Wednesday, April 24, 2024

E 20 GAZLEN SALEEM RAZA REWA

रमल मुसम्मन महज़ूफ़

फ़ाएलातुन फ़ाएलातुन फ़ाएलातुन फ़ाइलुन 

  • 2122
  • 2122
  • 2122
  • 212


—————————————-

वक़्त ने मुझको कभी मुर्दा नहीं होने दिया

हाथ फैलाऊँ कभी ऐसा नहीं होने दिया


उसके एहसानों का लाखों बार दिल से शुक्रिया

जिसने इस नाचीज़ को झूठा नहीं होने दिया


ढल गई अब तो जवानी जिस्म बूढ़ा हो गया

पर तुम्हारे प्यार को बूढ़ा नहीं होने दिया


तुमने भी वादा निभाया इस क़दर कि उम्र भर

मुझको पागल कर के फिर अच्छा नहीं होने दिया


तेरी ख़ुशबू ने मो'अत्तर कर दिया है इस क़दर

मेरी ख़ुशबू ने मुझे अपना नहीं होने दिया


24/03/24

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वो जिसे चाहे अता कर दे ज़माने की ख़ुशी

उसके  ही हाथों में  है  सारे जहाँ की नेमतें

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81

फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन

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मेरे घर आया जाया कर 

पर सबको मत बतलाया कर


सच भी तेरा झूट लगेगा

इतनी क़समें मत खाया कर 


मेरी चाहत की लाशों को

तू किश्तों में दफ़नाया कर 


आँखें रोती हैं रोने दे

पर दिल को तो समझाया कर 


अच्छों की सोहबत में घुलकर

कुछ तो अच्छा हो जाया कर

13/02/24

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ख़ुद को इतना मैं गुदगुदाता हूँ

फिर भी मुझ को हँसी नही आती

———————xxx——————-


82

बहर-ए-हिन्दी मुतकारिब मुसद्दस मुज़ाफ़

फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़े 
  • 22
  • 22
  • 22
  • 22
  • 22
  • 2


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शर्तों पर ही प्यार करोगे ऐसा क्या 

तुम जीना दुश्वार करोगे ऐसा क्या 


लोगों ने तो ज़ख़्म दिए हैं चुन चुन कर

तुम भी दिल पर वार करोगे ऐसा क्या


मुझसे रूठ के खाना पीना छोड़ दिए

ख़ुद को ही बीमार करोगे ऐसा क्या


मिलना हो तो मिल जाओ कुछ बात करें

वादा ही हर बार करोगे ऐसा क्या


जाने किससे लड़-भिड़ कर तुम आए हो

अब मुझसे तकरार करोगे ऐसा क्या


अब मुझको तड़पाने की ख़ातिर तुम भी

दुश्मन से ही प्यार करोगे ऐसा क्या

28/01/24

…………………ए शे’र…………………

आज भी उनकी अदाओं में वही है शोख़ियाँ

आज भी तकते हैं रस्ता शहर के पागल बहु

——————xxx—————


83

हज़ज मुसद्दस महज़ूफ़

मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन फ़ऊलुन 
  • 1222
  • 1222
  • 122

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ये आँखों को बड़ा अच्छा लगे है
तिरे दीदार का चस्का लगे है

तजरबे में अभी कच्चा लगे है
मग़र वो आदमी सच्चा लगे है

खपा दी ज़िंदगी ग़ुरबत में जिसने
ख़ज़ाना भी उसे कचरा लगे है

मुसलसल गुफ़्तगू हो यार की तो
दिल-ए-बीमार को अच्छा लगे है

जो धोका खा चुका हो प्यार में तो
उसे हर आदमी झूठा लगे है

……………22/01/24…………

सब ख़्वाहिशें लपेट के पेटी में रख दिया

उम्मीद जो बची थी वो खूँटी पे टाँग दी

——————xxx—————


84

ख़फ़ीफ़ मुसद्दस मख़बून महज़ूफ़ मक़तू

फ़ाएलातुन मुफ़ाइलुन फ़ेलुन 
  • 2122
  • 1212
  • 22

————————————


ख़ूब जी भर सता लिया जाए

और रोने नहीं दिया जाए


सिसकियाँ हो रही हैं कुछ मध्यम

दर्द को ज़ख्म दे दिया जाए


ख़र्च करके ख़ुशी के कुछ लम्हे

ग़म को पागल बना दिया जाए


मशवरा है उदास लम्हों को

मौत का हुक्म दे दिया जाए


मुँह उठाती हैं ख़्वाहिशें इनको

एक चमाटा लगा दिया जा

——————21/01/24——————

ख़ून की हैसियत नहीं कुछ भी

जब तलक जिस्म में नहीं दौ

——————xxx——————


85

रमल मुसम्मन मख़बून महज़ूफ़ मक़तू

फ़ाएलातुन फ़इलातुन फ़इलातुन फ़ेलुन 
  • 2122
  • 1122
  • 1122
  • 22

——————18/01/24——————

ख़ुद को बर्बाद कई बार करूँ मैं पहले

या उसे चाहूँ उसे प्यार करूँ मैं पहले


उसकी ख़ामोश निगाहों ने जो बातें की है

दिल ये कहता है कि इज़हार करूँ मैं पहले


तेरे हर काम में मैं हाथ बटाऊँ यानी

ख़ुद से ही ख़ुद को गुनहगार करूँ मैं पहले


ज़ख़्म सिलने में कई ज़ख़्म दिए टाँकों ने

कौन से दर्द का इज़हार करूँ मैं पहले


चोट खाया है मेरे जिस्म का हर इक हिस्सा❗️

कौन से हिस्से को बीमार करूँ मैं पहले


फिर तो मुमक़िन ही नहीं कोई भी झगड़ा प्यारे

तू अगर चाहता है वार करूँ मैं पहले

————————————

जब लफ़्ज़ों की चादर तान के सोता हूँ

एक ग़ज़ल मेरे बाज़ू में सो जाती है

——————xxx——————


86

हज़ज मुसद्दस महज़ूफ़

मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन फ़ऊलुन 

  • 1222
  • 1222
  • 122
    —————————————-

तुझे मैं क्या कहूँ तू क्या मिरा है

तु मेरी ज़िंदगी का आईना है


तड़पता हूँ मैं हर पल बिन तुम्हारे

मेरे हालात तुमको भी पता है


बड़ी मासूम है तेरी अदाएँ

मगर घायल हज़ारों को किया है


कोई भाता नहीं है बिन तुम्हारे

ये क्या जादूगरी क्या माजरा है 


बड़ा एहसान है मुझ पर ख़ुदा का❗️

मेरी हर ख़्वाहिशें  वो जानता है 

 ……………15/01/24…………..

ख़ुद को इतना मैं गुदगुदाया हूँ

फिर भी मुझको हँसी नहीं आई

———————xxx——————-


87💘

मुज्तस मुसम्मन मख़बून महज़ूफ़ मस्कन

मुफ़ाइलुन फ़इलातुन मुफ़ाइलुन फ़ेलुन 

  • 1212
  • 1122
  • 1212
  • 22
    —————————————-

कभी तो ख़ुद में ही ढलने को जंग करता हूँ 

कभी मैं ख़ुद को बदलने को जंग करता हूँ


दिलो दिमाग़ की आपस में जब नहीं बनती

तो इनके साथ में चलने को जंग करता हूँ


ग़मों की भीड़ ने घेरा है चारों जानिब से

गिरा-पड़ा हूँ  संभलने को जंग करता हूँ


मेरे ज़मीर ने पैरों को बाँध रक्खा है

वफ़ा के साथ में चलने को जंग करता हूँ


मेरा ग़ुरूर मेरे रास्ते में जब आया 

तो उसकी हस्ती कुचलने को जंग करता हूँ


तुम्हारी याद खुरचने लगी हैं ज़ख्मों को

अब इसकी ज़द से निकलने को जंग करता हूँ

……………..01/01/24………………

ज़मीर-अन्तरात्मा। वफ़ा-सच्चाई। ग़ुरूर-घमंड । 

ज़द-आघात,निशाने 

———————xxx———————


88

मुज़ारे मुसम्मन अख़रब मकफ़ूफ़ महज़ूफ़

मफ़ऊल फ़ाइलात मुफ़ाईलु फ़ाइलुन 

  • 221
  • 2121
  • 1221
  • 212


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रुख़ से जो मेरे यार ने पर्दा हटा दिया   

महफ़िल में हुस्न वालों को पागल बना दिया

 

उसकी  हर-एक अदा पे तो क़ुर्बान जाइए        

मौसम को जिसने छू के नशीला बना दिया

 

आई बहार झूम के ख़ुशबू बिखेरती 

ज़ुल्फें उड़ा के कौन सा जादू चला दिया 

 

महफ़िल में होश वाले भी मदहोश हो गए

ये क्या किया की सबको  दिवाना बना दिया


देखा जो उसने प्यार से बस इक नज़र मुझे

दिल में हमारे प्यार का गुलशन खिला दिया

 …………… Nov-19…………..

ढल गई अब तो जवानी जिस्म बूढ़ा हो गया

पर तुम्हारे प्यार को बूढ़ा नहीं होने दिया

———————xxx——————-


89

मुज़ारे मुसम्मन अख़रब मकफ़ूफ़ महज़ूफ़

मफ़ऊल फ़ाइलात मुफ़ाईलु फ़ाइलुन 

  • 221
  • 2121
  • 1221
  • 212


———————12/19——————-


हमने तुम्हारे वास्ते क्या क्या नहीं किया

अफ़सोस तुमने हमपे भरोसा नहीं किया

 

आया है जब से नाम तुम्‍हारा ज़ुबान पर 

होटों ने फिर किसी का भी चर्चा नहीं किया


ज़ुल्मों सितम ज़माने के हँस-हँस के सह लिए

लेकिन कभी ज़मीर का सौदा नहीं किया


अम्न-ओ-अमाँ से हमने गुज़ारी है ज़िंदगी

मज़हब के नाम पर कभी झगड़ा नहीं किया


उम्मीद उस बशर से करें क्या वफ़ा की हम

जिसने किसी के साथ भी अच्छा नहीं किया

 

मुझको मिला फ़रेब 'रज़ा' इश्क़  में  मगर

मैंने  किसी  के साथ भी धोका नहीं


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जो  ज़ख़्म खाके भी रहा है आपका सदा

उस दिल पे फिर से आपने ख़ंजर चला दिया 

———————xxx——————-


90

हज़ज मुसम्मन सालिम

मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन 

  • 1222
  • 1222
  • 1222
  • 1222

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जिसे मुश्किल में जीने का हुनर पर्फेक्ट होता है

मसाइब के अँधेरों से वही रिफ्लेक्ट होता है

 

वही क़ानून को हाथों की कठपुतली समझते हैं

सियासत में पकड़ जिनका बड़ा पर्फेक्ट होता है


मोहब्बत के बिना इस जिंदगानी का मज़ा क्या है

मोहब्बत तो ज़माने का अहम सब्जेक्ट होता है


कमी कोई न हो जिसमें कोई इंसाँ नहीं ऐसा

कहाँ दुनिया में कोई आदमी पर्फेक्ट होता है

 

हमेशा प्यार से जीने की आदत है 'रज़ा' जिसको

ज़माने भर में ऐसे शख़्स का रिस्पेक्ट होता है

———————09/18——————-


कोशिश तो की भँवर ने डुबोने की बारहा

हम कश्ती-ए-हयात बचाते चले  गए

———————xxx——————- 


पर्फेक्ट-बेहतर,संपूर्ण। रिफ्लेक्ट-चमकना। डारेक्ट-सीधा।पर्फेक्ट-बेहतर, संपूर्ण। सब्जेक्ट-विषय। रिस्पेक्ट-सम्मान।

———————xxx——————-


91

मुतकारिब मुसद्दस मुज़ाफ़

फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़े 
  • 22
  • 22
  • 22
  • 22
  • 22
  • 2


—————————————-

सच का साथ भला कैसे दे पाएगा 
एहसानों के तले अगर दब जाएगा


उसके सारे ग़म धूमिल पड़ जाएँगे 

जिसको मुश्किल में जीना आ जाएगा


मेरी दुनिया ख़ुशियों से भर जाएगी 

मुझको तेरा साथ अगर मिल जाएगा 


उस  दिन मेरी तन्हाई मुस्काएगी

जिस दिन मेरा साजन लौट के आएगा 


क्यूँ दौलत पे लोग 'रज़ा' इतराते हैं 

ये तो इक दिन मिट्टी में मिल जाएगा


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ऐ 'रज़ा' कुछ लड़कियाँ जो घर की ज़ीनत थीं कभी

रौनक़-ए-बाज़ार होती जा रही हैं आज कल

———————xxx——————-


92

बहर-ए-हिन्दी मुतकारिब मुसम्मन मुज़ाफ़

फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़े 

  • 22
  • 22
  • 22
  • 22
  • 22
  • 22
  • 22
  • 2


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जब से तूने दिल को तोड़ा दिल का लगाना छोड़ दिया

तेरी गलियों में भी अब तो आना जाना छोड़ दिया

 

तेरी ख़ुशियों की ख़ातिर सब ख़ुशियों को क़ुर्बान किया

तेरे प्यार की ख़ातिर मैंने सारा ज़माना छोड़ दिया

 

तुझसे मेरा इश्क़ जुनूँ है तू ही दिल की धड़कन  है

तुझको पाकर दुनिया का सब माल-ओ-खज़ाना छोड़ दिया

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उनकी ख़ुशबू से ख़ुशबू है गुलशन के सब फूलों में

उनको छूकर आने वाली पुरवाई मुस्काती है

———————xxx——————-


93

मुज़ारे मुसम्मन अख़रब मकफ़ूफ़ महज़ूफ़

मफ़ऊल फ़ाइलात मुफ़ाईलु फ़ाइलुन 

  • 221
  • 2121
  • 1221
  • 212


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अपने हसीन रुख़ से हटा कर नक़ाब को

शर्मिन्दा  कर  रहा  है  कोई माहताब को

 

उनकी निगाहे नाज़ ने मदहोश कर दिया

मैं ने  छुआ नहीं है क़सम से शराब को

 

दिल चाहता है उसको दुआ से नवाज़ दूँ

जब देखता हूँ मैं किसी खिलते गुलाब को

 

ये ज़िन्दगी तिलिस्म के जैसी है दोस्तो

क्या देखते नहीं हो बिखरते हुबाब को

 

इन्सान बन  गया है 'रज़ा' आदमी से वो

दिलसे पढ़ा है जिसने ख़ुदा की किताब को


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नहीं कहा था, जो देखोगे होश खो दोगे 

बताओ यार मेरा बे-मिसाल है कि नहीं
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माहताब-चाँद। निगाहे नाज़-नटखटी अन्दाज़। तिलिस्म-जादू। हुबाब -पानी का बुलबुला।
———————xxx——————-


94

ख़फ़ीफ़ मुसद्दस मख़बून महज़ूफ़ मक़तू

फ़ाएलातुन मुफ़ाइलुन फ़ेलुन 

  • 2122
  • 1212
  • 22
    —————————————-


जब भी क़समें हमारी खाते हैं

सच यक़ीनन कोई छुपाते हैं

 

छोड़ जाएंगे हम तुझे तन्हा

रोज़ कहकर यही डराते हैं

 

जब तू आँखों से दूर होता है

कैसे-कैसे ख़याल आते हैं

 

हाल उनका किसी ने पूछा क्या

चोट खाकर जो मुस्कुराते  हैं

 

मुझसे नाराज़ हैं 'रज़ा' फिर भी

मेरी ग़ज़लों को गुनगुनाते हैं

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नहीं कुछ भी छुपाना चाहिए था 

अगर ग़म था बताना चाहिए था

———————xxx——————-


95


फ़ाएलातुन मुफ़ाइलुन फ़ेलुन


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हौसला जिसका मर नहीं सकता 

मुश्किलों से वो डर नहीं सकता


लोग कहते हैं ज़ख़्म गहरा है 

मुद्दतों तक ये भर नहीं सकता


उनकी आदत है यूँ डराने की 

मेरी फ़ितरत है डर नहीं सकता 


जब तलक ख़ुद ख़ुदा नहीं चाहे 

बद-दुआओं से मर नहीं सकता

 

लाख फ़ितरत की ज़ुल्फ़ सुलझाओ

बिगड़ा ख़ाका सुधर नहीं सकता

————10/19——————-

अंधेरे भागते हैं दुम दबाकर 

उजालों से जो मैंने दोस्ती की

———————xxx——————-


96

फ़ाएलातुन मुफ़ाइलुन फ़ेलुन


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कौन कहता है बस नज़र तक है 

वार  उनका  मेरे जिगर तक है 


मस्त नज़रों का मय जिधर तक है 

ख़ूबसूरत  फ़िज़ा उधर  तक है 


चाँद निकला है मेरे आँगन  में 

रौशनी मेरे बाम-ओ-दर तक है 


चाँद  सूरज  चले  इशारे  से 

उनके क़ब्ज़े में तो शजर तक है 


ग़म ख़ुशी ज़िंदगी में हैं शामिल

अब निभाना तो उम्र भर तक


 ——————————-

ख़ूब धोया बदन को मल मल कर

तेरी ख़ुशबू मगर नहीं जाती

———————xxx——————-

98

फ़ाएलातुन मुफ़ाइलुन फ़ेलुन

 —————————————-

जिसकी चाहत पे दिल दिवाना है

उसके क़दमों तले ज़माना है 


मेरी ख़्वाहिश है जिसको पाने की

उसके होंटों पे सिर्फ़ ना ना है


इक दफ़ा ख़्वाब में ही आ जाओ

तुमको छूना है तुमको पाना है💘


दिल ये कहता है तुम चले आओ

आज मौसम  बड़ा  सुहाना  है


ग़म  फ़क़त ही नहीं है दामन में

चंद ख़ुशियों का भी ख़ज़ाना है


प्यार उल्फ़त वफ़ा मोहब्बत सब

ये तो  जीने  का  इक बहाना है


सच नहीं होती  ख़्वाब  की बातें

ख़्वाब  होता  मगर  सुहाना है


——————————-

ख़्वाहिश- इच्छा। इक दफ़ा-एक बार। फ़क़त-सिर्फ़

———————xxx——————-


99


हज़ज मुसम्मन सालिम

मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन 

1222  1222  1222  1222

—————————————-

कहीं पर चीख़ होगी और कहीं किलकारियाँ  होंगी

अगर हाकिम के आगे भूक और लाचारियाँ होंगी


अगर हर दिल में चाहत हो शराफ़त हो सदाक़त हो

मोहब्बत का चमन होगा ख़ुशी की क्यारियाँ  होंगी


किसी को शौक़ यूँ होता नहीं ग़ुरबत में जीने का

यक़ीनन सामने उसके बड़ी  दुश्वारियाँ  होंगी


ये होली ईद कहती है भला कब अपने हाथों में

वफ़ा का रंग  होगा प्यार की पिचकारियाँ होंगी


सुख़नवर का ये आँगन है यहाँ पर शे’र महकेंगे

ग़ज़ल और गीत नज़्मों की यहाँ फुलवारियाँ होंगी


अगर जुगनू मुक़ाबिल में है आया आज सूरज के

यक़ीनन पास उसके भी बड़ी तैयारियाँ  होंगी


न छोड़ो ये समझ के आग अब ठंडी हुई साहब

ये मुमकिन है कि अब भी राख में चिंगारियाँ होंगी——————————-

फिर ख़्वाहिशों ने सर को उठाया नहीं कभी

मजबूरियों को ऐसे ठिकाने लगा दिया 

———————xxx——————-


100

मुफ़ाइलातुन मुफ़ाइलातुन मुफ़ाइलातुन मुफ़ाइलातुन—————————————-

ग़मों की लज़्ज़त चुराके लेजा मेरी मसर्रत चुराके लेजा  

या ज़ौक़-ए-उल्फ़त चुराके लेजा या दिल की हसरत चुराके लेजा


क़दम क़दम पर उजाला बन कर ये साथ देगी तेरा हमेशा

मेरी सख़ावत चुरा के लेजा मेरी शराफ़त चुराके लेजा 


बना सके तो बना ले कोई हमारे जैसा तू एक चेहरा 

ये मेरी सूरत चुराके लेजा ये मेरी रंगत चुराके लेजा


करम का गुलशन खिलेगा इक दिन मुझे भरोसा है मेरे रब पर 

भले ये हिम्मत चुराके लेजा भले ये ताक़त चुराके लेजा


ये मेरी धड़कन ये मेरी साँसें ये जिस्‍म मेरा है इक अमानत 

तु मेरी दौलत चुराके लेजा तू मेरी शोहरत चुराके लेजा


मिरा हुनर तो अताए-रब है इसे चुराना बहुत है मुश्किल

तु मेरी आदत चुराके लेजा तु मेरी फ़ितरत चुराके लेजा——————————-

ज़ाहिद ये मय-कदा है ग़म-ए-इश्क़ की दवा

क्यूँ कह रहा है छोड़ दे मरने से पहले तू

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A 20 GAZLEN SALEEM RAZA REWA

  🅰️ 20 ग़ज़लें  01 मुज्तस मुसम्मन मख़बून महज़ूफ़ मस्कन मुफ़ाइलुन फ़इलातुन मुफ़ाइलुन फ़ेलुन  1212 1122 1212 22 ——— ——— —— —— ———- हर एक शय से ज़ि...