मुफ़ाइलुन फ़इलातुन मुफ़ाइलुन फ़ेलुन
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तेरे करम की हो मुझ पर भी रहबरी मौला
चमक रही जो फ़ज़ाओ में चाँदनी मौला
तेरे ही दम से ये रौशन है रौशनी मौला
झुका दिया है जो सजदे में मैंने सर अपना
गुनाहगार की पूरी हो बन्दगी मौला
तेरे सुपुर्द किया है मुक़द्दमा अपना
हर-एक गुनाह से कर दे मुझे बरी मौला
हयात चीख़ती फिरती है बरहना अब तो
इसे लिबास अता कर सदाक़ती मौला
तेरी चमक से चमकते हैं सब चमक वाले
तेरे ही दम से है दुनिया हरी-भरी मौला
30/12/23
ये निज़ाम दुनिया का ऐ ख़ुदा तुझी से है
जिन्न-ओ-हूर बहरो-बर सब तेरे करिश्मे हैं
इस जहान-ए-फ़ानी में जो बना तुझी से है
कौन है सिवा तेरे भर दे जो मेरा दामन
तू ही तो सहारा है आसरा तुझी से है
क्यूँ किसी के गुन गाऊँ क्यूँ किसी के दर जाऊँ
सब को तू ही देता है जो मिला तुझी से है
पल में तू बना देता पल में तू मिटा देता
ये बहार तुझसे है ज़लज़ला तुझी से है
तू गिरफ़्त में ले ले या कि छोड़ दे मौला
ज़िन्दगी के लम्हों का फ़ैसला तुझी से है
क्या बिसात है मेरी बिन करम तेरे दाता
शायरी की दुनिया में ये रज़ा तुझी से है
03
मफ़ऊल मुफ़ाईलुन मफ़ऊल मुफ़ाईलुन
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- 1222
- 221
- 1222
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04
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उनके हाथ कुंजी है उनके हाथ ताला है
रहमतें बरसती हैं हर घड़ी मदीने में
क्या हसीन मंज़र है हर तरफ़ उजाला है
मुझको क्या सताएँगी ज़ुल्मतें ज़माने की
मेरे सर पे आक़ा की रहमतों का हाला है
जब भी पाँव बहके हैं ज़िंदगी की गर्दिश में
उनके दस्त-ए-रहमत ने बारहा सँभाला है
माँग ले 'रज़ा' तू भी मुस्तफ़ा के सदक़े में
रब ने उनके सदक़े में मुश्किलों को टाला है
मफ़ऊल मुफ़ाईलु मुफ़ाईलु फ़ऊलुन
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- 1221
- 1221
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उनसे भी हसीं चाँद का चेहरा नहीं होगा
तुम चाँद सितारों की चमक में रहे उलझे
तुमने मेरे महबूब को देखा नहीं होगा
अल्लाह के महबूब पे है ख़त्म नबूवत
अब कोई नबी दुनिया में पैदा नहीं होगा
जो मेरे दिल-ओ-जान को करता है मुअत्तर
गुलशन में कोई फूल भी ऐसा नहीं होगा
है कौन भला सर पे बलाऍं जो ले तेरी
कोई भी तो माँ -बाप के जैसा नहीं होगा
महबूब-ए-दो आलम से जो करता है मोहब्बत
दुनिया में रज़ा वो कभी रुसवा नहीं होगा
08
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दिल में ख़्वाहिश है तैबा नगर जाएँगे
उनकी चौखट पे रखने को सर जाएँगे
लौट कर हम न आएँगे वापस कभी
हुक्म-ए-रब से मदीना अगर जाएँगे
दर पे आक़ा मुझे भी बुला लीजिए
इश्क़ में वर्ना घुट घुट के मर जाएँगे
उनकी आमद की जिस दम सुनेंगे ख़बर
राह में फूल बन के बिखर जाएँगे
जिनपे आक़ा की हो जाए नज़रें करम
उनके दामन मुरादों से भर जाएँगे
यह बता दीजिए हो के मायूस हम
छोड़ कर आपका दर किधर जाएँगे
हो गया जिनके ऊपर करम आपका
उनके बिगड़े मुक़द्दर सँवर जाएँगे
बे-ख़तर पुल सिराते जहन्नुम से भी
जो गुलाम-ए-नबी हैं गुज़र जाएँगे
आज मौक़ा है तू भी रज़ा माँग ले
काम बिगड़े तेरे सब सँवर जाएँगे
फ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ाइलुन
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- 212
- 212
- 212
मुझको जन्नत न बाग़-ए-इरम चाहिए
या नबी इक निगाह-ए-करम चाहिए
मेरी आँखें तरसती हैं दीदार को
इक झलक मुझको शाह-ए-उमम चाहिए
आपके रू-ए-अनवर को तकता रहूँ
मौत ऐसी ख़ुदा की क़सम चाहिए
जान दे दूँ मेरे मुस्तफ़ा के लिए
या ख़ुदा ऐसा सीने में दम चाहिए
दिल से माँगोगे सब कुछ मिलेगा 'रज़ा'
माँगने के लिए आँखें नम चाहिए
मुझको भी बुला लीजे सरकार मदीने में
तैबा का नगर होता चौखट पे जबीं होती
कुछ लुत्फ़ नहीं आक़ा बिन आप के जीने में
क्यूँ महके न ये आलम ईमान की ख़ुशबू से
जब ख़ुशबू ही ख़ुशबू है आक़ा के पसीने में
भर देंगे मेरा दामन जब चाहे मुरादों से
रहमत की कमी क्या है आक़ा के ख़ज़ीने में
आफ़ात ज़माने की क्या मुझको सताएँगी
जब नाम-ए-नबी मैंने लिख रक्खा है सीने में
हो जाए न गुस्ताख़ी भूले से रज़ा कोई
ये बस्ती नबी की है तू रहना क़रीने में
है ख़ुशनुमा बहार मदीना बुलाइए
नबियों के तुम नबी हो ख़ुदा के हबीब हो
ऐ मेरे ग़म - गुसार मदीना बुलाइए
जब से सुना है गुम्बद-ए-ख़ज़रा का मरतबा
दिल को नहीं क़रार मदीना बुलाइए
रंज-ओ-अलम में हमने गुज़ारे हैं रात दिन
रोते हैं ज़ार ज़ार मदीना बुलाइए
कर लें दुआ क़ुबूल कि आ जाए न क़ज़ा
सुन लीजिए पुकार मदीना बुलाइए
रब ने गुनाह बख़्शे हैं सदक़े में आपके
हम भी हैं गुनहगार मदीना बुलाइए
तड़पे रज़ा मदीने में जाने को सोचकर
मुझको भी एक बार मदीना बुलाइए
मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन
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- 1222
- 1222
- 1222
वो मंज़र कर्बला का जिस घड़ी भी याद आता है
गले में चुभ गया फ़ौज-ए-लईं का तीर बेकस पे
तड़पता प्यास से मासूम असगर याद आता है
कहीं शमशीर की धारे कहीं पे ख़ूँ की बौछारें
वो चीख़ों का समाँ रोना तड़पना याद आता है
ये थी ईमान की क़ुव्वत ये दिल में रब की चाहत थी
नबी का लाडला सजदे में अपना सर कटाता है
हुसैन इब्न-ए-अली का ही जिगर था ऐ जहाँ वालों
कोई दुनिया में है जो इस तरह वादा निभाता है
ज़माना काँप जाता है 'रज़ा' उस ख़ूनी मंज़र से
जो सुनता दास्तान-ए-कर्बला आँसू बहाता है
ऐ ताज वाले बाबा कर दो करम ख़ुदरा
दर पे तुम्हारे दाता हाथों को है पसारा
रिश्ता हुसैन से है रिश्ता है फ़ातिमा से
हजरत अली से रिश्ता रिश्ता है मुस्तफ़ा से
वालिओं का है घराना तजुलवरा तुम्हारा
दरबार से तुम्हारे ख़ाली न कोई आता
भर जाती सबकी झोली मन की मुराद पाता
चर्चा तुम्हारे दर की करता जहान सारा
अल्लाह का करम है रहमत के तुम धनी हो
फैज़ान-ए-मुस्तफा है उलफत के तुम गनी हो
आले रसूल हो तुम दुखड़ा सुनो हमारा
नज़रे करम हो जिस पर बन जाए जिंदगानी
अपने 'रज़ा' पे कर दो थोड़ी सी मेहरबानी
लाखों कि बिगड़ी क़िस्मत को आपने सँवरा
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