🅰️ 20 ग़ज़लें
01
मुफ़ाइलुन फ़इलातुन मुफ़ाइलुन फ़ेलुन
- 1212
- 1122
- 1212
- 22
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हर एक शय से ज़ियादा वो प्यार करता है
तमाम खुशियाँ वो मुझपर निसार करता है
मैं दिन को रात कहूँ वो भी दिन को रात कहे
यूँ आँख मूँद के वो ऐ’तिबार करता है
मै जिसके प्यार को अब तक समझ नही पाया
तमाम रात मेरा इंतज़ार करता है
हमें तो प्यार है गुल से चमन से ख़ुशबू से
वो कैसा शख़्स है फूलों पे वार करता है
मुझे उदास निगाहों से देखना उनका
अभी भी दिल को मेरे बेक़रार करता है
उसे ही ख़ुल्द की नेमत नसीब होगी ‘रज़ा’
ख़ुदा का ज़िक्र जो लैल-ओ-नहार करता है
…..……………एक शे’र…………………
अब तलक इन ज़'ईफ़ आँखों में
सिर्फ़ तेरा बदन चमकता है
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हर शय- हर चीज़ ।लैल-ओ-नहार-रात और दिन
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02
मुफ़ाइलुन फ़इलातुन मुफ़ाइलुन फ़ेलुन
- 1212
- 1122
- 1212
- 22
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…..……………एक शे’र…………………
मुझकॊ मेरे ख़्यालों के पर काटने पड़े
उसकी उड़ान थी मेरी औक़ात से सिवा
03
मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन फ़ऊलुन
- 1222
- 1222
- 122
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निछावर जिसपे मैंने ज़िंदगी की
उसे पर्वा नहीं मेरी ख़ुशी की
समझता ही नहीं जो दर्द मेरा
निगाहों ने उसी की बंदगी की
वही इक शख़्स जो कुछ भी नहीं है
हर इक मुश्किल में उसने रहबरी की
अँधेरे भागते हैं दुम दबाकर
उजालों से जो मैंने दोस्ती की
उसे पागल बना डाला किसी ने
कभी जो अबरू थी इस गली की
…..……………एक शे’र…………………
हर इक ज़र्रे का वो ख़ालिक है यारो
उसी के हाथ में सब की ज़िंदगी है
……………………………………..,
पर्वा, परवाह - चिंता। ख़ालिक-सष्टि की रचना करनेवाला, ख़ुदा
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04
मुफ़ाइलुन फ़इलातुन मुफ़ाइलुन फ़ेलुन
- 1212
- 1122
- 1212
- 22
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रोज़ी हलाल- ईमानदारी की कमाई।ज़वाल - उन्नति का उलटा,पद से गिर जान।माज़ी-गुज़रा हुआ वक़्त, अतीत।जाह-ओ-जलाल :-पद और वैभव, गरिमा।तर्क-ए-त'अल्लुक़ात :-रिश्ता तोड़/छोड़ देना,
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05
फ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ाइलुन
- 212
- 212
- 212
- 212
- 212
- 212
- 212
- 212
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तेरा हँसना ग़ज़ब मुस्कुराना ग़ज़ब तेरा चिलमन में चेहरा छुपाना ग़ज़ब
देखकर क्यूँ न दिल गुनगुनाने लगे तेरी हर-इक अदा शायराना ग़ज़ब
डालियाँ झूमकर गुनगुनाने लगीं हर कली देखकर मुस्कराने लगीं
दिल धड़कने लगा है हर-इक फूल का तेरा वन-ठन के गुलशन में आना ग़ज़ब
उफ़ ये लाली ये शोख़ी ये चंचल नयन फूल से भी है नाज़ुक ये तेरा बदन
इक तो तेरी अदाएँ हैं क़ातिल बड़ी उसपे मौसम भी है आशिक़ाना ग़ज़ब
इस क़दर नूर रुख़ से चमकने लगा हुस्न भी देखकर हाथ मलने लगा
चाल नागन सी घायल करे है जिया उस पे मुखड़ा तेरा है सुहाना ग़ज़ब
रब से माँगा था जो वो ख़ुशी मिल गई आप क्या मिल गए ज़िंदगी मिल गई
खिल उठे हैं रज़ा' फूल ख़ुशियों के अब मिल गया प्यार का इक ख़ज़ाना ग़ज़ब
…..……………एक शे’र…………………
जिनके खिलने से दुनिया का हर गुलशन आबाद हुआ
उन कलिओं की ख़ुशी सजाकर शहनाई मुस्काती है
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06
मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन फ़ऊलुन
- 1222
- 1222
- 122
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नहीं कुछ भी छुपाना चाहिए था
अगर ग़म था बताना चाहिए था
मेरी ख़्वाहिश थी बस दो गज़ ज़मीं की
उन्हें सारा ज़माना चाहिए था
मुझे अपना बनाने के लिए तो
न माल-ओ-ज़र ख़ज़ाना चाहिए था
समझ लेता निगाहों का इशारा
ज़रा सा मुस्कुराना चाहिए था
महक जाता ये जिस्म-ओ-जाँ तुम्हारा
मोहब्बत में नहाना चाहिए था
…..……………एक शे’र…………………
मैं मनाऊँ तो भला कैसे मनाऊँ उसको
मेरा महबूब तो बच्चों सा मचल जाता है
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ख़्वाहिश- इच्छा। माल-ओ-ज़र-धन-दौलत, रुपया-पैसा। ख़ुश्की का- सूखने का।
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07
मफ़ऊल फ़ाइलात मुफ़ाईलु फ़ाइलुन
- 221
- 2121
- 1221
- 212
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कैसे कहें की इश्क़ ने क्या क्या बना दिया
राधा को श्याम, श्याम को राधा बना दिया
उस बेर की मिठास तो बस जाने राम जी
शबरी ने जिसको चख के है मीठा बना दिया
यूसुफ़ न बन सका कभी तेरी निगाह में
लेकिन तुझे तो मैंने ज़ुलेख़ा बना दिया
ये इश्क़ है जुनूँ है मोहब्बत है या नशा
मजनू बना दिया कभी राँझा बना दिया
खिलता रहे ख़ुलूस-ओ-मोहब्बत का ये चमन
ये सोच के ख़ुदा ने ज़माना बना दिया
…..……………एक शे’र…………………
एक दफ़ा ख़्वाब में वो क्या आया
घर मेरा अब तलक महकता है
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यूसुफ़-पैग़म्बर जो अत्यंत सुन्दर थे। ज़ुलेख़ा -मिस्र की महारानी जो यूसुफ़ पर आशिक़ थी, यूसुफ़-ज़ुलेख़ा की प्रेम कहानी की प्रेमिका। ख़ुलूस-ओ-मोहब्बत- प्यार और मोहब्बत,
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08
फ़ाएलातुन फ़इलातुन फ़इलातुन फ़ेलुन
- 2122
- 1122
- 1122
- 22
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अपने हर ग़म को वो अश्कों में पिरो लेती है
बेटी मुफ़लिस की खुले घर में भी सो लेती है
तब मुझे दर्द का एहसास बहुत होता है
जब मेरी लख़्त-ए-जिगर आंख भिगो लेती है
मैं अकेला नहीं रोता हूँ शब-ए-हिज्राँ में
मेरी तन्हाई मेरे साथ में रो लेती है
अपने दुःख दर्द को मैला नहीं होने देती
अपनी आँखों से वो हर दर्द को धो लेती है
जब भी ख़ुश होके निकलता हूँ ‘रज़ा’ मैं घर से
मेरी मायूसी मेरे साथ में हो लेती है
…..……………एक शे’र…………………
कितने अल्फाज़ मचलते हैं सँवरने के लिए
जब ख़्यालों में कोई शेर उभर आता है
………………………………..
मुफ़लिस-ग़रीब। लख़्त-ए-जिगर-बेटा या बेटी,
शब-ए-हिज्राँ- वियोग की रात
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09
मुफ़ाइलुन फ़इलातुन मुफ़ाइलुन फ़ेलुन
- 1212
- 1122
- 1212
- 22
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समझ रहा था जिसे अपना वाक़ई अब तक
वो कर रहा था मेरे दिल से दिल-लगी अब तक
रदीफ़ क़ाफ़िया बंदिश ख़याल सब तू है
मैं तेरे नाम से करता हूँ शा’इरी अब तक
…..……………एक शे’र…………………
वाक़ई- सच में। ख़ुश्क-सूख जाना
आगही-समझ-बूझ, awareness।
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10
❗️ फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़े ❗️
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………………..…………….
ज़र्रे-ज़र्रे में- कण कण में। हर-शय-हर चीज़
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11
फ़ाएलातुन फ़इलातुन फ़इलातुन फ़ेलुन
- 2122
- 1122
- 1122
- 22
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…..……………एक शे’र…………………
यूसुफ़ न बन सका कभी तेरी निगाह में
लेकिन तुझे तो मैंने ज़ुलेख़ा बना दिया
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तसल्ली-दिलासा। शब-ओ-रोज़-रात दिन। महफिल-ए- हुस्न- सौंदर्य का सभा। दिलकश मंज़र- दिल को लुभाने वाला दृश्य। -लब-ए-नाज़ुक-कोमल होट
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12
मुज्तस मुसम्मन मख़बून महज़ूफ़ मस्कन
- 1212
- 1122
- 1212
- 22
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'रज़ा' जी आप तो मिलकर उदास बैठे हैं
…..……………एक शे’र…………………
बिन तेरे रात गुज़र जाए बड़ी मुश्किल है
और फिर याद भी न आए बड़ी मुश्किल है
………………………………….
याद के लश्कर- यादों का समूह।मंज़र- दृश्य,। रिंदों- शराबी,। मह-ओ-अख़्तर- चाँद और सूरज,
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13
फ़ाएलातुन फ़इलातुन फ़इलातुन फ़ेलुन
- 2122
- 1122
- 1122
- 22
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बिन तेरे रात गुज़र जाए बड़ी मुश्किल है
और फिर याद भी न आए बड़ी मुश्किल है
खोल कर बैठे हैं छत पर वो हसीं ज़ुल्फ़ों को
ऐसे में धूप निकल आए बड़ी मुश्किल है
मेरे महबूब का हो ज़िक्र अगर महफ़िल में
और फिर आँख न भर आए बड़ी मुश्किल है
वो हसीं वक़्त जो मिल कर के गुज़ारा था कभी
फिर वही लौट के आ जाए बड़ी मुश्किल है
वो सदाक़त वो सख़ावत वो मोहब्बत लेकर
फिर कोई आप सा आ जाए बड़ी मुश्किल है
…..……………एक शे’र…………………
दिल की बातें वो ऐसे पढ़ लेता है
दिल न हुआ जैसे कोई अख़बार हुआ
……………………..…………………….
सदाक़त- सच्चाई,। सख़ावत- उदारता, दरियादिली,
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14
फ़ाएलातुन फ़इलातुन फ़इलातुन फ़ेलुन
- 2122
- 1122
- 1122
- 22
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चौदवीं शब को सर-ए-बाम वो जब आता है
माह-ए-कामिल भी उसे देख के शरमाता है
मैं उसे चाँद कहूँ, फूल कहूँ, या शबनम
उसका ही चेहरा हर इक शय में नज़र आता है
रक़्स करती हैं बहारें भी तेरे आने से
हुस्न मौसम का ज़रा और निखर जाता है
कितने अल्फाज़ मचलते हैं सँवरने के लिए
जब ख़्यालों में कोई शेर उभर आता है
मैं मनाऊँ तो भला कैसे मनाऊँ उसको
मेरा महबूब तो बच्चो सा मचल जाता है
जब उठा लेती है माँ हाथ दुआओं के लिए
रास्ते से मेरे तूफ़ान भी हट जाता है
…..……………एक शे’र…………………
जिसकी ख़ुशबू से महक जाए ये दुनिया सारी
फूल ऐसा कोई गुलशन में खिलाना होगा
………………….……………….
सर-ए-बाम-छत के ऊपर। माह-ए-कामिल -चौदहवीं का पूरा चाँद । तसव्वुर-ख़्यालों। रक़्स- नाचना। अल्फाज़-शब्द समूह, बोल।
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15.
मुफ़ाइलुन फ़इलातुन मुफ़ाइलुन फ़ेलुन
- 1212
- 1122
- 1212
- 22
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…..……………एक शे’र…………………
ये और बात है कि वो मिलते नहीं मगर
किसने कहा कि उनसे मेरी दोस्ती नहीं
…………………………………
लहजा-कहने या बात करने का ढंग।नाज़ुकी-कोमलता।शगुफ्ता चेहरा-खिला हुआ चेहरा, नर्गिसी-एक फूल जोआँखों की तरह का होता है, तसव्वुर-ख़्याल। तारीकियाँ- अँधेरा
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16
फ़ाएलातुन मुफ़ाइलुन फ़ेलुन
- 2122
- 1212
- 22
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अपनी ज़ुल्फों को धो रही है शब
और ख़ुश्बू निचो रही है शब
मेरे ख़्वाबों की ओढ़कर चादर
मेरे बिस्तर पे सो रही है शब
अब अँधेरों से जंग की ख़ातिर
कुछ चराग़ों को बो रही है शब
सुब्ह-ए-नौ के क़रीब आते ही
अपना अस्तित्व खो रही है शब
दिन के सदमों को सह रहा है दिन
रात का बोझ ढो रही है शब
…..……………एक शे’र…………………
अब तो बदन में पहली सी ताक़त नहीं रही
लज़्ज़त मगर वही है सुख़न में अभी तलक
……………………………….
शब-रात।निचो- निचोड़ने की क्रिया।
जंग की ख़ातिर- लड़ाई के लिए। चराग़-दीपक।
सुब्ह-ए-नौ,,नए दिन का प्रारंभ। अस्तित्व-स्वरूप।सदमा-यातना।
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17
मफ़ऊल फ़ाइलात मुफ़ाईलु फ़ाइलुन
- 221
- 2121
- 1221
- 212
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गुलशन में जैसे फूल नहीं ताज़गी नहीं
तेरे बग़ैर ज़िन्दगी ये ज़िन्दगी नहीं
ये और बात है कि वो मिलते नहीं मगर
किसने कहा कि उनसे मेरी दोस्ती नहीं
तेरे ही दम से खुशियाँ हैं घर बार में मेरे
होता जो तू नहीं तो ये होती ख़ुशी नहीं
ख़ून-ए-जिगर से मैंने सवाँरी है हर ग़ज़ल
मेरे सुख़न का रंग कोई काग़ज़ी नहीं
मैं ख़ुद गुनाहगार हूँ अपनी निगाह में
उसके ख़ुलूस-ओ-इश्क़ में कोई कमी नहीं
छूके दरिचा लौट गया मौसम-ए- बहार
लगता है अब नसीब मे मेरे ख़ुशी नहीं
तुझसे 'रज़ा' के शेरों में संदल सी है महक
मुमकिन तेरे बग़ैर मेरी शायरी नहीं
……………………………………….
ख़ून-ए-जिगर-दिल के ख़ून। ख़ुलूस-ओ-इश्क़-प्रेम और मित्रता। दरिचा-खिड़की या रौशनदान। संदल-चंदन
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18
❗️ फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़े ❗️
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जिनके होटों पर उल्फ़त की सच्चाई मुस्काती है
उनके आँगन में ख़ुशियों की रानाई मुस्काती है
जिसके ख़ुशबू से ख़ुशबू है गुलशन के सब फूलों में
उसको छूकर आने वाली पुरवाई मुस्काती है
जिनके खिलने से दुनिया का हर गुलशन आबाद हुआ
उन कलिओं की ख़ुशी सजाकर शहनाई मुस्काती है
जब मेहनत के छाँव तले ये बोझिल मन सुस्ताता है
तब बाँहों में आकर पगली अंगड़ाई मुस्काती है
जिसके ख़्यालों के ‘शॉवर’ में मन बेचैन नहाता है
उसकी ख़ुशबू पाकर दिल की अँगनाई मुस्काती है
यादें घायल साँसें बोझल जीना है दुश्वार मेरा
मेरी हालत देख के अब तो तन्हाई मुस्काती है
…..……………एक शे’र…………………
तू कहे तो मैं खुरच डालूँ बदन को लेकिन
तेरी ख़ुशबू को मैं साँसों से मिटाऊँ कैसे
…………………………………
उल्फ़त- प्रेम।रा’नाई-सुंदरता, बोझिल-थका हारा। शॉवर-स्नान करने वाला शॉवर नल।दुश्वार-मुश्क़िल
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19
फ़ाएलातुन मुफ़ाइलुन फ़ेलुन
- 2122
- 1212
- 22
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क्या कशिश है तुम्हारी आँखों में
देखकर तुमको दिल धड़कता है
इश्क़ के जब हथौड़े पड़ते हैं
दर्द-ए-दिल आँखों से छलकता है
अब तलक इन ज़’ईफ़ आँखों में
सिर्फ़ तेरा बदन चमकता है
…..……………एक शे’र…………………
माँ ने जो खिलाई थीं अपने प्यारे हाथों से
ज़ेहन में अभी तक वो रोटियाँ महकती हैं
……………………………….
नूर-आभाया रौशनी। एक दफ़ा-एक बार।
ज़ईफ़- वृद्ध या कमज़ोर।
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20
❗️ फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़े ❗️
—————————————-
हम जैसे पागल बहुतेरे फिरते हैं
आप भला क्यूँ बाल बिखेरे फिरते हैं
काँधों पर ज़ुल्फ़ें ऐसे बल खाती हैं
जैसे लेकर साँप सपेरे फिरते हैं
चाँद -सितारे क्यूँ मुझसे पंगा लेकर
मेरे पीछे डेरे - डेरे फिरते हैं
ख़ुशियाँ मुझको ढूँढ रही हैं गलियों में
पर ग़म हैं जो घेरे - घेरे फिरते हैं
वो जाने कब उनके करम की बारिश हो
और वो जाने कब दिन मेरे फिरते है
…..……………एक शे’र………………
ख़ुशियाँ मुझको ढूँढ रही हैं गलियों में
पर ग़म हैं की घेरे - घेरे फिरते हैं
……………………………
बहुतेरे-बहुत सारे। पंगा-दुश्मनी। ग़म- परेशानी
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