नात-ए-रसूल نعتِ رسول ﷺ
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शम्स माँद पड़ जाए शब में वो उजाला है
रौनक़ें बताती हैं कौन आने वाला है
شمْس ماند پڑ جائے شب میں وہ اُجالا ہے
رَونَقیں بتاتی ہیں کون آنے والا ہے
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ख़ुशबुएँ बताती हैं कौन आने वाला है
आमना के गुलशन का फूल ही निराला है
خُشبوئیں بتاتی ہیں کون آنے والا ہے
آمِنا کے گلشن کا پھُول ہی نِرالا ہے
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बारिशें हैं नूरानी हर घड़ी मदीने में
हर घड़ी मदीने का रंग ही निराला है
بارشیں ہیں نُورانی ہر گھڑی مدینے میں
ہر گھڑی مدینے کا رنگ ہی نِرالا ہے
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ख़ाक से बनाया है रब ने सारी दुनिया को
अपने नूर से रब ने मुस्तफ़ा को ढाला है
خاک سے بنایا ہے رب نے ساری دُنیا کو
اپنے نُور سے رب نے مُصطفیٰ کو ڈھالا ہے
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उनको क्या डराएँगे ज़ुल्मतों के ये सूरज
जिनके सर पे आक़ा के नूर का उजाला है
اُن کو کیا ڈرائیں گے ظُلمتوں کے یہ سُورج
جن کے سر پہ آقا کے نُور کا اُجالا ہے
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क्यूँ न हम दु’आ मांगें मुस्तफ़ा के सदक़े में
रब ने उनके सदक़े में मुश्क़िलों को टाला है
کیوں نہ ہم دُعا مانگیں مُصطفیٰ کے صدقے میں
رَب نے اُن کے صدقے میں مُشکِلوں کو ٹالا ہے
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झूमते हैं ख़ुद पीकर, औरों को पिलाते हैं
जिनके हाथों में उनके दीन का पियला है
جُھومتے ہیں خُود پی کر، اوروں کو پِلاتے ہیں
جن کے ہاتھوں میں اُن کے دِین کا پِیالہ ہے
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’आशिक़े मुह़म्मद के जब भी पाँव बहके हैं
उनके दस्ते-रहमत ने, बढ़ के ख़ुद सँभाला है
عاشقِ مُحمد کے جب بھی پاؤں بہکے ہیں
اُن کے دستِ رحمت نے بڑھ کے خُود سنبھالا ہے
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करबला की धरती पर हमने ये ‘रज़ा’ देखा
मुस्तफ़ा के कुम्बे में हर कोई जियाला है
کربلا کی دھرتی پر ہم نے یہ ‘رضا’ دیکھا
مُصطفیٰ کے کُنبے میں ہر کوئی جِیالا ہے
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________ 212/1222 /212/1222________
*शम्स-सूरज *माँद-मद्धम, चमक-दमक से ख़ाली
*ख़ाक-मिट्टी * ज़ुल्मतों-अँधेरों *दस्ते-रहमत-रहमत के हाथ
*जियाला-बहादुर
मुझको जन्नत न बाग़े-इरम चाहिए
दीद तैबा की शाहे-उमम चाहिए
مجھے جنّت نہ باغِ ارم چاہیے
دیدِ طیبہ کی شاہِ اُمم چاہیے
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कुछ नहीं और, रब की क़सम चाहिए
बस नबी की निगाह-ए-करम चाहिए
کچھ نہیں اور، رب کی قسم چاہیے
بس نبی کی نگاہِ کرم چاہیے
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ना’ते ख़ैरुल वरा लिख्खूँ ख़ुर्शीद पर
या ख़ुदा मुझको ऐसा क़लम चाहिए
نعتِ خیرالورا لکھوں خورشید پر
یا خُدا مجھ کو ایسا قلم چاہیے
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सरवर-ए-अंबिया की ग़ुलामी मुझे
इस जनम चाहिए, उस जनम चाहिए
سرورِ انبیا کی غلامی مجھے
اس جنم چاہیے، اُس جنم چاہیے
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आप हों सामने, जान निकले मेरी
मौत ऐसी ख़ुदा की क़सम चाहिए
آپ ہوں سامنے، جان نکلے میری
موت ایسی خُدا کی قسم چاہیے
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राह-ए-हक़ में मेरी जान क़ुर्बान हो
या ख़ुदा, ऐसा सीने में दम चाहिए
راہِ حق میں میری جان قربان ہو
یا خُدا، ایسا سینے میں دم چاہیے
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मेरी आँखें तरसती हैं दीदार को
इन निगाहों पे रहम-ओ-करम चाहिए
میری آنکھیں ترستی ہیں دیدار کو
اِن نگاہوں پہ رحم و کرم چاہیے
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सिद्क़े -दिल से, जो माँगो, मिलेगा “रज़ा”
माँगने के लिए चश्मे नम चाहिए
صدقِ دل سے جو مانگو، ملے گا “رَضا”
مانگنے کے لیے چشمِ نم چاہیے
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बाग़-ए-इरम /कृत्रिम स्वर्ग जो शद्दाद ने निर्माण करवाया था
*ख़ुर्शीद -सूरज *शाह-ए-उमम *पैग़ंबर मोहम्मद सल०
* राह-ए-हक़- सच्चाई का रास्ता *सिद्क़े -दिल-साफ़ दिल
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छोड़ कर दर तेरा हम किधर जाएँगे
दर तेरा हमसे छूटा तो मर जाएँगे
मुझको शहरे मदीना बुला लीजिए
बिगड़े हालात मेरे सुधर जाएँगे
लौट कर हम न आएँगे वापस कभी
हुक्म-ए-रब से मदीना अगर जाएँगे
दर पे आक़ा हमें भी बुला लीजिए
हिज्र में वर्ना घुट घुट के मर जाएँगे
हो गया जिनके ऊपर करम आपका
उनके बिगड़े मुक़द्दर सँवर जाएँगे
जिनपे आक़ा की हो जाए चश्म-ए-करम
उनके दामन मुरादों से भर जाएँगे
उनकी आमद की जिस दम सुनेंगे ख़बर
राह में फूल बन कर बिखर जाएँगे
आज मौक़ा है तू भी ‘रज़ा’ माँग ले
काम बिगड़े तेरे सब सँवर जाएँगे
04
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मुश्किलों हटो जाओ मुझको तैबा जाने दो
रहमतों के दरिया में डूब कर नहाने दो
बातिलो न रोको तुम रह में दिल बिछाने दो
मुस्तफ़ा की आमद है रास्ता सजाने दो
हम हैं मुस्तफ़ा वाले जश्न तो मनाएँगे
दुश्मन-ए-पयम्बर को ख़ूब तिलमिलाने दो
ख़ुद ही डूब जाएँगे ज़ुल्मतों के ये सूरज
इश्क़-ए-मुस्तफ़ा की लौ दिल में जगमगाने दो
बार-बार दिन ऐसा ज़ीस्त में नहीं आता
आज उनकी चौखट पर दर्द-ए-दिल सुनाने दो
मेहरबाँ हुए हम पर दो जहान के रहबर
ख़ुशबू है मदीने की आ रही है आने दो
रंग लाएगी चाहत मैं मदीना जाऊँगा
ज़ोर गर्दिशों को तुम अपना आज़माने दो
चल ‘रज़ा’ मदीने की गलियों में भटक जाएँ
मस्त हो के तैबा में घूमेंगे दिवाने दो
________212/1222/212/1222________
05
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ये दिल है बे-क़रार मदीना बुलाइए
सरकार एक बार मदीना बुलाइए
कहते हैं बार-बार मदीना बुलाइए
सुन लीजिए पुकार मदीना बुलाइए
हमको तवाफ़े-ख़ाना-ए-का'बा नसीब हो
तैबा के ताजदार मदीना बुलाइए
रहमत बरस रही है मदीने में चार-सू
भीगूँ मैं बार-बार मदीना बुलाइए
जाना है जबसे गुंबद-ए-ख़ज़रा का मरतबा
दिल को नहीं क़रार मदीना बुलाइए
सब के गुनाह बख़्शे गए आप के तुफ़ैल
मैं भी हूँ गुनहगार मदीना बुलाइए
रंजीदा अब हमारे गुज़रते हैं रात दिन
रोते हैं ज़ार-ज़ार मदीना बुलाइए
रहमत बना के भेजा है अल्लाह ने तुम्हें
आलम के ग़म-गुसार मदीना बुलाइए
ख़्वाहिश नहीं “रज़ा” की फ़क़त अपनी हाज़िरी
हम सबको एक बार मदीना बुलाइए
आसी हूँ ख़बर मेरी महबूब-ए-ख़ुदा लेना
मुझको भी मदीने में इक बार बुला लेना
उस गर्मी-ए-महशर से सरकार बचा लेना
मुझको भी मेरे आक़ा कमली में छुपा लेना
ऐ मौत चली आना जब पहुँचूँ मदीना मैं
जब सर हो दरे-शह पर उस वक़्त उठा लेना
फरियाद यही मेरी सरकार-ए-दो-आलम है
जब मौत मुझे आए, रौज़े पे बुला लेना
आक़ा कि ग़ुलामी है जीने का मेरे मक़सद
दुनिया की शहंशाही से मुझको है क्या लेना
जब नाम रज़ा आए सरकार दो आलम का
उस वक्त दुरूद अपने होंठों पे सजा लेना
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07
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करम की इक नज़र मुझपर भी डालो या रसूल अल्लाह
तमन्ना है, मुझे तैबा बुला लो या रसूल अल्लाह
अँधेरी रात है मझधार में अटकी मेरी नय्या
बड़ी मुश्किल मे हूँ, मुझको सँभालो या रसूल अल्लाह
मुझे घेरे हुए हैं, ग़म के लश्कर अल-मदद आक़ा
ज़माने के, ग़मों से अब बचा लो या रसूल अल्लाह
मेरे आक़ा, ग़ुलामो में मेरा भी नाम हो जाए
बना लो मुझको भी अपना बना लो या रसूल अल्लाह
'रज़ा' अपने गुनाहों पर बहुत शर्मिंदा है आक़ा
इसे दामान-ए-रहमत में छुपा लो या रसूल अल्लाह
08
माँगो तो सही सय्यद-ए-अबरार के सदक़े
सब कुछ मिलेगा अहमद-ए-मुख़्तार के सदक़े
अल्लाह ने क़ुरआन उतारा है नबी पर
आई हैं नमाज़ें मेरे सरकार के सदक़े
उम्मत के हैं ग़म-ख़्वार शहंशाह-ए-मदीना
मिलती है शिफ़ा अहमद-ए-मुख़्तार के सदक़े
ये चाँद सितारे ये ज़मीं फूल ये ख़ुशबू
हर चीज़ बनी है मेरे सरकार के सदक़े
रहमत बना के भेजा है अल्लाह ने उनको
दुनिया को सँवारा शह-ए-अबरार के सदक़े
दोज़ख़ में न जाएँगे ग़ुलामान-ए-पयंबर
उम्मत को ख़ुदा बख़्शेगा सरकार के सदक़े
अल्लाह के महबूब से उल्फ़त जो करोगे
हर चीज़ मिलेगी उन्हीं के प्यार के सदक़े
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…………………एक शे’र…………………
ये चाँद सितारे ये ज़मी फूल ये खुशबू
हर चीज़ बनी है मेरे सरकार के सदक़े
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रुख़- चेहरा। बलाएँ- परेशानियाँ। मु’अत्तर- ख़ुशबूदार
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बेबस हूँ तड़पता हूँ, मैं हज के महीने में
सरकार बुला लीजे, मुझको भी मदीने में
क्यूँ महके न ये आलम ईमान की ख़ुशबू से
जब ख़ुशबू ही ख़ुशबू है आक़ा के पसीने में
सरकार के रौज़े पर रगड़ूँगा जबीं अपनी
हो जाएगी हर मुश्किल आसान मदीने में
जब चाहे वो भर देंगें, दामन को मुरादों से
रहमत की कमी क्या है, आक़ा के ख़ज़ीने में
आफ़ात ज़माने की ,क्या मुझको सताएँगी
अब नाम-ए-नबी मैंने, लिख डाला है सीने में
वो तैबा नगर होता, चौखट पे जबीं होती
क्या ख़ूब मज़े होते, जीने के, मदीने में
मुझको भी ग़ुलामों में, सरकार करें शामिल
कुछ लुत्फ़ नहीं आता, बिन आप के जीने में
वैसे तो बदन मेरा, मौजूद यहाँ पर है
हर वक़्त भटकती है, ये रूह मदीने में
हो जाए न ग़ुस्ताख़ी भूले से “रज़ा” कोई
ये बस्ती नबी की है, तू रहना क़रीने में
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