कुछ देर बैठने दे मुझे अपनी छाँव में
ताक़त नहीं बची है मेरे हाथ-पाँव में
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मैं थक चुका हूँ शहर की इस भीड़-भाड़ से
पहले ही ठीक-ठाक था मैं अपने गाँव में
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अब कुछ नहीं बचा है के बाज़ी लगाऊँ मैं
सब कुछ तो तूने जीत लिया एक दाँव में
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जी भर के मुझको नाच-नचा ले ऐ ज़िंदगी
अब मैंने घुँघरू बाँध लिये अपने पाँव में
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हुस्न-ए-सदा को लील गया शोर का हुजूम
कोयल की मीठी बोली गई काँव-काँव में
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औरों के घर बसाए हैं जिसने तमाम उम्र
वो ख़ुद ठिकाना ढूँढ रहा अपने गाँव में
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मुझको ग़मों की धूप ने झुलसा दिया ‘रज़ा’
पल-भर न चैन पाया मैं रिश्तों की छाँव में
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کچھ دیر بیٹھنے دے مجھے اپنی چھاؤں میں
طاقت نہیں بچی ہے میرے ہاتھ پاؤں میں
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میں تھک چکا ہوں شہر کی اس بھیڑ بھاڑ سے
پہلے ہی ٹھیک ٹھاک تھا میں اپنے گاؤں میں
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اب کچھ نہیں بچا ہے کہ بازی لگاؤں میں
سب کچھ تو تُو نے جیت لیا ایک داؤ میں
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جی بھر کے مجھ کو ناچ نچا لے اے زندگی
اب میں نے گھنگرو باندھ لیے اپنے پاؤں میں
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حسنِ صدا کو لے گیا شور کا ہجوم
کوئل کی میٹھی بولی گئی کاؤں کاؤں میں
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اوروں کے گھر بسائے ہیں جس نے تمام عمر
وہ خود ٹھکانہ ڈھونڈ رہا اپنے گاؤں میں
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مجھ کو غموں کی دھوپ نے جھلسا دیا ‘رضا’
پل بھر نہ چین پایا میں رشتوں کی چھاؤں میں
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(बह्र)
मुज़ारे मुसम्मन अख़रब मकफ़ूफ़ महज़ूफ़
मफ़ऊल फ़ाइलात मुफ़ाईलु फ़ाइलुन
15/07/25
हुस्न-ए-सदा-ख़ूबसूरत आवाज़, हुजूम-भीड़ भाड़, ग़मों की धूप-परिशानिओं की तपिश,
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सलीम रज़ा रीवा
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salim raza rewa —-سلیم رضا ریو ا