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Thursday, November 30, 2023

हम्द- नात-ए-रसूल - NATE RASOOL SALIM RAZA REWA

ना--सू

01

मुज्तस मुसम्मन मख़बून महज़ूफ़ मस्कन

मुफ़ाइलुन फ़इलातुन मुफ़ाइलुन फ़ेलुन 
  • 1212
  • 1122
  • 1212
  • 22

____________@______________

तेरे हवाले है मेरी ये ज़िंदगी मौला

तेरे करम की हो मुझ पर भी रहबरी मौला


चमक रही जो फ़ज़ाओ में चाँदनी मौला

तेरे ही दम से ये रौशन है रौशनी मौला


झुका दिया है जो सजदे में मैंने सर अपना

गुनाहगार की पूरी हो बन्दगी मौला


तेरे सुपुर्द किया है मुक़द्दमा अपना 

हर-एक गुनाह से कर दे मुझे बरी मौला


हयात चीख़ती फिरती है बरहना अब तो

इसे लिबास अता कर सदाक़ती मौला


तेरी चमक से चमकते हैं सब चमक वाले

तेरे ही दम से है दुनिया हरी-भरी मौला 


तुम्हारी याद से रौशन है प्यार की गलियाँ 
तुम्हारे दम से मुनव्वर है ज़िंदगी मौला

30/12/23

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02
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इब्तिदा तुझी से है इंतिहा तुझी से है
ये निज़ाम दुनिया का ऐ ख़ुदा तुझी से है

जिन्न-ओ-हूर बहरो-बर सब तेरे करिश्मे हैं
इस जहान-ए-फ़ानी में जो बना तुझी से है

कौन है सिवा तेरे भर दे जो मेरा दामन
तू ही तो सहारा है आसरा तुझी से है

क्यूँ किसी के गुन गाऊँ क्यूँ किसी के दर जाऊँ
सब को तू ही देता है जो मिला तुझी से है

पल में तू बना देता पल में तू मिटा देता
ये बहार तुझसे है ज़लज़ला तुझी से है

तू गिरफ़्त में ले ले या कि छोड़ दे मौला
ज़िन्दगी के लम्हों का फ़ैसला तुझी से है

क्या बिसात है मेरी बिन करम तेरे दाता
शायरी की दुनिया में ये रज़ा तुझी से है

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03

हज़ज मुसम्मन अख़रब

मफ़ऊल मुफ़ाईलुन मफ़ऊल मुफ़ाईलुन 

  • 221
  • 1222
  • 221
  • 1222

_____________@_____________


आसी हूँ ख़बर मेरी महबूब-ए-ख़ुदा लेना
मुझको भी मदीने में सरकार बुला लेना

उस गर्मी-ए-महशर से लिल्लाह बचा लेना
मुझको भी मेरे आक़ा कमली में छुपा लेना

सरकार-ए-दो-आलम का जब ज़िक्र किया जाए
उस वक़्त दुरूद अपने होंटों पे सजा लेना

फ़रियाद यही मेरी सरकार-ए-दो-आलम है
मरने से ज़रा पहले रौज़े को दिखा देना

अल्लाह रज़ा पर भी हो जाए करम इतना
सदक़े में मुहम्मद के हर ग़म से बचा लेना


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04

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करम की इक नज़र मुझपर भी डालो या रसूल अल्लाह
तमन्ना है मदीने में बुला लो या रसूल अल्लाह

अँधेरी रात है मझधार में अटकी मेरी नय्या
बड़ी मुश्किल मे हैं अब तो सँभालो या रसूल अल्लाह

मुझे घेरे हुए हैं ग़म के लश्कर हो करम मुझ पर
ज़माने के हर इक ग़म से बचा लो या रसूल अल्लाह

तुम्हारे इश्क़ में मर जाऊँगा ऐसा मुझे लगता
बना लो या नबी अपना बना लो या रसूल अल्लाह

'रज़ा' अपने गुनाहों पर बहुत शर्मिंदा है आक़ा
मुझे दामान-ए-रहमत में छुपा लो या रसूल अल्लाह

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05


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रहबर-ए-मदीना का हर सू बोल-बाला है
उनके हाथ कुंजी है उनके हाथ ताला है

रहमतें बरसती हैं हर घड़ी मदीने में
क्या हसीन मंज़र है हर तरफ़ उजाला है

मुझको क्या सताएँगी ज़ुल्मतें ज़माने की
मेरे सर पे आक़ा की रहमतों का हाला है

जब भी पाँव बहके हैं ज़िंदगी की गर्दिश में
उनके दस्त-ए-रहमत ने बारहा सँभाला है

माँग ले 'रज़ा' तू भी मुस्तफ़ा के सदक़े में
रब ने उनके सदक़े में मुश्किलों को टाला है

_____________11/18_____________

06

हज़ज मुसम्मन अख़रब मकफ़ूफ़ महज़ूफ़

मफ़ऊल मुफ़ाईलु मुफ़ाईलु फ़ऊलुन 
  • 221
  • 1221
  • 1221
  • 122


_____________@_____________


माँगो ख़ुदा से सय्यद-ए-अबरार के सदक़े 

सब कुछ मिलेगा अहमद-ए-मुख़्तार के सदक़े 



ये चाँद सितारे ये ज़मीं फूल ये  ख़ुशबू 

हर चीज़ बनी नबियों के सरदार के सदक़े 



अल्लाह ने क़ुरआन दिया मेरे नबी को 

आईं है नमाज़ें मेरे सरकार के सदक़े


दोज़ख़ में न जाएँगे ग़ुलामान-ए-मोहम्मद 

उम्मत को ख़ुदा बख़्शेगा सरकार के सदक़े

अल्लाह के महबूब से उल्फ़त जो करोगे
ख़ुश होगा ख़ुदा अहमद-ए-मुख़्तार के सदक़े
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07

रुख़सार जहाँ में कोई ऐसा नहीं होगा
उनसे भी हसीं चाँद का चेहरा नहीं होगा

तुम चाँद सितारों की चमक में रहे उलझे
तुमने मेरे महबूब को देखा नहीं होगा

अल्लाह के महबूब पे है ख़त्म नबूवत
अब कोई नबी दुनिया में पैदा नहीं होगा

जो मेरे दिल-ओ-जान को करता है मुअत्तर
गुलशन में कोई फूल भी ऐसा नहीं होगा

है कौन भला सर पे बलाऍं जो ले तेरी
कोई भी तो माँ -बाप के जैसा नहीं होगा

महबूब-ए-दो आलम से जो करता है मोहब्बत
दुनिया में रज़ा वो कभी रुसवा नहीं होगा
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08

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दिल में ख़्वाहिश है तैबा नगर जाएँगे
उनकी चौखट पे रखने को सर जाएँगे

लौट कर हम न आएँगे वापस कभी
हुक्म-ए-रब से मदीना अगर जाएँगे

दर पे आक़ा मुझे भी बुला लीजिए
इश्क़ में वर्ना घुट घुट के मर जाएँगे

उनकी आमद की जिस दम सुनेंगे ख़बर
राह में फूल बन के बिखर जाएँगे

जिनपे आक़ा की हो जाए नज़रें करम
उनके दामन मुरादों से भर जाएँगे

यह बता दीजिए हो के मायूस हम
छोड़ कर आपका दर किधर जाएँगे

हो गया जिनके ऊपर करम आपका
उनके बिगड़े मुक़द्दर सँवर जाएँगे

बे-ख़तर पुल सिराते जहन्नुम से भी
जो गुलाम-ए-नबी हैं गुज़र जाएँगे

आज मौक़ा है तू भी रज़ा माँग ले
काम बिगड़े तेरे सब सँवर जाएँगे


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09

मुतदारिक मुसम्मन सालिम

फ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ाइलुन 
  • 212
  • 212
  • 212
  • 212

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मुझको जन्नत न बाग़-ए-इरम चाहिए
या नबी इक निगाह-ए-करम चाहिए

मेरी आँखें तरसती हैं दीदार को
इक झलक मुझको शाह-ए-उमम चाहिए

आपके रू-ए-अनवर को तकता रहूँ
मौत ऐसी ख़ुदा की क़सम चाहिए

जान दे दूँ मेरे मुस्तफ़ा के लिए
या ख़ुदा ऐसा सीने में दम चाहिए

दिल से माँगोगे सब कुछ मिलेगा 'रज़ा'
माँगने के लिए आँखें नम चाहिए

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10
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बेबस हूँ तड़पता हूँ मैं हज के महीने में

मुझको भी बुला लीजे सरकार मदीने में



तैबा का नगर होता चौखट पे जबीं होती

कुछ लुत्फ़ नहीं आक़ा बिन आप के जीने में


क्यूँ महके न ये आलम ईमान की ख़ुशबू से
जब ख़ुशबू ही ख़ुशबू है आक़ा के पसीने में


भर देंगे मेरा दामन जब चाहे मुरादों से

रहमत की कमी क्या है आक़ा के ख़ज़ीने में



आफ़ात ज़माने की क्या मुझको सताएँगी

जब नाम-ए-नबी मैंने लिख रक्खा है सीने में



हो जाए न गुस्ताख़ी भूले से रज़ा कोई

ये बस्ती नबी की  है तू रहना क़रीने में
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11

ये दिल है बे-क़रार  मदीना  बुलाइए
है  ख़ुशनुमा बहार मदीना  बुलाइए

नबियों के तुम नबी हो ख़ुदा के हबीब हो
ऐ  मेरे  ग़म - गुसार मदीना बुलाइए

जब से सुना है गुम्बद-ए-ख़ज़रा का मरतबा
दिल  को  नहीं  क़रार मदीना बुलाइए

रंज-ओ-अलम में हमने गुज़ारे हैं रात दिन
रोते  हैं  ज़ार  ज़ार  मदीना  बुलाइए

कर लें दुआ क़ुबूल कि आ जाए न क़ज़ा
सुन  लीजिए  पुकार  मदीना   बुलाइए

रब ने गुनाह बख़्शे हैं सदक़े में आपके
हम भी  हैं  गुनहगार मदीना बुलाइए

तड़पे रज़ा मदीने में जाने को सोचकर
मुझको भी एक  बार  मदीना  बुलाइए

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12

रोंको ना मुझे कोई फूल अब बिछाने दो
मुस्तफ़ा की आमद है रास्ता सजाने दो
oo
ज़िन्दगी में फिर ऐसा मौक़ा आए ना आए
आज उनकी चौखट पे दर्द दिल सुनाने दो
oo
महरबां हुए शायद दो जहान  के रहबर
ख़ुश्बू  है  मदीने की आ रही है आने दो
oo
मुश्किलों  ज़रा हटना रास्ता न अब रोंको
दीद की  तमन्ना है मुझको तैबा जाने दो
oo
रंग  लाएगी  चाहत  मैं मदीना   पहुचूँगा
ज़ोर गर्दिशों को भी अपना आज़माने  दो
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13

हज़ज मुसम्मन सालिम

मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन 
  • 1222
  • 1222
  • 1222
  • 1222

_____________@_____________

ये दिल बेचैन होता है कलेजा काँप जाता है
वो मंज़र कर्बला का जिस घड़ी भी याद आता है

गले में चुभ गया फ़ौज-ए-लईं का तीर बेकस पे
तड़पता प्यास से मासूम असगर याद आता है

कहीं शमशीर की धारे कहीं पे ख़ूँ की बौछारें
वो चीख़ों का समाँ रोना तड़पना याद आता है

ये थी ईमान की क़ुव्वत ये दिल में रब की चाहत थी
नबी का लाडला सजदे में अपना सर कटाता है

हुसैन इब्न-ए-अली का ही जिगर था ऐ जहाँ वालों
कोई दुनिया में है जो इस तरह वादा निभाता है

ज़माना काँप जाता है 'रज़ा' उस ख़ूनी मंज़र से
जो सुनता दास्तान-ए-कर्बला आँसू बहाता है
____________ ______________

14
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ऐ ताज वाले बाबा कर दो करम ख़ुदरा

दर पे तुम्हारे दाता हाथों को है पसारा 


रिश्ता हुसैन से है रिश्ता है फ़ातिमा से

हजरत अली से रिश्ता रिश्ता है मुस्तफ़ा से

वालिओं का है घराना तजुलवरा तुम्हारा 


दरबार से तुम्हारे ख़ाली न कोई आता 

भर जाती सबकी झोली मन की मुराद पाता 

चर्चा तुम्हारे दर की करता जहान सारा 


अल्लाह का करम है रहमत के तुम धनी हो 

फैज़ान-ए-मुस्तफा है उलफत के तुम गनी हो 

आले रसूल हो तुम दुखड़ा सुनो हमारा 


नज़रे करम हो जिस पर बन जाए जिंदगानी

अपने 'रज़ा' पे कर दो थोड़ी सी मेहरबानी 

लाखों कि बिगड़ी क़िस्मत को आपने सँवरा 

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A 20 GAZLEN SALEEM RAZA REWA

  🅰️ 20 ग़ज़लें  01 मुज्तस मुसम्मन मख़बून महज़ूफ़ मस्कन मुफ़ाइलुन फ़इलातुन मुफ़ाइलुन फ़ेलुन  1212 1122 1212 22 ——— ——— —— —— ———- हर एक शय से ज़ि...