Thursday, October 19, 2023

तुम्हारे दिल में हमारा ख़्याल- SALIM RAZA REWA


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तुम्हारे दिल में हमारा ख़याल है कि नहीं

कि साथ छोड़ने का कुछ मलाल है कि नहीं


तुझे लगा था कि मर जाऊँगा जुदा होकर

तेरे बग़ैर हूँ ज़िंदा कमाल है कि नहीं

 

नहीं कहा था जो देखोगे होश खो दोगे

बताओ यार मेरा बे - मिसाल है कि नहीं

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हमने हरिक उम्मीद का पुतला जला दिया

दुश्वारियों को पांव के नीचे दबा दिया

 

मेरी तमाम उँगलियाँ घायल तो हो गईं

लेकिन तुम्हारी याद का नक़्शा मिटा दिया


मैंने तमाम छाँव ग़रीबों में बांट दी

और ये किया कि धूप को पागल बना दिया

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उन्हे कुछ न छुपाना चाहिए था 

अगर ग़म था बताना चाहिए था


मेरी ख़्वाहिश थी बस दो गज़ ज़मीं की 

उन्हें सारा ज़माना चाहिए था

  

मुझे अपना बनाने के लिए तो

न माल--ज़र ख़ज़ाना चाहिए था  

 

समझ लेता निगाहों  का इशारा

ज़रा सा मुस्कुराना चाहिए था

 

महक जाता ये जिस्म--जां तुम्हारा

मोहब्बत में नहाना चाहिए था

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हर एक शय से ज़ियादा वो प्यार करता है

तमाम खुशियाँ वो मुझपे निसार करता है

 

मैं दिन को रात कहूँ वो भी दिन को रात कहे

यूँ आँख  मूंद  कर वो  ऐतबार  करता है

 

मै जिसके प्यार को अब तक समझ नही पाया

तमाम   रात   मेरा   इंतज़ार  करता   है

 

हमें तो प्यार है गुल से चमन से खुश्बू से

वो कैसा शख्स है फूलों पे वार करता है

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तुम्हारी याद के लश्कर उदास बैठे हैं

हसीन ख़्वाब के मंज़र उदास बैठे हैं


तमाम गालियाँ हैं ख़ामोश तेरे जाने से

तमाम राह के पत्थर उदास बैठे हैं


बिना पिए तो सुना है उदास रिंदों को           

मियाँ जी आप तो पी कर उदास बैठे हैं

 

ज़रा सी बात पे रिश्तों को कर दिया घायल

ज़रा सी बात को लेकर उदास बैठे हैं


तेरे बग़ैर हर एक शय की आँख पुरनम है 

हमी नहीं मह-ओ-अख़्तर उदास बैठे हैं  


तमाम शहर तरसता है उनसे मिलने को

'रज़ा' जी आप तो मिलकर उदास बैठे हैं  

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हम जैसे पागल बहुतेरे फिरते हैं

आप भला क्यूँ बाल बिखेरे फिरते हैं 


काँधों पर ज़ुल्फ़ें ऐसे बल खाती हैं 

जैसे लेकर साँप सपेरे फिरते हैं 


चाँद -सितारे क्यूँ मुझसे पंगा लेकर 

मेरे पीछे डेरे - डेरे फिरते हैं 


खुशियां मुझको ढूँढ रही हैं गलियों में 

पर ग़म हैं की घेरे - घेरे फिरते हैं


ना जाने कब उनके करम की बारिश हो

और न जाने कब दिन मेरे फिरते है

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ज़िन्दगी का फैसला हो जाएगा

तू सनम जिस दिन मेरा हो जाएगा

 

प्यार की, कुछ बूँद ही मिल जाए तो

गुलशन-ए-दिल फिर हरा हो जाएगा

 

दामन-ए-महबूब जिस दम मिल गया

आंसुओं का हक़ अदा हो जाएगा

 

धड़कने किसको पुकारेंगी मेरी

तू अगर मुझसे जुदा हो जाएगा

 

गर्दिशों की आँच में तपकर 'रज़ा'

एक दिन तू भी खरा हो जाएगा

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Mohd Salim Raza 
9424336644

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