Sunday, August 10, 2025

मौसमों का इशारा है आ जाइए - सलीम रज़ा रीवा

 


मौसमों का इशारा है आ जाइए

धड़कनों ने पुकारा है आ जाइए


ऐसा मौक़ा दुबारा मिले या नहीं 

ख़ूबसूरत  नज़ारा  है  आ जाइए


जब से रुख़्सत हुए आप इस शहर से

बरकतों  का  ख़सारा  है  आ  जाइए


आपके ग़म से जीने का फ़न आ गया

हर सितम  अब  गवारा  है आ जाइए


तुमको अपना बनाने की ख़ातिर सनम

दिल  अभी  तक कुँवारा है, आ जाइए


अब तसव्वुर में भी कोई आता नहीं

दिल  मेरा  बे-सहारा है, आ जाइए


इश्क़  में  इस  क़दर  हो गया हूँ मगन 

अब तो सब कुछ तुम्हारा है आ जाइए


एक तुम्हारे लिए सब को ठुकरा चुका 

ये  ‘रज़ा’  अब  तुम्हारा  है  आ  जाइए


——- 212/212/212/212——-

रुख़्सत-रवाना, ख़सारा-नुक़सान, फ़न-कला, गवारा-मंज़ूर, तसव्वुर-कल्पना, 


موسموں کا اشارہ ہے آ جائیے

دھڑکنوں نے پکارا ہے آ جائیے


ایسا  موقع  دوبارہ  ملے یا  نہیں

خوبصورت نظارہ ہے آ جائیے


جب سے رخصت ہوئے آپ اس شہر سے

برکتوں   کا   خسارہ   ہے   آ   جا  ئیے


آپ کے غم سے جینے کا فن آ گیا

ہر  ستم  اب  گوارا  ہے  آ جائیے


تم  کو  اپنا  بنانے  کی  خاطر صنم

دل ابھی تک کنوارا ہے، آ جائیے


اب تصور میں بھی کوئی آتا نہیں

دل مرا بے سہارا ہے، آ جائیے


عشق میں اس قدر ہو گیا ہوں مگن

اب تو سب کچھ تمہارا ہے آ جائیے


ایک تمہارے لیے سب کو ٹھکرا چکا

یہ  رضا   اب  تمہارا  ہے  آ   جائی


10/07/25


—————————————-

SALIM RAZA REWA 


No comments:

मेरे अपने कर रहे हैं, साथ मेरे छल बहुत salim raza reaa

मेरे  अपने  कर  रहे  हैं  साथ  मेरे  छल  बहुत ये घुटन अब खाए जाती है मुझे हर पल बहुत बज रही है कानों में अब तक तेरी पायल बहुत तेरी  यादें  क...