जाएँ तो क्या करें
 
मीना भी तू है मय भी तू साक़ी भी जाम भी
आँखों में तेरी डूब  जाएँ तो क्या करें
 
श्ती को डूबने से बचाया बहुत मगर
हो जाएं गर ख़िलाफ़ हवाएँ तो क्या करें
 
खुशियों का इंतज़ार 'रज़ा' मुद्दतों से है
पीछा अगर  छोड़ें बलाएँ तो क्या करें

Monday, October 30, 2023

रुख़ से जो मेरे यार ने पर्दा हटा दिया

रुख़ से जो मेरे यार ने पर्दा हटा दिया   

महफ़िल में हुस्न वालों को पागल बना दिया
 
उसकी  हर एक अदा पे तो क़ुर्बान जाइए        
मौसम को जिसने छू के नशीला बना दिया
 
आई बाहर झूम के ख़ुश्बू बिखेरती 
ज़ुल्फें उड़ा के कौन सा जादू चला दिया 
 
महफ़िल में होश वाले भी मदहोश हो गए
ये क्या किया की सबको  दिवाना बना दिया

देखा जो उसने प्यार से बस इक नज़र 'रज़ा
दिल में हमारे प्यार का गुलशन खिला दिया
                     सलीम रज़ा रीवा
  _________________________ Nov-1
 

चमक रही है फ़ज़ाओं में चांदनी अब तक SALIM RAZA REWA


चमक रही है फ़ज़ाओं में चांदनी अब तक

तुम्हारे दम से ही रौशन है रौशनी अब तक


उमड़ रहा है समुंदर मेरे ख़्यालों का 

टपक रही है निगाहों से रौशनी अब तक


मेरे बदन का लहू ख़ुश्क हो गया होता 

अगर न होती मेरे जिस्म में नमी अब तक


उछल-उछल के ख़ुशी नाचती थी आँगन में 

खटक रही है उसी बात की कमी अब तक


कि जिसके हुस्न का चर्चा था सारे आलम में 

भटक रही है वो गालियों में बावरी अब तक


हसीन जाल मोहब्बत का  फेंक कर मुझ पर

वो कर रहा था मेरे साथ दिल लगी अब तक


तुम्हारी याद से रौशन है प्यार की गालियाँ 

तुम्हारे दम से मुनव्वर है ज़िंदगी अब तक

…………………❣️………………..

چم رہی ہے فضاؤں میں چاندنی اب تک

تمہارے دم سے ہی روشن ہے روشنی ابتک 


اُمنڈ رہاہے سمندر میرے خیالوں کا

تپکرہی ہے نگاہوں سے روشنی اب تک   


میرے بدن کا لہو خُشک ہو گیا ہوتا

اگر نہ ہوتی میرے  جِسم میں نمی اب تک


اُچھال اُچھل کے خوشی ناچتی تھی آنگن میں

کھٹک رہی ہے اُسی بات کی کمیں اب تک


 کِ جسکے حُسن کا چرچا تھا سارے عالم میں

بھٹک رہی ہے وہ گلیوں میں بابری اب تک


 حسین جل محبّت کا  پھینک  کر  مُجھ پر

وہ کر رہا تھا میرے ساتھ دِلّگی  اب تک 


تمہاری یاد سے روشن ہے  پیار کی گلیاں

تمہارے دم سے مُنوّر ہے زندگی اب تک

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मुफ़ाइलुन फ़यलातुन मुफ़ाइलुन फ़ेलुन

1212 1122 1212 22/112

बहरे मुजतस मुसमन मख़बून महज़ूफ

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_________________________ Oct-19  

Sunday, October 29, 2023

अपनी ज़ुल्फों को धो रही है शब - ग़ज़ल सलीम रज़ा

 
अपनी ज़ुल्फों को धो रही है शब 
और ख़ुश्बू निचो रही है शब 
💕
मेरे ख़ाबों की ओढ़कर चादर
मेरे बिस्तर पे सो रही है शब 
💕
अब अंधेरों से जंग की ख़ातिर
कुछ चारागों को बो रही है शब
💕
सुब्ह-ए-नौ के क़रीब आते ही
अपना अस्तित्व खो रही है शब
💕
दिन के सदमों को सह रहा है दिन
रात का बोझ ढो रही है शब
💕
चाँद है मुंतज़िर चकोरी का 
आ भी जाओ कि हो रही है शब
…………..💕…………..
اپنی زلفوں کو دھو رہی ہے شب
اور خوشبو نِچو رہی ہے شب
💕
میرے خوابوں کی اوڑھ کر چادر
میرے بستر پہ سو رہی ہے شب
💕
اب اندھیروں سے جنگ کی خاطر
کچھ چراغوں کو بو رہی ہے شب
💕
صبح نو کے قریب آتے ہی
اپنا استتو کھو رہی ہے شب
💕
دن کے صدموں کوسہ رہا ہے دن
رات کا بوجھ دھو رہی ہے شب
💕
چاند ہے منتظر چکوری کا
آ بھی جاؤ کہ ہو رہی ہے شب
…………..💕…………..

Gazal by Salim Raza Rewa

मेरी तरह वो भी हिम्मत SALEEM RAZA REWA

 

मेरी तरह वो भी हिम्मत  दिखलाएँ  तो
खुल्लम-खुल्ला मुझ से मिलने आएँ तो
 
आँखों को कुछ सुस्ताने की मुहलत दो
रस्ता तकते तकते  गर थक जाएँ तो
 
मन की प्यास रफू चक्कर हो जाएगी
आँखों के पनघट पे मिलने आएँ तो
 
फि मैं सजदा करते करते आऊंगा
अपने दर पर मुझको कभी बुलाएँ तो
 
चाहत पे शबनम की बूंदें मल देना
प्यार की सांसें जिस दम मुरझा जाएँ तो
 
ख़्वाबों में आग़ाज़ मिलन का कर देंगे
मेल जोल पर पहरे लोग बिठाएँ तो
 
शाम से ही बैठे हैं जाम 'रज़ा' लेकर
यादें उनकी  कर हमें सताएँ तो


Wednesday, October 25, 2023

बहारें कब लबों को खोलती हैं -सलीम रज़ा रीवा

 

बहारें कब लबों को खोलती हैं
बड़ी हसरत से कलियाँ देखती हैं 

💕
भले ख़ामोश हैं ये लब तुम्हारे 
मगर आँखे बहुत कुछ बोलती हैं 
💕
अमीर-ए-शहर का, क़ब्ज़ा है लेकिन 
ग़रीबों की दीवारें टूटती हैं 

💕
समुंदर को कहाँ ख़ुश्की का डर है
वो नदिया हैं जो अक्सर सूखती हैं
💕
न जाने कब हटा दें ज़ुल्फ अपनी
उन्हें एक टक ये आँखें देखती हैं
💕
रज़ा' है रब का ये अहसान मुझपर 
जो खुशियां मेरे घर में खेलती

……………🌺……………

بہاری کب لبوں کو کھولتی ہیں
بڑی حسرت سے کلیاں دیکھتیں ہیں

💕
بھلے خاموش ہیں یہ لب تمہارے 
مگر آنکھیں بہت کچھ دیکھتی ہیں

💕

امیرِ شہر کا قبضہ ہے لیکن 

غریبوں کی دیواریں ٹوٹتی ہیں

💕
سمندر کو کہا خوشکی کا ڈر ہے
وہ ندیاں ہیں جو اکثر سوکھتی ہیں

💕

نہ جانے کب ہٹا دی زلف اپنی
انہیں اک ٹک یہ آنکھیں دیکھتی ہیں

💕
رضا ہے رت کا یہ احسان مجھ پر
جو خوشیاں میرے گھر میں کھیلتی ہیں
……………🌺……………

Shayar by Salim Raza  

Tuesday, October 24, 2023

ख़राबी के नज़ारे उग रहे हैं Salimraza rewa


ख़राबी के नज़ारे उग रहे हैं 

मुनाफ़े में ख़सारे उग रहे हैं 


तेरे होंटों पे कलियाँ खिल रही हैं 

मेरे आंखो में तारे उग रहे है


फ़लक चूमे है धरती के लबों को

कि धरती से किनारे उग रहे हैं


तुम्हारे इश्क़ में जलने की ख़ातिर 

बदन में कुछ शरारे उग रहे हैं


फ़लक के चाँद को छूने की ज़िद में 

'रज़ा' जी पर हमारे उग रहे हैं

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خرابی کے نظاریی اُگ رہے ہیں 

منافع میں خسارے اُگ رہے ہیں


ترے ہونںٹوں پہ کلیاں کھل رہی ہیں 

مری آنکھوں میں تارے اُگ رہے ہیں 


فلک چومے ہے دھرتی کے لبوں کو 

کہ دھرتی سے کنارے اُگ رہے ہیں  


تمہارے عشق میں جلنے کی خاطر 

بدن میں کچھ شرارے اُگ رہے ہیں


فلک کے چاند کو چھونے کی زد میں 

رضٓا جی پر ہمارے اُگ رہے ہیں

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हज़ज मुसद्दस महज़ूफ़

1222 1222 122 

मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन फ़ऊलुन

Thursday, October 19, 2023

तुम्हारे दिल में हमारा ख़्याल- SALIM RAZA REWA


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तुम्हारे दिल में हमारा ख़याल है कि नहीं

कि साथ छोड़ने का कुछ मलाल है कि नहीं


तुझे लगा था कि मर जाऊँगा जुदा होकर

तेरे बग़ैर हूँ ज़िंदा कमाल है कि नहीं

 

नहीं कहा था जो देखोगे होश खो दोगे

बताओ यार मेरा बे - मिसाल है कि नहीं

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हमने हरिक उम्मीद का पुतला जला दिया

दुश्वारियों को पांव के नीचे दबा दिया

 

मेरी तमाम उँगलियाँ घायल तो हो गईं

लेकिन तुम्हारी याद का नक़्शा मिटा दिया


मैंने तमाम छाँव ग़रीबों में बांट दी

और ये किया कि धूप को पागल बना दिया

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उन्हे कुछ न छुपाना चाहिए था 

अगर ग़म था बताना चाहिए था


मेरी ख़्वाहिश थी बस दो गज़ ज़मीं की 

उन्हें सारा ज़माना चाहिए था

  

मुझे अपना बनाने के लिए तो

न माल--ज़र ख़ज़ाना चाहिए था  

 

समझ लेता निगाहों  का इशारा

ज़रा सा मुस्कुराना चाहिए था

 

महक जाता ये जिस्म--जां तुम्हारा

मोहब्बत में नहाना चाहिए था

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हर एक शय से ज़ियादा वो प्यार करता है

तमाम खुशियाँ वो मुझपे निसार करता है

 

मैं दिन को रात कहूँ वो भी दिन को रात कहे

यूँ आँख  मूंद  कर वो  ऐतबार  करता है

 

मै जिसके प्यार को अब तक समझ नही पाया

तमाम   रात   मेरा   इंतज़ार  करता   है

 

हमें तो प्यार है गुल से चमन से खुश्बू से

वो कैसा शख्स है फूलों पे वार करता है

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तुम्हारी याद के लश्कर उदास बैठे हैं

हसीन ख़्वाब के मंज़र उदास बैठे हैं


तमाम गालियाँ हैं ख़ामोश तेरे जाने से

तमाम राह के पत्थर उदास बैठे हैं


बिना पिए तो सुना है उदास रिंदों को           

मियाँ जी आप तो पी कर उदास बैठे हैं

 

ज़रा सी बात पे रिश्तों को कर दिया घायल

ज़रा सी बात को लेकर उदास बैठे हैं


तेरे बग़ैर हर एक शय की आँख पुरनम है 

हमी नहीं मह-ओ-अख़्तर उदास बैठे हैं  


तमाम शहर तरसता है उनसे मिलने को

'रज़ा' जी आप तो मिलकर उदास बैठे हैं  

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हम जैसे पागल बहुतेरे फिरते हैं

आप भला क्यूँ बाल बिखेरे फिरते हैं 


काँधों पर ज़ुल्फ़ें ऐसे बल खाती हैं 

जैसे लेकर साँप सपेरे फिरते हैं 


चाँद -सितारे क्यूँ मुझसे पंगा लेकर 

मेरे पीछे डेरे - डेरे फिरते हैं 


खुशियां मुझको ढूँढ रही हैं गलियों में 

पर ग़म हैं की घेरे - घेरे फिरते हैं


ना जाने कब उनके करम की बारिश हो

और न जाने कब दिन मेरे फिरते है

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ज़िन्दगी का फैसला हो जाएगा

तू सनम जिस दिन मेरा हो जाएगा

 

प्यार की, कुछ बूँद ही मिल जाए तो

गुलशन-ए-दिल फिर हरा हो जाएगा

 

दामन-ए-महबूब जिस दम मिल गया

आंसुओं का हक़ अदा हो जाएगा

 

धड़कने किसको पुकारेंगी मेरी

तू अगर मुझसे जुदा हो जाएगा

 

गर्दिशों की आँच में तपकर 'रज़ा'

एक दिन तू भी खरा हो जाएगा

_________________________ 

Mohd Salim Raza 
9424336644

A 20 GAZLEN SALEEM RAZA REWA

  🅰️ 20 ग़ज़लें  01 मुज्तस मुसम्मन मख़बून महज़ूफ़ मस्कन मुफ़ाइलुन फ़इलातुन मुफ़ाइलुन फ़ेलुन  1212 1122 1212 22 ——— ——— —— —— ———- हर एक शय से ज़ि...