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Friday, August 1, 2025

हम्द-ओ- सलाम, मनक़ब- सलीम रज़ा रीवा



🌸✨🌿 हम्द--मुबारिका 🌿✨🌸


ज़िन्दगी के लम्हों का फ़ैसला तुझी से है

इब्तिदा तुझी से है, इंतिहा तुझी से है

زندگی کے لمحوں کا فیصلہ تجھی سے ہے

ابتدا تجھی سے ہے، انتہا تجھی سے ہے

इंसो-जिन्न, बहर-ओ-बर सब तेरे करिश्मे हैं

इस जहान-ए-फ़ानी की हर अदा तुझी से है

انس و جن، بحر و بر سب تیرے کرشمے ہیں

اس جہانِ فانی کی ہر ادا تجھی سے ہے

कौन है सिवा तेरे, भर दे जो मेरा दामन

बस तेरा सहारा है, आसरा तुझी से है

کون ہے سوا تیرے بھر دے جو میرا دامن

بس تیرا سہارا ہے، آسرا تجھی سے ہے

दर-बदर मैं क्यूँ जाऊँ, क्यूँ किसी के गुन गाऊँ

सब को तू ही देता है, हर सिला तुझी से है

در بدر میں کیوں جاؤں، کیوں کسی کے گن گاؤں

سب کو تُو ہی دیتا ہے، ہر صِلا تجھی سے ہے

पल में तू बनाता है, पल में तू मिटा देता

ज़िंदगी तुझी से है, ज़लज़ला तुझी से है

پل میں تُو بناتا ہے، پل میں تُو مٹا دیتا

زندگی تجھی سے ہے، زلزلہ تجھی سے ہے

क्या बिसात है इसकी, बिन करम मेरे दाता

शायरी की दुनिया में ये ‘रज़ा’ तुझी से है

کیا بساط ہے اس کی، بِن کرم میرے داتا

شاعری کی دنیا میں یہ “رضا” تجھی سے ہے

_________212/1222/212/1222_____________


वो जिसे चाहे अता कर दे ज़माने की ख़ुशी

उसके ही क़ब्ज़े में है, सारे जहाँ की ने’मतें

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इब्तिदा-शुरुआत, इंतिहा-अन्त, निज़ाम-बंदोबस्त, व्यवस्था,

बहरो-बर-ज़मीन और समुन्द्र,  जहान-ए-फ़ानी-नाश हो जाने वाला संसार, ज़लज़ला-भूकंप, बिसात-हैसियत, 

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🌼🌸 मुनाजात 🌸🌼


तेरे हवाले है, ये मेरी ज़िंदगी मौला

तेरा हो रहमो-करम, मुझ पे हर घड़ी मौला

تیرے حوالے ہے، یہ میری زندگی مولا

تیرا ہو رحم و کرم، مجھ پہ ہر گھڑی مولا

झुका दिया है, ये सजदे में मैंने सर अपना

गुनाहगार की पूरी हो बंदगी मौला

جھکا دیا ہے، یہ سجدے میں میں نے سر اپنا

گناہگار کی پوری ہو بندگی مولا

तेरे सुपुर्द किया है, मुक़द्दमा अपना

सभी गुनाह से, कर दे मुझे बरी मौला

تیرے سپرد کیا ہے، مقدمہ اپنا

سبھی گناہ سے، کر دے مجھے بری مولا

हयात चीख़ती फिरती है बरहना अब तो

इसे लिबास अता कर सदाक़ती मौला

حیات چیختی پھرتی ہے برہنہ اب تو

اسے لباس عطا کر صداقتی مولا

मेरी हयात को पतझड़ से तू बसंत बना

तेरे करम से है दुनिया हरी-भरी मौला

میری حیات کو پت جھڑ سے تُو بسنت بنا

تیرے کرم سے ہے دنیا ہری بھری مولا

तेरे ही नूर से हर शय ने रौशनी पाई

तेरे ही दम से मुनव्वर है ज़िंदगी मौला

تیرے ہی نور سے ہر شے نے روشنی پائی

تیرے ہی دم سے منور ہے زندگی مولا

यही दुआ है मेरी मुस्तफ़ा के सदक़े में

‘रज़ा’ की ज़िंदगी गुज़रे हँसी-ख़ुशी मौला

یہی دعا ہے میری مصطفیٰ کے صدقے میں

“رضا” کی زندگی گزرے ہنسی خوشی مولا

30/12/23

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बंदगी- इबादत, हयात-ज़िंदगी, बरहना- बिना बस्त्र, 
सदाक़ती-सच्चाई की, मुनव्वर-रौशन,


🌸✨🌿 हम्द--मुबारिका 🌿✨🌸


बयां कैसे, करे मेरी ज़बाँ, तौक़ीर उस दर की

फ़ज़ाओं पर लहू से दर्ज है, तनवीर जिस घर की

بیاں کیسے کرے میری زباں توقیر اُس دَر کی

فضاؤں پر لہو سے درج ہے تنویر جس گھر کی

जहाँ से कह रही है दास्ताँ ख़ुद प्यासे असग़र की

ज़मीने-कर्बला से हद मिली है हौज़े कौसर की

جہاں سے کہہ رہی ہے داستاں خود پیاسے اصغر کی

زمیں کربلا سے حد ملی ہے حوضِ کوثر کی

बड़ा एहसान है इस्लाम पर, औलाद-ए-हैदर का

हयात-ए-दीन को महका रही है ख़ुशबू असग़र की

بڑا احسان ہے اسلام پر اولادِ حیدر کا

حیاتِ دین کو مہکا رہی ہے خوشبو اصغر کی

अजब था जोश करबल के बहत्तर जाँ निसारों में,

बदन ज़ख़्मीं मगर लब पर सदा ‘अल्लाहु अकबर’ की

عجب تھا جوش کربل کے بہتر جاں نثاروں میں

بدن زخمی مگر لب پر صدا “اللّٰہُ اکبر” کی

नज़र आती है करबल आज भी चश्मे मुसलमाँ में

अजब तासीर है अब तक लहू से भीगे मंज़र की

نظر آتی ہے کربل آج بھی چشمِ مسلم میں

عجب تاثیر ہے اب تک لہو سے بھیگے منظر کی

अली के नाम से लर्ज़ां हैं कसरे बातिला अब भी

ज़बां पर आज भी है दास्ताँ उस जंगे ख़ैबर की

“علی” کے نام سے لرزاں ہیں قصرِ باطلہ اب بھی

زباں پر آج بھی ہے داستاں اُس جنگِ خیبر کی

ख़ुशी से झूमता है आज भी इस्लाम का परचम

ख़ुदा ने लाज रख्खी है “रज़ा” शब्बीर के सर की

خوشی سے جھومتا ہے آج بھی اسلام کا پرچم

خدا نے لاج رکھّی ہے “رضا” شبّیر کے سر کی

🌸✨🌿 सलीम रज़ा रीवा 🌿✨🌸


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سلیم رضا ریوا


🌸✨🌿 हम्द-ए-पाक 🌿✨🌸

حمدِ پاک


तू ही ख़ालिक़ है मालिक है, दाता है तू

यानी आलम का सारे बिधाता है तू

تو ہی خالق ہے، مالک ہے، داتا ہے تو

یعنی عالم کا سارے بِدھاتا ہے تو

एक क़तरा समुंदर बनाता है तू

प्यास आलम की सारे बुझाता है तू

ایک قطرہ سمندر بناتا ہے تو

پیاس عالم کی سارے بُجھاتا ہے تو

हर तसव्वुर से आगे तेरा शाहकार

सिर्फ़ मिट्टी से इंसाँ बनाता है तू

ہر تصور سے آگے تیرا شاہکار

صرف مٹی سے انساں بناتا ہے تو

अक़्ल, इल्म ओ हुनर, दौलतें, शोहरतें

सब को देता है, सब को दिलाता है तू

عقل، علم و ہنر، دولتیں، شہرتیں

سب کو دیتا ہے، سب کو دلاتا ہے تو

तेरी तख़्लीक़ें हैं लफ़्ज़-ए-कुन का असर

एक पल में जो चाहे बनाता है तू

تیری تخلیقیں ہیں لفظِ “کُن” کا اثر

ایک پل میں جو چاہے بناتا ہے تو

रौशनी, रंग, ख़ुशबू, सहर, चाँदनी

हर जगह अपनी रहमत दिखाता है तू

روشنی، رنگ، خوشبو، سحر، چاندنی

ہر جگہ اپنی رحمت دکھاتا ہے تو

जान-दारों में तो रब तेरा ज़िक्र है

पत्थरों को भी कलमा पढ़ाता है तू

جان داروں میں تو رب تیرا ذکر ہے

پتھروں کو بھی کلمہ پڑھاتا ہے تو

रेग-ज़ारों को देता है आब-ए-हयात

और पत्थर पे सब्ज़ा खिलाता है तू

ریگ زاروں کو دیتا ہے آبِ حیات

اور پتھر پہ سبزہ کھلاتا ہے تو

लाज़ रखता है सबके उठे हाथों की,

सबके सज्दों की इज़्ज़त बचाता है तू

لاز رکھتا ہے سب کے اُٹھے ہاتھوں کی

سب کے سجدوں کی عزت بچاتا ہے تو

ज़िंदगी मौत सब तेरे क़ब्ज़े में हैं

सारा आलम बनाता मिटाता है तू

زندگی، موت سب تیرے قبضے میں ہیں

سارا عالم بناتا، مٹاتا ہے تو

सब की सूरत अलग, सब की सीरत अलग

कितने इंसान दुनिया में लाता है तू

سب کی صورت الگ، سب کی سیرت الگ

کتنے انسان دنیا میں لاتا ہے تو

जब अंधेरों के ज़ुल्मो सितम बड़ते हैं

फिर दिए रहमतों के जलाता है तू


جب اندھیروں کے ظلم و ستم بڑھتے ہیں

پھر دئیے رحمتوں کے جلاتا ہے تو

इस ज़मीनो ज़माँ की हरिक चीज़ से

“अपनी क़ुदरत के जलवे दिखाता है तू”

اس زمیں و زماں کی ہر ایک چیز سے

اپنی قدرت کے جلوے دکھاتا ہے تو

ज़र्रे ज़र्रे में उसकी है रहमत “रज़ा”

जिसकी रहमत में हर पल नहाता है तू

ذرّے ذرّے میں اُس کی ہے رحمت “رضا”

جس کی رحمت میں ہر پل نہاتا ہے تو


——- سلیم رضا ریوا   सलीम रज़ा रीवा ——- 


🌸🌺  कर्बला का मंज़र 🌺🌸


ये दिल बेचैन होता है कलेजा काँप जाता है

वो मंज़र कर्बला का जिस घड़ी भी याद आता है

یہ دل بے چین ہوتا ہے کلیجہ کانپ جاتا ہے

وہ منظر کربلا کا جس گھڑی بھی یاد آتا ہے

गले में चुभ गया फ़ौज-ए-लईं का तीर बेकस पे

तड़पता प्यास से मासूम असगर याद आता है

گلے میں چُھب گیا فوجِ لعیں کا تیر بے کس پہ

تڑپتا پیاس سے معصوم اصغر یاد آتا ہے

कहीं शमशीर की धारे कहीं पे ख़ूँ की बौछारें

वो चीख़ों का समाँ रोना तड़पना याद आता है

کہیں شمشیر کی دھاریں، کہیں پہ خُوں کی بُوندھاریں

وہ چیخوں کا سماں، رونا تڑپنا یاد آتا ہے

ये थी ईमान की क़ुव्वत ये दिल में रब की चाहत थी

नबी का लाडला सजदे में अपना सर कटाता है

یہ تھی ایمان کی قوت، یہ دل میں رب کی چاہت تھی

نبی کا لاڈلا سجدے میں اپنا سر کٹاتا ہے

हुसैन इब्न-ए-अली का ही जिगर था ऐ जहाँ वालों

कोई दुनिया में है जो इस तरह वादा निभाता है

حسین ابنِ علی کا ہی جگر تھا اے جہاں والو

کوئی دنیا میں ہے جو اس طرح وعدہ نبھاتا ہے

ज़माना काँप जाता है ‘रज़ा’ उस ख़ूनी मंज़र से

जो सुनता दास्तान-ए-कर्बला आँसू बहाता है

زمانہ کانپ جاتا ہے “رضا” اُس خونی منظر سے

جو سنتا داستاں کربلا آنسو بہاتا ہے


——-मनक़बत——-

बड़ा रुतबा निराला शाह ताहिर क़ादिरी का है

जहाँ में बोल-बाला शाह ताहिर क़ादरी का है


नसब इनका हसन इब्ने अली, शेरे-ख़ुदा से है

घराना कितना आला शाह ताहिर क़ादिरी का है


जिसे पढ़कर हुए हैं इल्म से लबरेज़ दीवाने

वो उल्फ़त का रिसाला शाह ताहिर क़ादिरी का है


जिसे पीकर दिवाने झूमते फिरते हैं मस्ती में 

वो रहमत का पियाला शाह ताहिर क़ादिरी का है


मुनव्वर हो रहे हैं जिस्मो-जाँ उनकी मोहब्बत में

मेरे दिल में उजाला शाह ताहिर क़ादिरी का है


ज़माने भर के दीवाने ‘रज़ा’ आते हैं रौज़े पर

हर एक सू बोल-बाला शाह ताहिर क़ादिरी का है


🌸🌺 सलीम रज़ा रीवा 🌺🌸


ऐ ताज वाले बाबा कर दो करम ख़ुदारा
दर पे तुम्हारे हमने हाथों को है पसारा 

रिश्ता हुसैन से है रिश्ता है फ़ातिमा से
हज़रत अली से रिश्ता रिश्ता है मुस्तफ़ा से
वलिओं क है घराना तजुलवरा तुम्हारा 

दरबार से तुम्हारे ख़ाली न कोई जाता 
भर जाती सबकी झोली मन की मुरादें पाता 
चर्चा तुम्हारे दर की करता जहान सारा 

अल्लाह का करम है रहमत के तुम धनी हो 
फैज़ान-ए-मुस्तफ़ा है उल्फ़त के तुम गनी हो 
आल-ए-रसूल हो तुम दुखड़ा सुनो हमारा 

नज़र-ए-करम हो जिस पर बन जाए ज़िंदगानी
अपने रज़ा पे कर दो थोड़ी सी मेहरबानी 
लाखों कि बिगड़ी क़िस्मत को आपने सँवारा

मेरे अपने कर रहे हैं, साथ मेरे छल बहुत salim raza reaa

मेरे  अपने  कर  रहे  हैं  साथ  मेरे  छल  बहुत ये घुटन अब खाए जाती है मुझे हर पल बहुत बज रही है कानों में अब तक तेरी पायल बहुत तेरी  यादें  क...