Showing posts with label - B 20 ग़ज़लें सलीम रज़ा रीवा. Show all posts
Showing posts with label - B 20 ग़ज़लें सलीम रज़ा रीवा. Show all posts

Wednesday, April 24, 2024

B 20 GAZLEN SALIM RAZA REWA

 🅱️ 20  ग़ज़लें

21

मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन फ़ऊलुन 

————————————-


बहारें कब लबों को खोलती हैं

बड़ी हसरत से कलियाँ देखती हैं


भले ख़ामोश हैं ये लब तुम्हारे

मगर आँखे बहुत कुछ बोलती हैं

 

अमीर-ए-शहर का, क़ब्ज़ा है लेकिन

ग़रीबों की दीवारें टूटती हैं

 

समुंदर को कहाँ ख़ुश्की का डर है

वो नदिया हैं जो अक्सर सूखती हैं

 

न जाने कब हटा दें ज़ुल्फ अपनी

उन्हें एक टक ये आँखें देखती हैं

 

'रज़ा' है रब का ये अहसान मुझपर

जो ख़ुशियाँ मेरे घर में खेलती हैं

…..……………ए शेर………………

मेरा महबूब जब संवरता है

हुस्न रह रह के हाथ मलता है

 ………………………………

अमीर-ए-शहर - शहर के धनवान लोग। ख़ुश्की-सूखने।

———————xxx———————


22


मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन फ़ऊलुन 

————————————-

तमन्ना है सँवर जाने से पहले

तुझे देखूँ निखर जाने से पहले

 

कभी मुझपर भी हो नज़र-ए-इनायत

मेरी हस्ती बिखर जाने से पहले 


गुज़रना है मुझे उनकी गली से

वज़ू कर लूँ उधर जाने से पहले


तेरे पहलू में ही निकले मेरा दम

यही ख़्वाहिश है मर जाने से पहले

 

चलो एक प्यार का पौधा लगाएँ

बहारों के गुज़र जाने से पहले

 

चलो इक दूसरे में डूब जाएं

उजालों के उभर जाने से पहले


…..……………ए शेर………………

तुम्हारे प्यार की ख़ुश्बू हमेशा साथ रहती है

तुम्हारी याद के लश्कर कभी तन्हा नहीं करते

………………..………………..

नज़र-ए-इनायत-दया और स्नेह की दृष्टि। हस्ती-हौसला। पहलू-निकट या पास। ख़्वाहिश- इच्छा

____________xxx____________


23

मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन फ़ऊलुन

————————————-

ख़राबी के नज़ारे उग रहे हैं

मुनाफ़े में ख़सारे उग रहे हैं

 

तेरे होटो पे कलियाँ खिल रही हैं

मेरे आँखों में तारे उग रहे है

 

फलक़ चूमे है धरती के लबों को

कि धरती से किनारे उग रहे हैं

 

तुम्हारे इश्क़ में जलने की ख़ातिर

बदन में कुछ शरारे उग रहे हैं

 

फ़लक के चाँद को छूने की ज़िद में

'रज़ा' जी पर हमारे उग रहे हैं


…..……………ए शेर………………

धूप में साया हो जैसे  छाँव का

काकुल-ए-जानाँ में यूँ आराम है

………………. ………………. ……………….

ख़राबी के नज़ारे- खराब होने की अवस्था या भाव। ख़सारा- नुक़सान। फलक़-आसमान। शरारे-चिंगारियाँ

___________ xrxx_____________


24

 मुज़ारे मुसम्मन अख़रब मकफ़ूफ़ महज़ूफ़

मफ़ऊल फ़ाइलात मुफ़ाईलु फ़ाइलुन 
  • 221
  • 2121
  • 1221
  • 212


————————————-

ख़ुशबू  घुली नहीं है पवन में अभी तलक

क्या मौसम-ए-ख़िज़ाँ है चमन में अभी तलक

 

मेरे सुनहरे ख़्वाब जलाकर हैं ख़ुश बहुत

करते हैं शोले रक़्स कफ़न में अभी तलक

 

इस रौशनी ने हमको चबाया है इस क़दर

दाँतों के हैं निशान बदन में अभी तलक

 

हर धर्म के गुलो से महकता है ये चमन

ख़ुशबू बसी है मेरे वतन में अभी तलक

 

अब तो बदन में पहले सी ताक़त नहीं रही

लज़्ज़त मगर वही है सुख़न में अभी तलक


…..……………ए शेर………………

अब भी है रग-रग में क़ाएम प्यार की ख़ुशबू रज़ा
क्या हुआ जो  ज़िस्म  के  कपड़े पुराने हो  गए

……………………………………..

मौसम-ए-ख़िज़ाँ-पतझड़ का मौसम। शोले रक़्स-आग का लपटों का नृत्य। सुख़न-लेखन शायरी

___________ xxx_____________


25

 फ़ाइलुन मुफ़ाईलुन फ़ाइलुन मुफ़ाईलुन

————————————-

जिस तरह से फूलों की डालियाँ महकती हैं 

मेरे घर के आँगन में बेटियाँ महकती हैं 


फूल सा बदन तेरा इस क़दर मोअ'त्तर है 

ख़्वाब में भी छू लूँ तो उँगलियाँ महकती हैं 


माँ ने जो खिलाई थीं अपने प्यारे हाथों से 

ज़ेहन में अभी तक वो रोटियाँ महकती हैं 


उम्र सारी गुज़री हो जिस की हक़-परस्ती में 

उस की तो क़ियामत तक नेकियाँ महकती हैं 


हो गई 'रज़ा' रुख़्सत घर से बेटियाँ लेकिन 

अब तलक निगाहों में डोलियाँ महकती हैं 


…..……………ए शेर………………

जब उठा लेती है माँ हाथ दुआओं के लिए

रास्ते से मेरे तूफ़ान भी हट जाता है

………………………………………..

मोअ'त्तर-ख़ुशबूदार, खुशबू में बसा हुआ,। ज़ेहन-दिमाग़।

हक़-परस्ती-सत्यनिष्ठता, धर्मपरायणता। क़ियामत-प्रलय का दिन, रुख़्सत-विदाई

___________ xxx_____________


26

 फ़ाएलातुन फ़इलातुन फ़ेलुन 

————————————-

इश्क़ का जाम पिला दे मुझको

और बीमार बना दे मुझको


ख़ुश-नुमा रंग ये दिलकश बातें

तेरी आदत न लगा दे मुझको


अपनी उल्फ़त से बचा ले या फिर

अपनी नफ़रत से मिटा दे मुझको


कोई इल्ज़ाम लगाकर मुझ पर

अपने हाथों से सज़ा दे मुझको


तेरा हर फ़ैसला सर आँखों पर 

ज़हर दे या कि दवा दे मुझको


सारी दुनिया से अलग हो जाऊँ

ख़्वाब इतने न दिखा दे मुझको


…..……………ए शेर………………

तेरे दम से है मोहब्बत का वुजूद

तू नहीं तो ज़िंदगी बे-रंग है 

……………………………………

ख़ुश-नुमा-नेत्रप्रिय, प्रियदर्शन, सुंदर। दिलकश-आकर्षक।

___________ xxx_____________


27

 मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन 

————————————-


जिसे हम प्यार करते हैं उसे रुस्वा नहीं करते

हमारे दरमियाँ क्या है कभी चर्चा नहीं करते

 

तुम्हारे प्यार की ख़ुशबू हमेशा साथ रहती  है

तुम्हारी याद के लश्कर मुझे तन्हा नहीं करते

 

उजाले बाँटते फिरते हैं जो दुनिया में लोगों को

किसी सूरत में वो ईमान का सौदा नहीं करते


जहाँ पर ख़ौफ़ के बादल हमेशा मुस्कुराते हैं

परिंदे ऐसी शाख़ों पर कभी बैठा नहीं करते 


रज़ा' सीने में जिनके नूर-ए-ईमाँ जगमगता है

किसी मजबूर पर ज़ुल्मों सितम ढाया नहीं करते


…..……………ए शेर………………

नाम ले ले के तेरा लोग हंसेगें मुझ पर

मेरी चाहत की सनम लाज बचाने आजा

……………………………………………

याद के लश्कर-बहुत सारी यादें। उजाले बाँटना- अच्छा काम करना। नूर-ए-ईमाँ -ईमान की रौशनी।

___________ xxx_____________


28

 मफ़ऊल फ़ाएलातुन मफ़ऊल फ़ाएलातुन 

————————————-

आख़िर ये इश्क़ क्या है जादू है या नशा है

जिसको भी हो गया है पागल बना दिया है


हाथो में तेरे हमदम जादू नहीं तो क्या है

मिट्टी को तू ने छूकर सोना बना दिया है


उस दिन से जाने कितनी नज़रें लगी हैं मुझपर

जिस दिन से तूने मुझको अपना बना लिया है


मैंने तो कर दिया है ख़ुद को तेरे हवाले 

अब तू ही जाने हमदम क्या तेरा फ़ैसला है


इस दिल का क्या करें अब सुनता नहीं जो मेरी

तुझको ही चाहता है तुझको ही सोचता है


पल भर में रूठ जाना पल भर में मान जाना

तेरी इसी अदा ने दिल को लुभा लिया है


खिलता हुआ ये चेहरा यूँ ही रहे सलामत

तू ख़ुश रहे हमेशा मेरी यही दुआ है

____________xxx____________


29

फ़ाएलातुन फ़ाएलातुन फ़ाइलुन

————————————-


ज़िन्दगी का फैसला हो जाएगा

तू सनम जिस दिन मेरा हो जाएगा

 

प्यार की, कुछ बूँद ही मिल जाए तो

गुलशन-ए-दिल फिर हरा हो जाएगा

 

दामन-ए-महबूब जिस दम मिल गया

आँसुओं का हक़ अदा हो जाएगा

 

धड़कनें किसको पुकारें गी मिरी

तू अगर मुझसे जुदा हो जाएगा

 

गर्दिशों की आँच में तपकर 'रज़ा'

एक दिन तू भी खरा हो जाएगा


…..……………ए शेर………………

फिर मैं सजदा करते करते आऊंगा

अपने दर पर मुझको कभी बुलाएं तो

……………………………………………

गुलशन-ए-दिल,दिल का बग़िया। दामन-ए-महबूब

-प्रेमी का दामन । गर्दिशों-परेशानियों 

____________xxx____________


30


 रमल मुसम्मन मख़बून महज़ूफ़ मक़तू

फ़ाएलातुन फ़इलातुन फ़इलातुन फ़ेलुन 
  • 2122
  • 1122
  • 1122
  • 22


————————————-


मेरे महबूब कभी मिलने मिलाने आजा

मेरी सोई हुई तक़दीर जगाने आजा

 

गुलशन-ए-दिल को मोहब्बत से सजाने आजा

बन के ख़ुशबू मिरी साँसों में  समाने आजा

 

नाम ले ले के तेरा लोग हँसेंगे मुझपर

मेरी चाहत की सनम लाज बचाने आजा

 

जिस्म बे-जान हुआ जाता है धीरे-धीरे

रूह बन कर मिरी धड़कन में समाने आजा

 

इससे पहले की मेरे मौत गले लग जाए

अपने वादे को सनम अब तो निभाने आजा

 

तेरी हर एक अदा जान से प्यारी है मुझे

तू हँसाने न सही   मुझको रुलाने  आजा

 

इश्क़ की राह में तन्हा न कहीं हो जाऊँ 

बन के जुगनू तु मुझे राह दिखाने आजा

………………………………………

31

फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़े

————————————-


मेरी तरह वो भी हिम्मत  दिखलाएँ  तो

खुल्लम-खुल्ला मुझ से मिलने आएँ तो

 

आँखों को कुछ सुस्ताने की मुहलत दो

रस्ता तकते तकते  गर थक जाएँ तो

 

मन की प्यास रफू चक्कर हो जाएगी

आँखों के पनघट पे मिलने आएँ तो

 

फिर मैं सजदा करते करते आऊँगा

अपने दर पर मुझको कभी बुलाएँ तो

 

चाहत पर शबनम की बूँदें मल देना

प्यार की साँसें जिस दम मुरझा जाएँ तो

 

ख़्वाबों में आग़ाज़ मिलन का कर देंगे

अब तो मिलन पर पहरे लोग बिठाएँ तो

 

शाम से ही बैठे हैं जाम 'रज़ा' लेकर

यादें उनकी आ कर हमें सताएँ तो

……………………………………..

शबनम-ओस। आग़ाज़- शुरुआत

…………………………………….


32


 रमल मुसम्मन मख़बून महज़ूफ़ मक़तू

फ़ाएलातुन फ़इलातुन फ़इलातुन फ़ेलुन 
  • 2122
  • 1122
  • 1122
  • 22


————————————-


मेरे महबूब बता तुझको भुलाऊँ कैसे

तू मेरी जान है ये जान गवाऊँ कैसे

 

तू कहे तो मैं खुरच डालूँ बदन को लेकिन

तेरी ख़ुशबू मेरी साँसों से मिटाऊँ कैसे

 

तु मुझे याद न कर भूल जा तेरी मर्ज़ी

मैं तेरी याद मेरे दिल से भुलाऊँ कैसे

 

तुझसे फुर्सत ही नहीं मिलती मेरी जान मुझे

तो ख़यालों में किसी और को लाऊँ कैसे

 

तेरी तस्वीर मेरे दिल में बसी है लेकिन

चीर कर दिल को मेरी जान दिखाऊँ कैसे


…..……………ए शेर………………

फूल सा बदन तेरा इस क़दर मोअ'त्तर है 

ख़्वाब में भी छू लूँ तो उँगलियाँ महकती हैं 

……………………………………………


33

मुज़ारे मुसम्मन अख़रब मकफ़ूफ़ महज़ूफ़

मफ़ऊल फ़ाइलात मुफ़ाईलु फ़ाइलुन 
  • 221
  • 2121
  • 1221
  • 212


————————————-


हद से गुज़र गई हैं ख़ताएँ तो क्या करें

ऐसे में उनसे दूर ना जाएँ तो क्या करें

 

उसकी अना ने सारे त’अल्लुक़ मिटा दिए

उस बे-वफ़ा को भूल न जाएँ तो क्या करें

 

मीना भी तू है मय भी तू साक़ी भी जाम भी

आँखों में तेरी डूब न जाएँ तो क्या करें

 

कश्ती को डूबने से बचाया बहुत मगर

हो जाएँ गर ख़िलाफ़ हवाएँ तो क्या करें

 

ख़ुशियों का इंतज़ार 'रज़ा' मुद्दतों से है

पीछा अगर न छोड़ें बलाएँ तो क्या करें


…..……………ए शेर………………

अच्छा किया जो छोड़ दिया साथ हमारा

कब तक सम्भालते ये दिले बेक़रार को

……………………………………………

 ख़ताएँ- ग़लतियाँ। अना-अहंकार। त’अल्लुक़- संबंध ।मीना-शराब का प्याला।मय-शराब। साक़ी -शराब पिलाने वाला । ख़िलाफ़-विपरीत। बलाएँ-मुसीबतें। ज़ीनत- इज़्ज़त

……………………………………………


34


 रमल मुसम्मन मख़बून महज़ूफ़ मक़तू

फ़ाएलातुन फ़इलातुन फ़इलातुन फ़ेलुन 
  • 2122
  • 1122
  • 1122
  • 22

————————————-


दूर रहकर भी तुझे भूल नहीं पाएँगे

याद आएगी तो तड़पेंगे मचल जाएँगे


उम्र भर साथ निभाने का जो वादा कर ले

छोड़कर सब को तेरे पास चले आएँगे


बिन तेरे सांस भी रुक रुक के चला करती है

ऐसा लगता है तेरे हिज्र में मर जाएँगे


अब तो तन्हाई भी हँसती है मेरे आँसू पर

कब तलक ऐसे ही रो-रो के मरे जाएँगे


उनके एल्बम में है तस्वीर पुरानी मेरी        

अब वो देखेंगे तो पहचान नहीं पाएँगे


उनको फलदार अभी और ‘रज़ा’ होने दो

शाख़ के जैसे अभी और लचक जाएंगे

…..……………ए शेर……………… 

दिल में बसा लिया है जब से तुम्हारी सूरत 

तब से सिवा तुम्हारे भाता नहीं है कोई

…………………………………


35

 फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़े

————————————-


बूढ़ी आँखों में भी कितने ख़्वाब सजाए बैठे हैं

जाने कब होंगे पूरे उम्मीद लगाए बैठे हैं

 

दिल की बात ज़ुबाँ तक आए ये ना-मुमकिन लगता है

ख़ामोशी में जाने कितने राज़ छुपाए बैठे हैं


किसको दिल का दर्द बताएँ किसको हाल सुनाएँ हम

ख़ुद ही अपनी मजबूरी का बोझ उठाये बैठे हैं


वो भी बदल जाएँगे इक दिन ऐसी हमें उम्मीद न थी

जिनके प्यार में हम अपना घरबार लुटाए बैठे हैं


कौन है अपना कौन पराया कैसे ‘रज़ा’ पहचानोगे

चेहरों पर तो फ़र्ज़ी चेहरे लोग लगाए बैठे  हैं


…..……………ए शेर………………

मैं ख़ुद  गुनाहगार  हूँ अपनी  निगाह  में

उसके ख़ुलूस--प्यार में कोई कमी नहीं

……………………………………………


36

 फ़ाएलातुन फ़ाएलातुन फ़ाइलुन

————————————-

ज़िंदगी को गुनगुना कर चल दिए

मौत को अपना बना कर चल दिए

 

उम्र भर की दोस्ती जाती रही

आप ये क्या गुल खिलाकर चल दिए

 

अब यकीं उनकी ज़बाँ का क्या करें

जो फ़क़त सपने दिखाकर चल दिए

 

आज उनका दिल दुखा शायद बहुत

बज़्म से आँसू बहा कर चल दिए

 

बे-बसी में और क्या करते  'रज़ा'

दर्द-ओ-ग़म अपना सुनाकर चल दिए


…..……………ए शेर………………

रौनक़ें नही जातीं मेरे घर के आँगन से

दिल अगर नहीं बंटता, घर बंटा नहीं होता

…………………………………

यकीं-भरोसा। ज़बाँ-बात। फ़क़त-सिर्फ़। बज़्म-महफ़िल

———————-xxx——————-


37

 फ़ाएलातुन फ़ाएलातुन फ़ाइलुन

————————————-


ज़िंदगी से मात खाकर सो गए

वो चराग़-ए-जाँ बुझा कर सो गए


धूप का बिस्तर लगाकर सो गए

छाँव सिरहाने दबाकर सो गए


गुफ़्तगू की दिल में ख़्वाहिश थी मगर

वो मेरे ख़्वाबों में आकर  सो गए

 

तंग थी चादर तो हमने यूँ किया

पाँव सीने से लगाकर सो गए

 

उनकी नींदों पर निछावर मेरे ख़्वाब

जो ज़माने को जगाकर सो गए

 

बे-कसी में और क्या करते 'रज़ा'

ख़ुद को ही समझा-बुझा कर सो गए

…..……………ए शेर………….

जी भर के मुझको नाच नचा ले ऐ ज़िंदगी 

मैंने भी घुँघरू कस लिया है अपने पाँव में

…………………..……………..

चराग़-ए-जाँ-बुझाना -मौत को गले लगाना। गुफ़्तगू-बातचीत । ख़्वाहिश-इक्छा। बे-कसी-लाचारी

………………………


38

मुज़ारे मुसम्मन अख़रब मकफ़ूफ़ महज़ूफ़

मफ़ऊल फ़ाइलात मुफ़ाईलु फ़ाइलुन 
  • 221
  • 2121
  • 1221
  • 212


————————————-

हम ने हर इक उमीद का पुतला जला दिया 

दुश्वारियों को पाँव के नीचे दबा दिया 


मेरी तमाम उँगलियाँ घायल तो हो गईं 

लेकिन तुम्हारी याद का नक़्शा मिटा दिया 


मैं ने तमाम छाँव ग़रीबों में बाँट दी 

और ये किया कि धूप को पागल बना दिया 


फिर ख़्वाहिशों ने सर को उठाया नहीं कभी

मजबूरियों को ऐसे ठिकाने लगा दिया 

 

उस के हसीं लिबास पे इक दाग़ क्या लगा 

सारा ग़ुरूर ख़ाक में उस का मिला दिया 


जो ज़ख़्म खा के भी रहा है आप का सदा 

उस दिल पे फिर से आप ने ख़ंजर चला दिया 


उस ने निभाई ख़ूब मिरी दोस्ती 'रज़ा' 

इल्ज़ाम-ए-क़त्ल-ए-यार मुझी पर लगा दिया 

………………….……………….

दुश्वारियों-परेशानियाँ। ग़ुरूर ख़ाक़ में-घमंड मिट्टी में।इल्ज़ाम-ए-क़त्ल-ए-यार,,दोस्त को मारने का आरोप।

………………………


39

 फ़ाएलातुन फ़इलातुन फ़इलातुन फ़इलुन 

————————————-


जगमगाती ये जबीं आरिज़-ए-गुलफा़म रहे

तू जवानी का छलकता हुआ इक जाम रहे

 

गुल-ब-दामाँ तेरी हर सुब्ह रहे शाम रहे 

हर तरफ़ सहन-ए-गुलिस्ताँ में तेरा नाम रहे


सारी दुनिया में तेरे इल्म की ख़ुशबू महके

जब तलक चाँद सितारे  हों तेरा नाम रहे

 

इस तरह तेरे तसव्वुर में मगन हो जाऊँ

मुझको अपनों से न ग़ैरों से कोई काम रहे

 

जब तेरी दीद को हम शहर में तेरे पहुँचे

अपने दामन से न लिपटा कोई इल्ज़ाम रहे

 

तेरी ख़ुशहाली की हरपल ये दुआ करते हैं

तेरे  दामन में  ख़ुशी सुब्ह रहे शाम रहे

 

हर क़दम मेरा उठे तेरी 'रज़ा' की ख़ातिर 

मेरे  होंटो  पे  हमेशा  तेरा  पैगाम  रहे

…………………………………………

जबीं-माथा। आरिज़-ए-गुलफा़म -हसीना का गाल। 

गुल-ब-दामाँ- दामन में फूल। सहन-ए-गुलिस्ताँ-गुलशन के आँगन में। तसव्वुर-ख़्याल। दीद-दीदार,देखने।

………………………


40

 फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़अल

————————————-


तु ग़म भेज दे या ख़ुशी भेज दे 

मेरे हक़ में है जो वही भेज दे


मुअत्तर बना दे फ़जाओं को जो 

हवाओं में वो  ताज़गी  भेज दे 


मिटा दे जो नफ़रत कि हर तीरगी

चराग़ों को वो रौशनी भेज दे


नहीं कोई बख़्शिश क सामाँ ख़ुदा

मेरे घर कोई मुत्तक़ी भेज दे


सुना कर जिसे ख़त्म हो नफ़रतें

मोहब्बत की वो बाँसुरी भेज दे 


फ़ज़ाओं में महके ये मेरा सुख़न

ख़्यालों में वो शायरी भेज दे


हर-इक शय को जिसने है पैदा किया 

वो पत्थर में भी ज़िंदगी भेज दे


जो ख़्वाबों में आती है अक्सर मेरे

हक़ीक़त में भी वो परी भेज दे 

……………………………….. 

मुअत्तर-ख़ुशबूदार। फ़जाओं-वातावरण। बख़्शिश का सामाँ-मरने के बाद मुक्ति का तरीक़ा। मुत्तक़ी-इबादत करने, अल्लाह सेडरने वाला।

………………………

A 20 GAZLEN SALEEM RAZA REWA

  🅰️ 20 ग़ज़लें  01 मुज्तस मुसम्मन मख़बून महज़ूफ़ मस्कन मुफ़ाइलुन फ़इलातुन मुफ़ाइलुन फ़ेलुन  1212 1122 1212 22 ——— ——— —— —— ———- हर एक शय से ज़ि...