Wednesday, April 24, 2024

D 20 GAZLEN SALEEM RAZA REWA

61. 


मुज़ारे मुसम्मन अख़रब मकफ़ूफ़ महज़ूफ़

मफ़ऊल फ़ाइलात मुफ़ाईलु फ़ाइलुन 

221/2121/1221/212

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मेरे वतन में आते हैं सारे जहाँ से लोग
रहते हैं इस ज़मीन पे अम्न-ओ-अमाँ से लोग

लगता है कुछ ख़ुलूस-ओ-मोहब्बत की है कमी
क्यूँ उठ के जा रहे हैं तेरे दरमियाँ से लोग

मेरा ख़ुलूस मेरी मोहब्बत को देखकर
जुड्ते  गये हैं आके  मेरे कारवाँ  से लोग

कैसा है क़हर कैसी तबाही मेरे ख़ुदा
बिछ्डे हुए हैं अपनो से अपने मकाँ से लोग

हिन्दी अगर है जिस्म तो उर्दू है उसकी जान 
करते हैं  प्यार आज भी  दोनों ज़ुबाँ से लोग

नज़्र-ए-फ़साद  होता रहा घर  मेरा 'रज़ा'  
निकले नहीं मुहल्ले में अपने मकाँ से लोग


_____________क शे’र_______________

क़दम मिला के ज़माने के साथ साथ चलो

भुला के तर्क-ए-मोहब्बत मिला के हाथ चलो

……………………………………………

अम्न-ओ-अमाँ- सुख चैन। ख़ुलूस- स्नेह। क़हर-क्रोध।

नज़्र-ए-फ़साद-लड़ाई झगड़ा।

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62.

रमल मुसम्मन मख़बून महज़ूफ़ मक़तू

फ़ाएलातुन फ़इलातुन फ़इलातुन फ़ेलुन 

2122/1122/1122/22

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कोई रूठा है अगर उसको मनाना होगा

भूल कर शिकवे-गिले दिल से लगाना होगा

 

जिन चराग़ों से ज़माने में उजाला फैले

उन चराग़ों को हवाओं से बचाना होगा

 

जिसकी ख़ुशबू से महक जाए ये दुनिया सारी

फूल गुलशन में कोई ऐसा खिलाना होगा

 

हर ख़ुशी छोड़ के आ जाउँगा तेरी ख़ातिर

शर्त ये है कि मेरा साथ निभाना होगा

 

दिल के रिश्तों को अगर प्यार से जोड़ा जाए

एक बंधन में बँधा सारा ज़माना होगा

 

चाहते हो कि मिटे सब के दिलों से नफ़रत

दुश्मनों को भी  'रज़ा' दोस्त बनाना होगा


_____________क शे’र_______________

छोड़ कर मुझको अगर दूर तुम गए तो फिर

हम ख़यालों में तेरे छुट्टियाँ मनाएँगे

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63.


बहर-ए-हिन्दी मुतकारिब मुसद्दस मुज़ाफ़

फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़े 

22/22/22/22/22/2

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बातों ही बातों में उनसे प्यार हुआ

ये मत पूछो कैसे कब इक़रार हुआ

 

वो शरमाएँ जैसे शरमाएँ कलियाँ

रफ़्ता-रफ़्ता चाहत का इज़हार हुआ

 

दिल की बातें वो ऐसे पढ़  लेता है

दिल न हुआ जैसे कोई अख़बार हुआ

 

उनसे ही ख़ुशियाँ हैं मेरे आँगन में

उनसे ही रौशन मेरा संसार हुआ

 

जब से आँखें उनसे मेरी चार हुईं

तब से 'रज़ा' मेरा जीना दुश्वार हुआ


___________क शे’र_____________

उनके एल्बम में है तस्वीर पुरानी  मेरी

अब वो देखेंगे तो पहचान नहीं पाएँगे 

………………..………………..

रफ़्ता-रफ़्ता- धीरे-धीरे। दुश्वार-मुश्किल

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64.


मुज़ारे मुसम्मन अख़रब मकफ़ूफ़ महज़ूफ़

मफ़ऊल फ़ाइलात मुफ़ाईलु फ़ाइलुन 

221/2121/1221/212

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नश्शा नहीं सुरूर नहीं  बे-ख़ुदी नहीं

उसके बग़ैर ज़िन्दगी ये ज़िन्दगी नहीं
 

वो क्या गया की रौनक-ए-महफ़िल चली गयी

जलते तो हैं चिराग़ मगर रौशनी नहीं


चैन-ओ-सुकून भी  गया होश-ओ-हवास भी 
कैसे कहें कि उनकी ये जादूगरी नहीं 


राह-ए-वफ़ा में ठोकरें खा कर पता चला
मुझ में कमी है यार में कोई कमी नहीं


माँ बाप के ही दम से सभी का वजूद है 
उनसे जहाँ में कोई भी शय क़ीमती नहीं


____________क शे’र______________

ख़यालों में महकती है मुसलसल प्यार की ख़ुशबू

तेरी यादों के लश्कर ने कभी तन्हा नहीं छोड़ा

………………..………………..

नश्शा- नशा।सुरूर-आनंद।  बे-ख़ुदी - होश में न होना। राह-ए-वफ़ा- सच्चाई का मार्ग। शय- वस्तु।

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65.


मुतदारिक मुसम्मन सालिम

फ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ाइलुन 

212/212/212/212

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हम-सफ़र तुम सा प्यारा मिले ना मिले

साथ मुझको  तुम्हारा  मिले ना मिले

 

साँस बनकर रहो धड़कनों में मेरी

मुझको जन्नत ख़ुदारा मिले ना मिले


आजा  तुझको गले से लगा लू  सनम 
इतनी फ़ुरसत दुबारा  मिले ना मिले 


इश्क़ का कर दे इज़हार तन्हा है वो

ऐसा मौक़ा दुबारा मिले ना मिले


वो भी होते तो आता मज़ा और भी

फिर सुहाना  नज़ारा  मिले ना मिले

 

क्या बताये हुई क्या है मुझसे ख़ता

सुनके  नज़रे  दुबारा मिले ना मिले


जी ले ख़ुशियों की पतवार है हाँथ में
बहर-ए-ग़म में किनारा  मिले ना मिले

……………………..………………..

इज़हार- बयान। ख़ता-ग़लती। बहर-ए-ग़म- ग़म की झील

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66.


मुतदारिक मुसम्मन सालिम

फ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ाइलुन 

212/212/212/212

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छोड़कर दर तेरा हम किधर जाएँगे

बिन तेरे आह भर-भर के मर जाएँगे

 

तेरी आमद की जिस दम सुनेगें ख़बर

राह में फूल बन कर बिखर जाएँगे

 

मुझपे नज़्र-ए-करम जिस घड़ी हो गई

मेरे दामन मुरादों से भर जाएँगे

 

आपने फेर ली है नज़र फिर तो अब 

सारे इल्ज़ाम मेरे ही सर जाएँगे


बन सँवर के अगर आप आ जाएँ तो

बज़्‍म में सब के चेहरे उतर जाएँगे


इश्क़ मुश्किल बहुत है सुना है मगर 

इश्क़ में फिर भी हद से गुज़र जाएँगे

___________क शे’र____________

आया है जब से नाम तुम्‍हारा ज़बान पर

होटों ने फिर किसी का भी चर्चा नहीं किया

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हिज्र-जुदाई। बज़्‍म-महफ़िल

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67.


हज़ज मुसम्मन अशतर मक़्फूफ़ मक़्बूज़ सालिम

फ़ाइलुन मुफ़ाईलुन फ़ाइलुन मुफ़ाईलुन

212/1222/212/1222

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चाँद जैसे मुखड़े पर तिल जो काला काला है

मेरे घर के आँगन में सुरमई उजाला है

 

वज़्म ये सजी कैसी कैसा ये उजाला है

महकी सी फ़ज़ाएँ हैँ कौन आने वाला है

 

मुफ़्लिसी से रिश्ता है ग़म से दोस्ती अपनी

मुश्किलों को भी हमने दिल में अपने पाला है

 

उसकी शोख़ नज़रों ने ज़िंदगी बदल डाली

अब तो मेरे जीवन में हर तरफ उजाला है


 भूल वो गया मुझको ग़म नहीं 'रज़ा' लेकिन

हमने उसकी यादों को अब तलक सँभाला है


___________क शे’र____________

उसकी  हर-एक अदा पे तो क़ुर्बान जाइए        

मौसम को जिसने छू के नशीला बना दिया

…………………………………………

मुफ़लिसी- ग़रीबी। शोख़- चंचल।

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68.


हज़ज मुसम्मन अशतर मक़्फूफ़ मक़्बूज़ सालिम

फ़ाइलुन मुफ़ाईलुन फ़ाइलुन मुफ़ाईलुन

212/1222/212/1222

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तुमको प्यार करते थे तुमको प्यार करते हैं

जाँ निसार करते थे जाँ निसार करते हैं

 

ख़ुश रहे हमेशा तू हर ख़ुशी मुबारक हो

बस यही दुआ रब से बार-बार करते हैं

 

उँगलियाँ उठाते हैं लोग दोस्तों पर भी

हम तो दुश्मनों पर भी ए’तिबार करते हैं

 

हम तो जान दे देते उनके इक इशारे पर

दोस्तों में वो हमको कब शुमार करते हैं

 

फूल सा खिला चेहरा आँख वो ग़ज़ालों सी

मुझको ख़्वाब में अक्सर बेक़रार करते हैं


___________क शे’र____________

रोज़ मिलने की तसल्ली न दिया कर मुझको

जान ले लेगा किसी रोज़ बहाना तेरा

…………………………………………

ए’तिबार- भरोसा। ग़ज़ाला- हिरन का बच्चा

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69.


ख़फ़ीफ़ मुसद्दस मख़बून महज़ूफ़ मक़तू

फ़ाएलातुन मुफ़ाइलुन फ़ेलुन 

2122/1212/22 

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इश्क़ तुमसे किया नहीं होता
ज़िन्दगी में मज़ा नहीं होता


ज़िन्दगी तो सँवर गयी होती
तू जो मुझसे जुदा नहीं होता


तेरी चाहत ने कर दिया पागल
प्यार इतना किया नहीं  होता


चोट खाएँ भी मुस्कुराएँ भी
अब तो ये हौसला नहीं होता


सबको दुनिया बुरा बनाती है
कोई इंसाँ बुरा नही होता


___________क शे’र____________

भले ख़ामोश हैं ये लब तुम्हारे

मगर आँखे बहुत कुछ बोलती हैं

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70.


ख़फ़ीफ़ मुसद्दस मख़बून महज़ूफ़ मक़तू

फ़ाएलातुन मुफ़ाइलुन फ़ेलुन 

2122/1212/22 

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दूर  जितना ही मुझसे जाएँगे

मुझको उतना क़रीब पाएँगे

 

फिर से ख़ुशियों के अब्र छाएँगे

डूबते  तारे झिल मिलाएँगे

 

कुछ न होगा तो आंख नम होगीं

दोस्त बिछड़े  जो याद आएँगे

 

माना  पतझड  में हम  हुए वीरां

अब  के  सावन में  लहलहाएँगे

 

इक ग़ज़ल तेरे नाम की लिखकर

सुबह ता शाम  गुनगुनाएँगे


___________क शे’र____________

उनको खो देने का तब अहसास हुआ

रंग-ए-हिना जब देखा उनके हाथों में  

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71.


मुज़ारे मुसम्मन अख़रब

मफ़ऊल फ़ाएलातुन मफ़ऊल फ़ाएलातुन 

221/2122/221/2122

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मुझसे वो जान-ए-जानाँ क्या हो गई ख़ता है
जो यक ब यक ही मुझसे तू हो गया ख़फ़ा है

टूटी हुई हैं शाख़ें  मुरझा गई हैं कलियाँ
तेरे बग़ैर दिल का गुलशन उजड़ गया है

आँखें हैं सुर्ख़ रुख़ पर ज़ुल्फें बिखर रही हैं
हिज्रे सनम में शब भर क्या जागता रहा है

तूने तमाम खुशियाँ औरों के नाम कर दीं
तेरी इसी अदा ने दीवाना कर दिया है

फाँसी की हुक़्म देकर ख़्वाहिश वो पूछते हैं
अब क्या उन्हें बताएं क्या आख़िरी 'रज़ा' है

___________क शे’र____________

जनाब-ए-‘मीर’ के लहजे की नाज़ुकी कि तरह

तुम्हारे लब हैं गुलाबों की पंखुड़ी की तरह

………………..………………..

ख़ता-ग़लती। यक ब यक- एक दम से। रुख़-चेहरे। हिज्र- जुदाई। आख़िरी रज़ा- अंतिम इक्छा।

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72.


रमल मुसद्दस महज़ूफ़ 

2122/2122/212 

फ़ाएलातुन फ़ाएलातुन फ़ाइलुन

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शाम-ए-रंगीं  गुलबदन गुलफ़ाम है

मिल गए तुम जाम का क्या काम है


ये वज़ीफा़ मेरा सुब्ह-ओ-शाम है

मेरे लब पर सिर्फ़ तेरा नाम है


मेरा घर ख़ुशियों से है फूला-फला

मेरे रब का ये  बड़ा  इनआ'म है


तुम ही साँसों में तुम्ही धड़कन में हो

ज़िन्दगी मेरी  तुम्हारे  नाम  है


धूप में साया हो जैसे  छाँव का

काकुल-ए-जानाँ में यूँ आराम है


पा के सुर्खी़ आपके रुख़सार की

ख़ूबसूरत आज कितनी शाम है


आप की क़ुर्बत मुझे हासिल हुई

ये मोहब्बत का मेरे इकराम है

………………..………………..

गुलफ़ाम :- फूलों की तरह सुंदर,, वज़ीफा़ :- दुआ पढ़ना।आरास्ता:- सजाया हुआ, बना-सँवरा, सजा हुआ।काकुल-ए-जानाँ:- महबूब के बाल क़ुर्बत:- नज़दीकी , इकराम :- तोहफ़ा,

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73


मुतकारिब मुसम्मन सालिम

फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़ऊलुन 

122/122/122/122

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फ़क़त तेरे नज़दीक आने से पहले

बहुत ग़म सहे मुस्कुराने से पहले


बहारों का इक शामियाना  बना  दो 

ख़िज़ाओं के गुलशन में आने से पहले

ज़माने को तुमने दिया क्या है सोचो 
ज़माने पे उँगली उठाने से पहले

ग़रीबों की आहों से कैसे बचोगे 
ज़रा सोचना दिल दुखाने से पहले

वो मेरी मोहब्बत से रौशन हुआ है
फ़ज़ाओ में यूँ जगमगाने से पहले
 
कभी चल के शोलों पे  भी देखिएगा
'रज़ा' दिल की बस्ती जलाने से पहले


___________क शे’र____________

चंद दिन के फ़ासले के बाद हम जब भी मिले

यूँ लगा जैसे  मिले  हमको ज़माने  हो गए 

……………..Nov 18……………..

फ़क़त-सिर्फ़। ख़िज़ाओं-पतझड़ों। आहों-वेदना


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74.


रमल मुसम्मन महज़ूफ़

फ़ाएलातुन फ़ाएलातुन फ़ाएलातुन फ़ाइलुन 

2122/2122/2122/212

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मुश्किलें भरमार होती जा रही हैं आज कल

कोशिशे बेकार होती जा रही हैं आज कल

 

वो अदा-ए-दिल नशीं, क़ातिल नज़र हुस्न ओ हुनर

क़ाबिल-ए-इज़हार होती जा रही हैं आज कल

 

चाहिए इनको हमेशा इक दवाई की ख़ुराक

ख़्वाहिशें बीमार होती जा रही हैं आज कल

 

दौलत-ओ-शोहरत का लालच बढ़ गई हैं इस क़दर

ज़िंदगी आज़ार होती जा रही हैं आज कल

 

ऐ 'रज़ा' कुछ लड़कियाँ जो घर की ज़ीनत थीं कभी

रौनक़-ए-बाज़ार होती जा रही हैं आज कल


___________क शे’र____________

लगता है कुछ ख़ुलूस-ओ-मोहब्बत मे है कमी

क्यूं उठ के जा रहे हैं बता दरमियाँ से लोग

……………..Sep18……………..

अदा-ए-दिल नशीं- मनमोहक अदा। क़ाबिल-ए-इज़हार- चर्चा करने के क़ाबिल। ज़ीनत-मर्यादा,सुंदरता का सबब

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75.


बहरे मुजतस मुसमन मख़बून महज़ूफ

मुफ़ाइलुन फ़यलातुन मुफ़ाइलुन फ़ेलुन

1212   1122   1212   22

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हर-एक ज़ुल्‍म गुनाह-ओ- ख़ता से डरते हैं

जिन्हे है ख़ौफ़-ए-ख़ुदा वो ख़ुदा से डरते हैं

 

न मुश्किलों से न जौर-ओ-जफ़ा से डरते हैं

ग़म-ए-हयात की  काली घटा से डरते हैं

 

किसी ग़रीब की आह-ए-जिगर न लग जाए

इसीलिए तो हर-इक बद्दुआ से डरते हैं

 

बड़ा सुकून  है चैन-ओ-क़रार है दिल को

बदलते दौर की आब-ओ-हवा से डरते हैं

 

जिन्हें ख़बर ही नहीं इश्क़ भी इबादत है

वही तो प्यार- मोहब्बत वफ़ा से डरते हैं

 

ये छीन लेती है सब्र-ओ-क़रार का आलम

किसी हसीन की  काफ़िर-अदा से डरते हैं


ख़ता-मुआ'फ़ तो होती है जानते हैं 'रज़ा'

किसी  गुनाह कि हम इंतिहा से डरते है

………………………………………….

जौर-ओ-जफ़ा- अन्यायपूर्ण,ज़्यादती। काफ़िर-अदा -नाज़-नाखरे। इंतिहा-चरम सीमा,अंतिम

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76.


रमल मुसम्मन महज़ूफ़

2122  2122    2122   212

फ़ाएलातुन फ़ाएलातुन फ़ाएलातुन फ़ाइलुन

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वो हसीं क़ातिल अदाएँ गुल-फ़िशानी अब कहाँ

वो लब-ओ-रूख़्सार वो रंगत सुहानी अब कहाँ


गुलशन-ए-दिल का वो माली खो गया जाने किधर

वो नहीं तो ग़ुंचा-ओ-गुल  रात रानी अब कहाँ 


दोस्तों संग खेलना  छुपना दरख़्तों  के  तले

वो  सुहाना पल कहाँ यादें सुहानी अब कहाँ


थप-थपाकर गुन-गुनाकर मुझको बहलाती थीं जो

खो गईं वो लोरियाँ अब वो कहानी अब कहाँ


पेंड  बरगद का घना जो  छाँव देता था कभी

गाँव में मिट्टी का घर, छप्पर वो छानी अब कहाँ


बन के मेहमाँ घर में आते थे फ़रिश्तों की तरह

अब कहाँ मेहमान ऐसे मेज़बानी अब कहाँ 


ढल गई अब तो जवानी जिस्म बूढ़ा हो गया

फिर न लौटेगा वो बचपन वो जवानी अब कहाँ

……………………………………………….

हसीं -हसीन,सुंदर। गुल-फ़िशानी-फूल बरसाना।

लब-ओ-रूख़्सार- होंट और चेहरा। गुलशन-ए-दिल-दिल का गुलशन। ग़ुंचा-ओ-गुल-कली और फूल। छप्पर वो छानी-घास फूँस की छत। फ़रिश्तों- देव दूत। मेज़बानी-अतिथि सत्कार

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77.


बहरे हज़ज  मुसम्मन सालिम

1222 1222 1222 1222

मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन

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जिधर देखो उधर मेहनत-कशों की ऐसी हालत है

ग़रीबों  की  जमा’अत पर अमीरों की हुक़ूमत है


ग़रीबों के घरों में रहबरों देखो कभी जा कर

वहां ख़ुशियाँ नहीं हैं सिर्फ़ फ़ाक़ा और ग़ुरबत है


कहीं इस्मत फ़रोशी है कहीं नफ़रत कहीं दहशत 

ज़माने में जिधर देखो क़ियामत ही क़ियामत है


कभी कलियों का मुस्काना कभी फूलों का मुरझाना

ये क़ुदरत के तक़ाज़े हैं यही गुलशन की क़िस्मत है


रज़ा साहिब चलो ग़ोता-ज़नी कि मश्क़ करते हैं 

समुन्दर के ख़ज़ाने में बड़ी अनमोल दौलत है


___________क शे’र____________

दूर हो जाती है दिनभर की थकन पल भर में

जब मेरा लख़्त-ए-जिगर आके लिपट जाता है

……………………………………………

जमा’अत- वर्ग,ज़ात। रहबरों-राह दिखने वालों। फ़ाक़ा और ग़ुरबत-खाना न होना ,ग़रीब होना। इस्मत फ़रोशी-जिस्म व्यापार। क़ुदरत के तक़ाज़े- प्राकृति की ज़रूरत।ग़ोताजनि कि मश्क़- गोता लगाने की प्रैक्टिस।

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78.


मुज़ारे मुसम्मन अख़रब मकफ़ूफ़ महज़ूफ़

221  2121  1221  212

मफ़ऊल फ़ाइलात मुफ़ाईलु फ़ाइलुन 

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नाज़-ओ-अदा से मुझको लुभाने लगे हैं वो

दिल में चराग़-ए-इश्क़ जलाने लगे हैं वो

 

ये इश्क़ है जुनूँ है शरारत है या मज़ाक़

लिख लिख के मेरा नाम मिटाने लगे है वो


जब तीरगी सी छाने लगी बज़्म-ए-नाज़ में

ज़ुल्फें, रुख़-ए-हसीं से हटाने लगे हैं वो


अब प्यार का यक़ीन सा होने लगा मुझे 

शरमा के मुझसे नज़रें चुराने लगे हैं वो

 

उंगली पकड़ के चलना सिखाया जिन्हे 'रज़ा'

अब साथ मेरा छोड़ के जाने लगे हैं वो


___________क शे’र____________

नाज़-ओ-अदा के साथ कभी बे-रुख़ी के सा

दिल में उतर  गया वो बड़ी सादगी के साथ


…………………05/18………………………..

नाज़-ओ-अदा-दिल रुबा अंदाज़। चराग़-ए-इश्क़-प्रेम का दीपक। जुनूँ-पागलपन। तीरगी- अंधेरा। बज़्म-ए-नाज़-प्रेमिका की गोष्ठी। रुख़-ए-हसीं- सुंदर मुखड़े। यक़ीन-भरोसा

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79.


मुज़ारे मुसम्मन अख़रब मकफ़ूफ़ महज़ूफ़

मफ़ऊल फ़ाइलात मुफ़ाईलु फ़ाइलुन 

221 2121 1221 212

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हुस्न-ओ-जमाल-ओ-इश्क़ में डूबी हुई मिले

यानी मेरे सुख़न को नई रौशनी मिले

 

वो चाँदनी जो आबरू है आसमान की

ऐसा न हो ज़मीन पे घायल पड़ी मिले

 

कल की मुझे उमीद नहीं है मेरे ख़ुदा

मेरे नसीब में है जो मुझको अभी मिले

 

ये है दुआ तुम्हारा मुकद्दर  बुलंद  हो

तुमको तमाम उम्र ख़ुशी ही ख़ुशी मिले

 

मिलता रहा  ख़ुलूस-ओ-मोहब्बत से जो 'रज़ा'

मिलता है आज,जैसे कोई अजनबी मिले


___________क शे’र____________

छूके दरिचा लौट गया मौसम-ए- बहार

लगता  है अब नसीब मे मेरे ख़ुशी नहीं


……………….09/18………………….

हुश्न-ओ-जमाल-ओ-इश्क़— प्रेम की बेहद ख़ूबसूरत स्वरूप। सुख़न- शायरी, लेखन। आबरू-इज़्ज़त। ख़ुलूस-निष्कपटता

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80.


मुज़ारे मुसम्मन अख़रब मकफ़ूफ़ महज़ूफ़

मफ़ऊल फ़ाइलात मुफ़ाईलु फ़ाइलुन 

221/2121/1221/212

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रौशन है उसके दम से सितारों की रौशनी 

ख़ुश्बू लुटा रही है बहारों की रौशनी

 

इक वो है माहताब फक़त आसमान में 

फीकी है जिसके आगे हज़ारों की रौशनी

 

तुम क्या गए कि चांदनी बे-लुत्फ़ हो गई 

चुभती है क़ल्ब-ओ-जाँ में सितारों की रौशनी

 

क्या जाने किस ग़रीब पे ढाएगी ये सितम 

पागल सी  हो गई है शरारों की रौशनी


उस घर से दूर रहती हैं हरदम मुसीबतें 

जिस घर में क़ुरान की के पारों की रौशनी 

___________क शे’र____________

आँखों को कुछ सुस्ताने की मोहलत दो

रस्ता तकते तकते  गर थक जाएँ तो

…………………10/19………………..

माहताब -चाँद ।फक़त- सिर्फ़। बे लुत्फ़- बे मज़ा।

क़ल्ब-ओ-जाँ- दिल और जान। शरारों- चिंगारियाँ।


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Nov17
           ली रज़ा रीवा              

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A 20 GAZLEN SALEEM RAZA REWA

  🅰️ 20 ग़ज़लें  01 मुज्तस मुसम्मन मख़बून महज़ूफ़ मस्कन मुफ़ाइलुन फ़इलातुन मुफ़ाइलुन फ़ेलुन  1212 1122 1212 22 ——— ——— —— —— ———- हर एक शय से ज़ि...