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Thursday, November 30, 2023

सलीम रज़ा के क़तआ'त



शर्मिन्दा जिनकी ख़ुशबू से बू-ए-गुलाब है
रौशन चमक से जिनकी मह-ओ-आफ़ताब है
सूरत पे जिनकी नाज़ है परवरदिगार को
वो सूरत-ए-रसूल ख़ुदा की किताब है
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हुज़ूर-ए-पाक रसूल-ए- ख़ुदा के सदक़े में
हबीब-ए-किब्रिया ख़ैरुल वरा के सदक़े में
दुआएँ उनकी यक़ीनन क़ुबूल होंगी रज़ा
जो माँगते हैं दुआ मुस्तफ़ा के सदक़े में
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उनके दर पर सलाम कह देना
मैं हूँ उनका ग़ुलाम कह देना
उनसे मिलने की दिल में ख़्वाहिश है
मेरा इतना पयाम कह देना
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हाथो में तेरे हमदम जादू नहीं तो क्या है
मिट्टी को तू ने छूकर सोना बना दिया है
उस दिन से जाने कितनी नज़रें लगी हैं मुझपर
जिस दिन से तूने मुझको अपना बना लिया है
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ढल गई अब तो जवानी जिस्म बूढ़ा हो गया
पर तुम्हारे प्यार को बूढ़ा नहीं होने दिया
तुमने भी वादा निभाया इस क़दर की उम्र भर
मुझको पागल कर के फिर अच्छा नहीं होने दिया
❣️24/03/24
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शर्तों पर ही प्यार करोगे ऐसा क्या 
तुम जीना दुश्वार करोगे ऐसा क्या 
लोगों ने तो ज़ख़्म दिए हैं चुन चुन कर
तुम भी दिल पर वार करोगे ऐसा क्या
27/01/24
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मशवरा है उदास लम्हों को
मौत का हुक्म दे दिया जाए
मुँह उठाती हैं ख़्वाहिशें इनको
एक चमाटा लगा दिया जाए
21/01/24
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ज़ख़्म सिलने में कई ज़ख़्म दिए टाँकों ने
कौन से दर्द का इज़हार करूँ मैं पहले
चोट खाया है मेरे जिस्म का हर-इक हिस्सा
कौन से हिस्से को बीमार करूँ मैं पहले
18/01/24
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तेरी तस्वीर खींचने के लिए 
आँख चौखट पे रख के आया हूँ
बन के मेहमान तेरी ग़ुरबत का
लज़्ज़त-ए ग़म को चख़ के आया हूँ
❣️16/01/24
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दिल-ओ-दिमाग़ में हर वक़्त चल रहा है वो
मेरे ख़्यालों की हस्ती कुचल रहा है वो
पटक पटक के निचोड़ा जो उसकी यादों को
तो मेरी आँख के रस्ते निकल रहा है वो
15/01/24
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मेरी ख़्वाहिश है तू मिले और गले लग जाऊँ मैं
बिन तेरे फीकी सिवय्याँ ईद है किस काम की
नीद जो आई तो मुझको ख़्वाब भी आ जाएँगे
ख़्वाब में जो तू न आई  नीद है किस काम की 
15/01/24
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बंदिश ख़्याल रब्त निभाता रहा मगर
इक शेर बा-वक़ार कभी कह नहीं सका
मैंने ज़ुबाँ पे टेप लगाया तो था मगर
कमबख़्त दिल दिमाग़ से चुप रह नहीं सका
15/01/24
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तुम्हारे ख़्वाब में आकर मैं ख़्वाब बाटूँगा
बदन को चीर के दिल का गुलाब बाटूँगा
तमाम राह में तूने सवाल बाँटे हैं
गली गली में मैं तेरा जवाब बाटूँगा
10/01/24
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वाहिद जमा में और मुज़क्कर में फँस गए
कुछ क़ाफ़िए अरुज़ के ख़ंजर में फँस गए
कुछ में तो रब्त कुछ में मुअन्नस का ऐब था
मेरे हसीन शेर तो  चक्कर में फँस गए
05/01/24
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इलाज़-ए-इश्क़ मुसलसल जो कर गए होते
दिलों के ज़ख़्म यक़ीनन ही भर गए होते
तुम्हारे इश्क़ ने मुझको बचा लिया  वर्ना
ग़म-ए-हयात से अब तक तो मर गए होते
01/01/24
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उम्र भर मुश्किलें सहता है वो बच्चों के लिए
अपनी  सब ख़्वाहिशे मिट्टी में दबा देता है
हर ख़ुशी छोड़ के परदेश में अपनों के लिए
क़तरा क़तरा वो पसीने का बहा देता है
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निछावर जिसपे मैंने ज़िंदगी की,
उसे पर्वा नहीं मेरी ख़ुशी की
समझता ही नहीं जो दर्द मेरा,
निगाहों  ने उसी की बंदगी की 
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इक दफ़ा ख़्वाब में ही आ जाओ 
तुमको छूना है तुमको पाना है 
ग़म  फ़क़त ही नहीं है दामन में 
चंद ख़ुशियों का भी ख़ज़ाना है
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उन्हे कुछ न छुपाना चाहिए था
अगर ग़म था बताना चाहिए था
मेरी ख़्वाहिश थी बस दो गज़ ज़मीं की
उन्हें सारा ज़माना चाहिए था
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समुंदर को कहाँ ख़ुश्की का डर है
वो नदिया हैं जो अक्सर सूखती हैं
अमीर-ए-शहर का,क़ब्ज़ा है लेकिन
ग़रीबों की दीवारें टूटती हैं
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नूर चेहरे से यूँ छलकता है
जैसे सूरज कोई चमकता है
एक दफ़ा ख़्वाब में वो क्या आया
घर मेरा अब तलक महकता है
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चाँद का टुकड़ा है या कोई  परी या हूर है 
उसके चहरे से छलकता हर घड़ी इक नूर है
हुस्न पर तो नाज़ उसको ख़ूब था पहले से ही 
आइने को देख कर वो और भी मग़रूर है
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ज़िन्दगी का फैसला हो जाएगा
तू सनम जिस दिन मेरा हो जाएगा
प्यार की, कुछ बूँद ही मिल जाए तो
गुलशन-ए-दिल फिर हरा हो जाएगा
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धूप का बिस्तर लगाकर सो गए
छाँव सिरहाने दबाकर सो गए
गुफ़्तगू की दिल मे ख़्वाहिश थी मगर
वो मेरे ख़्वाबों में आकर  सो गए
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नाज़-ओ-अदा के साथ कभी बे-रुख़ी के साथ
दिल में उतर गया वो बड़ी सादगी के साथ
आएगा मुश्क़िलों में भी जीने का फ़न तुझे
कूछ दिन गुज़ार ले तू मेरी ज़िंदगी के साथ
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हद से गुज़र गई हैं ख़ताएँ तो क्या करें
ऐसे में उसको भूल न जाएँ तो क्या करें
उसकी अना ने सारे तअल्लुक़ मिटा दिए
उस बे-वफ़ा से दूर न जाएँ तो क्या करें
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मौसमों का इशारा है आ जाइए
ख़ूबसूरत नज़ारा है आ जाइए
ऐसा मौक़ा हंसीं फिर मिले न मिले
धड़कनों ने पुकारा है आ जाइए
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पहली किरण के साथ नई रौशनी मिले 
गुलशन की तरह महकी हुई ज़िंदगी मिले
ये है दुआ तुम्हारा मुकद्दर रहे बुलंद
तुमको तमाम उम्र ख़ुशी ही ख़ुशी मिले
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जनाब-ए-‘मीर’ के लहजे की नाज़ुकी कि तरह
तुम्हारे लब हैं गुलाबों की पंखुड़ी की तरह
शगुफ़्ता चेहरा ये  ज़ुल्फ़ें ये नरगिसी आँखे 
तेरा हसीन तसव्वुर है शायरी की तरह 
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मैं उसे चाँद कहूँ, फूल कहूँ, या  शबनम
उसका ही चेहरा हर एक शय पे नज़र आता है
दूर हो जाती है दिनभर की थकन पल भर में
जब मेरा लख़्त-ए-जिगर आके लिपट जाता है
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कोशिशे बेकार होती जा रही हैं आज कल
मुश्किलें भरमार होती जा रही हैं आज कल
चाहिए इनको हमेशा इक दवाई की ख़ुराक
ख़्वाहिशें बीमार होती जा रही हैं आज कल
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शर्मिन्दा जिनकी ख़ुशबू से बू--गुलाब है
रौशन चमक से जिनकी मह-ओ-आफ़्ताब है
सूरत पे जिनकी  नाज़  है परवरदिगार को
वो सूरत--रसूल ख़ुदा की  किताब है
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अपनी ज़ुल्फों को धो रही है शब
और ख़ुशबू निचो रही है शब
मेरे ख़्वाबों की ओढ़कर चादर
मेरे बिस्तर पे सो रही है शब
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मुश्क़िलों में दिल के भी रिश्ते पुराने हो गए
ग़ैर से क्या हो गिला अपने  बेगाने हो गए
अब भी है रग रग में क़ायम प्यार की ख़ुश्बू जनाब
क्या हुआ जो जिस्म के कपड़े पुराने हो  गए
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ये दुनिया ख़ूबसूरत है ज़माना  ख़ूबसूरत है
मुहब्बत की नज़र से देखने की बस जरुरत है
वो  मेरे बिन तड़पते हैं मैं उनके बिन तड़पता हूँ
यही  तो उनकी चाहत है यही मेरी मुहब्बत है
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हर-एक ज़ुल्‍म गुनाह-ख़ता से डरते हैं
जिन्हे है ख़ौफ़--ख़ुदा वो ख़ुदा से डरते हैं
किसी ग़रीब की मुझको न आह लग जाए
इसीलिए तो हर एक बद्दुआ से डरते हैं
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हमने हरिक उम्मीद का पुतला जला दिया
दुश्वारियों को पांव के नीचे दबा दिया
मेरी तमाम उँगलियाँ घायल तो हो गईं
लेकिन तुम्हारी याद का नक़्शा मिटा दिया
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ये और बात है कि वो मिलते नहीं मगर
किसने कहा कि उनसे मेरी दोस्ती नहीं
मैं खुद  गुनाहगार  हूँ अपनी  निगाह  में
उसके वफ़ा ख़ुलूस में कोई कमी नही 
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गुज़रना है मुझे उनकी गली से
वज़ू कर लूँ उधर जाने से पहले
तेरे पहलू में ही निकले मेरा दम
यही ख़्वाहिश है मर जाने से पहले
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माँ की शफ़क़त जहाँ में बड़ी चीज़ है
ये मोहब्बत की धारा मिले न मिले
जी ले खुशिओं की पतवार है हाँथ में
बहर-ए-ग़म में किनारा  मिले न मिले
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मेरा  मज़हब  यही  सिखाता है
सारी  दुनिया  से  मेरा नाता  है    
ज़िन्दगी कम है बाँट  ले खुशियाँ
दिल किसी का तू  क्यूँ  दुखाता है
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दूर जितना ही मुझसे जाएंगे
मुझको उतना क़रीब पाएँगे
कुछ न होगा तो आंख नम होगीं
दोस्त बिछड़े जो याद आएंगे
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कोई इल्ज़ाम लगाकर मुझ पर
अपने हाथों से सज़ा दे मुझको
सारी दुनिया से अलग हो जाऊँ
ख़्वाब इतने न दिखा दे मुझको
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लोग कहते हैं ज़ख़्म गहरा है 
मुद्दतों तक ये भर नहीं सकता
उनकी आदत है यूँ डराने की
मेरी फ़ितरत है डर नहीं सकता 
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ताल में पंछी पनघट गागर चौपालें
कितना सुन्दर गाँव का मंज़र होता है
टूटा-फूटा गिरा-पड़ा कुछ तंग सही
अपना घर तो अपना ही घर होता है
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जिसकी ख़ुश्बू से महक जाए ये दुनिया सारी
फूल गुलशन में कोई ऐसा खिलाना होगा
जिन चराग़ों से ज़माने में उजाला फैले
उन चराग़ों को हवाओ से बचाना होगा
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         कुंडली = दोहा+रोला
सर्दी से घायल हुई थर-थर काँपें धूप
ज़ुल्फ़ सुनहरी खोल कर बदले पल-पल रूप
बदले हर पल रूप, धूप यूँ डरे बेचारा 
सर्दी के डर से है,फिरता मारा- मारा 

A 20 GAZLEN SALEEM RAZA REWA

  🅰️ 20 ग़ज़लें  01 मुज्तस मुसम्मन मख़बून महज़ूफ़ मस्कन मुफ़ाइलुन फ़इलातुन मुफ़ाइलुन फ़ेलुन  1212 1122 1212 22 ——— ——— —— —— ———- हर एक शय से ज़ि...