Monday, May 26, 2025

D 20 GAZLEN SALIM RAZA REWA

SALIM RAZA REWA KI GAZLEN 

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सारी दुनिया से मेरा नाता है

मेरा मज़हब यही सिखाता है


ज़िन्दगी कम है  बाँट ले खुशियाँ

दिल किसी का तू क्यूँ दुखाता है


हर भटकते हुए मुसाफ़िर को

सीधा रस्ता वही दिखाता है


जिस में है नूर उस की रहमत का 

सारे आलम में जगमगाता है 


रहज़नों की तमाम चालों से

मेरा रहबर मुझे बचाता है


देख कर उस की उलझी ज़ुल्फ़ों को 

दिल परेशान सा हो जाता है 


दोस्त वो है ‘रज़ा’ जो मुश्किल में

अपने यारों के काम आता है।


——2121/122/22————

आलम-विश्व, संसारदुनिया / रहज़न-लूटने वाला,

 डाकूलुटेरा /रहबर- मार्गदर्शक, राह दिखाने वाला .

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62

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गीत ख़ुशियों के हर वक़्त गाते रहो

रंज-ओ-ग़म ज़िंदगी के भुलाते रहो


मोतियों की तरह जगमगाते रहो

बुलबुलों की तरह चहचहाते रहो


फूल गुलशन में खिलते रहें जब तलक़ 

ये दुआ है मेरी, मुस्कुराते रहो


इतनी ख़ुशियाँ मिलें ज़िंदगी में तुम्हें

दोनों हाथों से ख़ुशियाँ लुटाते रहो


इन फ़ज़ाओं में ख़ुशबू बिखर जाएगी

अपनी ज़ुल्फ़ों को यूँ ही उड़ाते रहो


रात ऐसे न कट पाएगी जाग कर

कुछ हमारी सुनो कुछ सुनाते रहो


हम ‘रज़ा’ आपके जाँ-निसारों में हैं

क़िस्सा-ए-दिल हमें भी सुनाते रहो


—————212/212/212/212—————


63

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हार कर रुकना नहीं, मंज़िल भले ही दूर है

ठोकरें खाना, संभलना अज़्म का दस्तूर है


हौसले के सामने, तक़दीर भी झुक जाएगी

तू बदल सकता है क़िस्मत, किसलिए रंजूर है


ख़ाक का पुतला है इंसाँ, ख़ाक में मिल जाएगा

कैसी दौलत, कैसी शुहरत, किसलिए मग़रूर है


अब ख़लाओं में मुसलसल कर रहा इंसाँ सफ़र

कौन सी मंज़िल भला, जो आदमी से दूर है


तेरे जैसे लाखों आए, और गए दुनिया से भी

तू भला किस खेत की मूली है, जो मग़रूर है


वक़्त की चालों से हम डरते नहीं, तू जान ले 

अब सितम सहने का दिल में, हौसला भरपूर है


वक़्त से पहले नहीं मिलता, किसी को कुछ ‘रज़ा’ 

वक़्त के हाथों यहाँ, हर आदमी मजबूर है


————2122/2122/2122/212————

अज़्म - इरादा,हौसला / रंजूर-दुखी, परेशान, उदास। ख़लाओं-अंतरिक्ष/मुसलसल-लगातार / ख़ाक-मिट्टी / मग़रूर-घमंडी 

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64

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तेरी हँसी है किसी फूल और कली की तरह

है तेरा साथ बहारों की ताज़गी की तरह


जनाबे-‘मीर’ के लहजे की नाज़ुकी की तरह

तुम्हारे लब हैं गुलाबों की पंखुड़ी की तरह


शगुफ़्ता चेहरा, ये शोख़ी, ये नर्गिसी आँखें

तेरा हसीन तसव्वुर है शा’इरी की तरह


यूँ ही न बज़्म से, तारीकियाँ हुईं ग़ायब

कोई न कोई तो आया है रौशनी की तरह


न कोई बात, न शिकवा, न कुछ शिकायत थी 

मगर क़रीब से गुज़रा वो अजनबी की तरह 


‘रज़ा’ ये ‘इश्क़ समुंदर की तरह गहरा है 

डुबो ही देता है दिल को, किसी नदी की तरह

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तुम्हारे प्यार की ख़ुशबू हमेशा साथ रहती है

तुम्हारी याद के लश्कर कभी तन्हा नहीं करते

….. 1212/1122/1212/22……

लहजा-कहने या बात करने का ढंग।नाज़ुकी-कोमलता।शगुफ्ता चेहरा-खिला हुआ चेहरा, नर्गिसी-एक फूल जोआँखों की तरह का होता है, तसव्वुर-ख़्याल। तारीकियाँ- अँधेरा————————

65

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गुलशन में अगर फूल नहीं ताज़गी नहीं

ये ज़िन्दगी बग़ैर  तेरे ज़िन्दगी  नहीं

 

तेरे ही दम से खुशियाँ हैं घर-बार में मेरे

होता जो तू नहीं तो ये होती ख़ुशी नहीं

 

ख़ूने-जिगर से मैंने सवाँरी है हर ग़ज़ल

मेरे सुख़न का  रंग कोई  काग़ज़ी नहीं

 

मैं ख़ुद गुनाहगार  हूँ अपनी  निगाह  में

उस की वफ़ा-ख़ुलूस में कोई कमी नहीं

 

छू के दरीचा लौट गया मौसमे-बहार

लगता  है अब नसीब मे मेरे ख़ुशी नहीं


तेरे ही दम से, शे’रों में संदल सी है महक

मुमकिन  तेरे  बग़ैर  मेरी  शा’इरी  नहीं

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उसको खो देने का तब अहसास हुआ

रंग-ए-हिना जब देखा उन के हाथों में  

…………221/2121/1221/212………

ख़ून-ए-जिगर-दिल के ख़ून। ख़ुलूस-ओ-इश्क़-प्रेम और मित्रता। दरिचा-खिड़की या रौशनदान। संदल-चंदन

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वफ़ा की राह पर चलना ‘इबादत की ‘अलामत है

किसी के दर्द को महसूस करना भी मुहब्बत है


ये दुनिया ख़ूबसूरत है, ज़माना ख़ूबसूरत है

मुहब्बत की नज़र से देखने की बस ज़रूरत है


वो मेरे बिन तड़पते हैं, मैं उन के बिन तड़पता हूँ

यही तो उन की चाहत है, यही मेरी मोहब्बत है


मैं तुझ को देख कर ग़म की थकन को भूल जाता हूँ

तेरा मिलना, तेरा पाना, ख़ुदा की मुझ को ने’मत है


वो ख़ालिक़ है, वो मालिक है, वो दाता है ज़माने का

उसी के दस्ते-क़ुदरत में ये इज़्ज़त और ज़िल्लत है


मोहब्बत से ही दुनिया का हर इक दस्तूर है ज़िंदा

हर इक रिश्ता, हर इक नाता, मुहब्बत की बदौलत है


सभी से प्यार से मिलने की आदत है ‘रज़ा’ हम को

यही इंसानियत है, और यही अनमोल दौलत है


—————1222/1222/1222/1222——————

अलामत-इशारा,संकेत, ने’मत- धन,दौलत,इज़्ज़त का मक़ाम, ज़िल्लत-रुसवाई, बेइज़्ज़ती, 

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तेरा हँसना ग़ज़ब मुस्कुराना ग़ज़ब, तेरा चिलमन से बाहर भी आना ग़ज़ब

देख कर क्यूँ न दिल गुनगुनाने लगे, तेरी हर-इक अदा शा’इराना ग़ज़ब

 

शाख़े-गुल झूम कर गुनगुनाने लगी, हर कली देख कर मुस्कुराने लगी

दिल धड़कने लगा है हर-इक फूल का, तेरा बन-ठन के गुलशन में आना ग़ज़ब

 

उफ़ ये लाली ये शोख़ी ये चंचल नयन, फूल से भी है नाज़ुक ये तेरा बदन

इक तो तेरी अदाएँ हैं क़ातिल बड़ी, उसपे मौसम भी है ‘आशिक़ाना ग़ज़ब

 

इस क़दर नूर रुख़ पे चमकने लगा, हुस्न भी देख कर हाथ मलने लगा         

चाल नागन सी घायल करे है जिया, उस पे मुखड़ा तेरा है सुहाना ग़ज़ब 


रब से माँगा था जो वो ख़ुशी मिल गई, आप क्या मिल गए ज़िंदगी मिल गई

खिल उठे हैं रज़ा' फूल ख़ुशियों के अब, मिल गया प्यार का इक ख़ज़ाना ग़ज़ब


 ___________क शे’र____________

ऐ 'रज़ा' कुछ लड़कियाँ जो घर की ज़ीनत थीं कभी

रौनक़-ए-बाज़ार होती जा रही हैं आज कल

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68

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छोड़ कर दर तेरा हम किधर जाएँगे

बिन तेरे आह भर-भर के मर जाएँगे

 

तेरी आमद की जिस दम सुनेगें ख़बर

राह में फूल बन कर बिखर जाएँगे

 

उनकी नज़्रे-करम जिस घड़ी हो गई

सब के दामन मुरादों से भर जाएँगे


बन सँवर के अगर आप आ जाएँ तो

बज़्‍म में सब के चेहरे उतर जाएँगे


‘इश्क़ मुश्किल बहुत है सुना है मगर 

‘इश्क़ में फिर भी हद से गुज़र जाएँगे

_____ 212/212/212/212_____

धूप में साया हो जैसे अब्र का

काकुल-ए-जानाँ में यूँ आराम है

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हिज्र-जुदाई, नज़्रे -करम-इनायत की नज़रबज़्‍म-महफ़िल, अब्र-बादल 

69

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चाँद जैसे मुखड़े पर तिल जो काला काला है

मेरे दिल के आँगन का सुरमई उजाला है

 

बज़्म ये सजी कैसी कैसा ये उजाला है

पुर-महक फ़ज़ाएँ हैँ कौन आने वाला है

 

मुफ़्लिसी से रिश्ता है ग़म से दोस्ती अपनी

मुश्किलों को भी हम ने दिल में अपने पाला है

 

उस की शोख़ नज़रों ने ज़िंदगी बदल डाली

अब तो मेरी दुनिया में हर तरफ उजाला है


 भूल वो गया मुझ को ग़म नहीं 'रज़ा' लेकिन

मैंने उस की यादों को अब तलक सँभाला है

______ 212/1222/212/1222_____

उस की हर-एक अदा पे तो क़ुर्बान जाइए     

मौसम को जिस ने छू के नशीला बना दिया

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मुफ़लिसी- ग़रीबी। शोख़- चंचल।

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70

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तुम को प्यार करते थे तुम को प्यार करते हैं

जाँ निसार करते थे जाँ निसार करते हैं

 

ख़ुश रहे हमेशा तू हर ख़ुशी मुबारक हो

बस यही ‘दुआ रब से बार-बार करते हैं

 

उँगलियाँ उठाते हैं लोग दोस्तों पर भी

हम तो दुश्मनों पर भी ए’तिबार करते हैं

 

हम तो जान दे देते उनके इक इशारे पर

दोस्तों में वो हम को कब शुमार करते हैं

 

आँखें वो ग़ज़ालों सी फूल से खिले चेहरे

मुझ को ख़्वाब में अक्सर बेक़रार करते हैं

_______ 212/1222/212/1222______

रोज़ मिलने की तसल्ली न दिया कर मुझ को

जान ले लेगा किसी रोज़ बहाना तेरा

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ए’तिबार- भरोसा। ग़ज़ाला- हिरन का बच्चा

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71.

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इतना बता दे मुझ को अब मेरी क्या ख़ता है

जो यक-ब-यक ही मुझ से तू इस क़दर ख़फ़ा है


टूटी हुई हैं शाख़ें  मुरझा गई हैं कलियाँ

तेरे बग़ैर दिल का गुलशन उजड़ गया है


ज़ुल्फें हैं बिखरी-बिखरी आँखें हैं सुर्ख़ तेरी

हिज्रे-सनम में शब भर क्या जागता रहा है


तूने तमाम ख़ुशियाँ औरों के नाम कर दीं

तेरी इसी अदा ने दीवाना कर दिया है


फाँसी का हुक़्म देकर ख़्वाहिश वो पूछते हैं

अब क्या उन्हें बताएँ क्या आख़िरी 'रज़ा' है

_______ 221/2122/221/2122______

एक दिन ख़्वाब में वो क्या आए 

घर मेरा आज तक महकता है

………………

ख़ता-ग़लती। यक ब यक- एक दम से। रुख़-चेहरे। हिज्र- जुदाई। आख़िरी रज़ा- अंतिम इक्छा।

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72.

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मुस्कुराती ये नशीली शाम है 

मिल गए तुम जाम का क्या काम है


ये वज़ीफा़ मेरा सुब्हो-शाम है

मेरे लब पर सिर्फ़ तेरा नाम है


मेरा घर ख़ुशियों से है फूला-फला

मेरे रब का ये  बड़ा  इन’आम है


तुम ही साँसों में तुम्ही धड़कन में हो

ज़िन्दगी मेरी  तुम्हारे  नाम  है


धूप में साया हो जैसे अब्र का

काकुले-जानाँ में यूँ आराम है


पा के सुर्खी़ आप के रुख़सार की

ख़ूबसूरत आज कितनी शाम है


उन की क़ुर्बत जो मुझे हासिल हुई

ये मोहब्बत का ‘रज़ा’ इकराम है

……… 2122/2122/212……..

गुलफ़ाम- फूलों की तरह सुंदर,  वज़ीफा़-जाप,  आरास्ता-सजाया हुआ, बना-सँवरा, काकुल-ए-जानाँ-महबूब के बाल,  क़ुर्बत- नज़दीकी,  इकराम-तोहफ़ा,

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सनम तेरे नज़दीक आने से पहले

बहुत ग़म सहे मुस्कुराने से पहले


बहारों का इक शामियाना  बना  दो 

ख़िज़ाओं के गुलशन में आने से पहले


ज़माने को तुमने दिया क्या है सोचो 

ज़माने पे उँगली उठाने से पहले


ग़रीबों की आहों से कैसे बचोगे 

कभी सोचना दिल दुखाने से पहले


मैं उस की मुहब्बत से रौशन हुआ हूँ 

फ़ज़ाओ में यूँ जगमगाने से पहले

 

कभी चल के शोलों पे  भी देखिएगा

'रज़ा' दिल की बस्ती जलाने से पहले

______ 122/122/122/122______

चंद दिन के फ़ासले के बाद हम जब भी मिले

यूँ लगा जैसे मिले हम को ज़माने हो गए 

……………..Nov 18……………..

फ़क़त-सिर्फ़। ख़िज़ाओं-पतझड़ों। आहों-वेदना

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74.

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मुश्किलें भरमार होती जा रही हैं आज कल

कोशिशे बेकार होती जा रही हैं आज कल

 

वो अदा-ए-दिल नशीं, क़ातिल नज़र हुस्ने-तलब

क़ाबिल-ए-इज़हार होती जा रही हैं आज कल

 

चाहिए इन को हमेशा अब दवाओं की ख़ुराक

ख़्वाहिशें बीमार होती जा रही हैं आज कल

 

दौलतो-शुहरत की लालच बढ़ गई है इस क़दर

धड़कनें आज़ार होती जा रही हैं आज कल

 

ऐ 'रज़ा' कुछ लड़कियाँ जो घर की ज़ीनत थीं कभी

रौनक़े-बाज़ार होती जा रही हैं आज कल

2122/2122/2122/212

___________क शे’र____________

लगता है कुछ ख़ुलूसो-मुहब्बत में है कमी

जो उठ के जा रहे हैं तेरे दरमियाँ से लोग

……………..Sep18……………..

अदा-ए-दिल नशीं- मनमोहक अदा। हुस्ने-तलब-माँगने का अच्छा ढंग, क़ाबिल-ए-इज़हार- चर्चा करने के क़ाबिल। ज़ीनत-मर्यादा,सुंदरता का सबब।

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75.

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फ़रेबो-ज़ुल्‍म, गुनाहो- ख़ता से डरते हैं

जिन्हे है ख़ौफ़े-ख़ुदा वो ख़ुदा से डरते हैं

 

न मुश्किलों से, न जौरो -जफ़ा से डरते हैं

ग़में-हयात की  काली घटा से डरते हैं

 

किसी ग़रीब की हम को न आह लग जाए

इसीलिए तो हर-इक बद्दुआ से डरते हैं

 

बड़ा सुकून  है चैनो -क़रार है लेकिन 

बदलते दौर की आब-ओ-हवा से डरते हैं

 

जिन्हें ख़बर है कि ये ‘इश्क़ भी ‘इबादत है

कहाँ वो प्यार- मुहब्बत वफ़ा से डरते हैं

 

ये छीन लेती है सब्र-ओ-क़रार का ‘आलम

हर-एक हसीन की  काफ़िर-अदा से डरते हैं


ख़ता-मु'आफ़ तो होती है जानते हैं “रज़ा”

मगर  गुनाह कि हम इब्तदा से डरते है

……… 1212/1122/1212/22……….

जौर-ओ-जफ़ा- अन्यायपूर्ण,ज़्यादती। काफ़िर-अदा -नाज़-नाखरे। इंतिहा-चरम सीमा,अंतिम

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76

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कहीं पर चीख़ें होंगीं और कहीं चिंगारियाँ होंगी

अगर हाकिम के होते भूक और लाचारियाँ होंगी


खिलें ग़ुंचे शराफ़त के सदाक़त की महक फैले 

मुहब्बत के चमन में फिर ख़ुशी की क्यारियाँ  होंगी


किसी को शौक़ तो होता नहीं ग़ुरबत में जीने का

यक़ीनन सामने उस के बड़ी  दुश्वारियाँ  होंगी


ये होली हम से कहती है यहाँ कब अपने हाथों में

वफ़ा का रंग  होगा प्यार की पिचकारियाँ होंगी


सुख़नवर का ये आँगन है गुल-ए-अश'आर महकेंगे

ग़ज़ल और गीत नज़्मों की यहाँ फुलवारियाँ होंगी


अगर जुगनू मुक़ाबिल में खड़ा है आज सूरज के

यक़ीनन पास उस के भी बड़ी तैयारियाँ होंगी


न छेड़ो, ये समझ कर आग अब ठंडी हुई साहब

मुझे लगता है अब भी राख में चिंगारियाँ होंगी

———— 1222/1222/1222/1222 ————-


77

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वो जिस में, ग़म में जीने का हुनर परफेक्ट होता है

मसाइब के अंधेरों में वही रिफ्लेक्ट होता है


जिसे इंसान कहते हैं ख़ताओं का है वो पुतला

कहाँ दुनिया में कोई आदमी पर्फेक्ट होता है


नहीं हो ‘इश्क़ तो फिर जिंदगानी का मज़ा कैसा 

यही तो हर ज़माने का अहम सब्जेक्ट होता है


हक़ीक़त में निभा लेता है जो किरदार को अपने

मुहब्बत की कहानी में वही रिफ्लेक्ट होता है 


नशे में डूब जाओगे यक़ीनन एक दिन तुम भी 

बदन में ‘इश्क़ धीरे-धीरे ही इंजेक्ट होता है


___________क शे’र____________


क़दम मिला के ज़माने के साथ-साथ चलो

भुला के तर्के-मुहब्बत मिला के हाथ चलो 

——-1222/1222/1222/1222——


* परफेक्ट-उत्तम,पूर्ण * मसाइब-मुसीबत, * रिफ्लेक्ट-प्रतिबिंबित * ख़ताओं-ग़लतीओं * सब्जेक्ट-विषय * इंजेक्ट-प्रवाह, 


78.

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हर वक़्त अब ख़्याल में आने लगे हैं वो 

आँखों से मेरी नींद चुराने लगे हैं वो 


हुस्नो-अदा से मुझको लुभाने लगे हैं वो

दिल में चराग़े-'इश्क़ जलाने लगे हैं वो

 

ये 'इश्क़  है जुनूँ है शरारत है या मज़ाक़

लिख-लिख के मेरा नाम मिटाने लगे हैं वो


अब प्यार का यक़ीन सा होने लगा मुझे 

शरमा के मुझ से नज़रें चुराने लगे हैं वो


उंगली पकड़ के चलना सिखाया ज़िन्हें कभी 

अब साथ मेरा छोड़ के जाने लगे हैं वो


अब तीरगी हटेगी ‘रज़ा’ बज़्मे-नाज़ से 

ज़ुल्फें, रुख़े-हसीं से हटाने लगे हैं वो

221/2121/1221/212

___________क शे’र____________

नाज़ो-अदा के साथ कभी बे-रुख़ी के साथ

दिल में उतर  गया वो बड़ी सादगी के साथ

…………05/18………………..

चराग़-ए-इश्क़-प्रेम का दीपक। जुनूँ-पागलपन। तीरगी- अंधेरा। बज़्म-ए-नाज़-प्रेमिका की गोष्ठी। रुख़-ए-हसीं- सुंदर मुखड़े। यक़ीन-भरोसा

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79.

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हुस्नो-जमालो-‘इश्क़ की ताबिंदगी मिले

या रब मेरे सुख़न को नई रौशनी मिले


मेरे जुनून-ए-‘इश्क़ की है आरज़ू ख़ुदा 

मेरे नसीब में है जो मुझ को अभी मिले


वो चाँदनी जो आबरू है आसमान की

ऐसा न हो ज़मीन पे बिखरी पड़ी मिले


ये है दु’आ तुम्हारा मुक़द्दर रहे बुलंद 

तुम को तमाम उम्र ख़ुशी ही ख़ुशी मिले


 यूँ कौन देगा मुझ को दु’आएँ तुम्हारे बा’द 

शायद तुम्हारे जैसा मुझे अब कोई मिले


मिलता रहा  ख़ुलूसो -मुहब्बत से जो 'रज़ा'

मिलता है आज, जैसे कोई अजनबी मिले

______ 221/2121/1221/212_____

………………….09/18………………….

हुश्न-ओ-जमाल-ओ-इश्क़— प्रेम की बेहद ख़ूबसूरत स्वरूप। ताबिंदगी-जगमगाहट, ज्योति, प्रकाश, नूर, रौशनी सुख़न- शायरी, लेखन। आबरू-इज़्ज़त। ख़ुलूस-निष्कपटता

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80.

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रौशन है उस के दम से सितारों की रौशनी 

रौनक़ लुटा रही है नज़ारों की रौशनी 


वो क्या गया कि चाँदनी बे-लुत्फ़ हो गई 

चुभती है क़ल्बो-जाँ में सितारों की रौशनी

 

क्या जाने किस ग़रीब पे ढाएगी ये सितम 

पागल सी  हो गई है शरारों की रौशनी


उस घर से दूर रहती हैं हर-दम मुसीबतें 

क़ुरआन जिस में है तेरे पारों की रौशनी 


बस वो हैं माहताब ‘रज़ा’ आसमान में 

फीकी है उन के आगे सितारों की रौशनी


______ 221/2121/1221/212____

आँखों को कुछ सुस्ताने की मुहलत दो

रस्ता तकते-तकते  गर थक जाएँ तो

…………………10/19………………..

माहताब -चाँद ।फक़त- सिर्फ़। बे लुत्फ़- बे मज़ा।

क़ल्ब-ओ-जाँ- दिल और जान। शरारों- चिंगारियाँ।

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Nov17

salim raza rewa 

      सलीम रज़ा रीवा        

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मेरे अपने कर रहे हैं, साथ मेरे छल बहुत salim raza reaa

मेरे  अपने  कर  रहे  हैं  साथ  मेरे  छल  बहुत ये घुटन अब खाए जाती है मुझे हर पल बहुत बज रही है कानों में अब तक तेरी पायल बहुत तेरी  यादें  क...