Showing posts with label 23 ख़राबी के नज़ारे उग रहे हैं. Show all posts
Showing posts with label 23 ख़राबी के नज़ारे उग रहे हैं. Show all posts

Tuesday, October 24, 2023

ख़राबी के नज़ारे उग रहे हैं Salimraza rewa


ख़राबी के नज़ारे उग रहे हैं 

मुनाफ़े में ख़सारे उग रहे हैं 


तेरे होंटों पे कलियाँ खिल रही हैं 

मेरे आंखो में तारे उग रहे है


फ़लक चूमे है धरती के लबों को

कि धरती से किनारे उग रहे हैं


तुम्हारे इश्क़ में जलने की ख़ातिर 

बदन में कुछ शरारे उग रहे हैं


फ़लक के चाँद को छूने की ज़िद में 

'रज़ा' जी पर हमारे उग रहे हैं

___________xxx__________

خرابی کے نظاریی اُگ رہے ہیں 

منافع میں خسارے اُگ رہے ہیں


ترے ہونںٹوں پہ کلیاں کھل رہی ہیں 

مری آنکھوں میں تارے اُگ رہے ہیں 


فلک چومے ہے دھرتی کے لبوں کو 

کہ دھرتی سے کنارے اُگ رہے ہیں  


تمہارے عشق میں جلنے کی خاطر 

بدن میں کچھ شرارے اُگ رہے ہیں


فلک کے چاند کو چھونے کی زد میں 

رضٓا جی پر ہمارے اُگ رہے ہیں

___________xxx__________

हज़ज मुसद्दस महज़ूफ़

1222 1222 122 

मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन फ़ऊलुन

A 20 GAZLEN SALEEM RAZA REWA

  🅰️ 20 ग़ज़लें  01 मुज्तस मुसम्मन मख़बून महज़ूफ़ मस्कन मुफ़ाइलुन फ़इलातुन मुफ़ाइलुन फ़ेलुन  1212 1122 1212 22 ——— ——— —— —— ———- हर एक शय से ज़ि...