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Wednesday, November 15, 2023

मैं मनाऊँ तो भला कैसे मनाऊँ उसको Saleem raza rewa

चौदवीं  शब  को सरे बाम वो जब आता है

माह-ए-कामिल भी उसे देख के शरमाता है 

چودویں شب کو سرے بام جب وہ آتا ہے 

ماہِ کامِل بھی اسے دیجھ کہ شرماتا ہے

मैं मनाऊँ तो भला  कैसे मनाऊँ उसको

मेरा महबूब तो बच्चो सा मचल जाता है

میں مناؤں تو بھلا کیسے مناؤں اُسکو

میرا محبُوب تو بچوں سا مچل جاتا ہے

मैं उसे चाँद कहूँ, फूल कहूँ, या  शबनम

उसका ही चेहरा हर एक शय पे नज़र आता है

میں اُسے چاند کہوں پھول کہوں یا شبنم

اُسکا ہی چہرہ ہر اِک شئے  پہ نظر آتا ہے

दूर हो जाती है दिनभर की थकन पल भर में

जब मेरा लख़्त-ए-जिगर आके लिपट जाता है

دور ہو جاتی ہے  دِنبھر کی تھکن پل بھر مین

جبل میرا لختِ جگر آکے لپٹ جاتا ہے

जब तसव्वुर में तेरा चेहरा  बना लेता हूँ

तब कहीं जाके मेरे दिल को सुकूं आता है 

جب تصّور میں تیرا چہرہ بنا لیتا ہوں

تب کہیں جاکے میرے دِل کو سکوں آتا ہے

कितने अल्फाज़ मचलते हैं संवरने के लिए

जब ख़्यालों में कोई  शेर उभर आता है

کتنے الفاظ مچلتے ہیں سنورنے کے لئے

جب خیالوں میں کوئی شیرِ اُبھر آتا ہے

रक़्स करती हैं बहारें भी तेरे आने से

हुस्न मौसम का ज़रा और निखर जाता है

رقص کرتی ہیں بہاریں بھی تیرے آنے سے

حُسن مؤسم کا ذرا اور نِکھر جاتا ہے

जब उठा लेती है माँ हाथ दुआओं के लिए

रास्ते से मेरे तूफ़ान भी हट जाता है

جب اُٹھا لیتی ہے ماں ہاتھ دعاؤں کے لئے

راستے سے میرے طوفان بھی ہٹ جاتا ہے


फ़ाइलातुन फ़यलातुन फ़यलातुन फ़ेलुन 4/2019

2122 1122 1122 22

बहरे रमल मुसम्मन मख़बून महज़ूफ़    

A 20 GAZLEN SALEEM RAZA REWA

  🅰️ 20 ग़ज़लें  01 मुज्तस मुसम्मन मख़बून महज़ूफ़ मस्कन मुफ़ाइलुन फ़इलातुन मुफ़ाइलुन फ़ेलुन  1212 1122 1212 22 ——— ——— —— —— ———- हर एक शय से ज़ि...