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Friday, January 5, 2024

शर्बत-ए-दीद निगाहों को पिलाने आए -Saleem Raza rewa

 

शर्बत-ए-दीद निगाहों को पिलाने आए
और  बिगड़ी हुई क़िस्मत को बनाने आए


चाँद तारे भी यहाँ बन के दिवाने आए
तेरी रहमत के समन्दर में नहाने आए


रश्क करते हैं जिन्हे देख  के जाम-ओ-मीना
मस्त नज़रों से वही जाम पिलाने आए


तेरे दीदार से आंखों को सुकूँ मिलता है
ख़ुद से कर-कर के कई बार बहाने आए

तेरी निसबत से ज़माने की ख़ुशी हासिल है
मेरे हाथों में तो अनमोल ख़ज़ाने आए

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شربتِ  دید  نِگاہوں  کو پلانے آئے

اور  بِگڑی ہوئی قِسمت کو بنانے آئے


چاند تارے بھی  یہاں بن کے دیوانی آئے
تیری رحمت کے سمندر میں نہانے آئے


رشک کرتے  ہیں جِنہیں  دیکھ  کہ جام و  مینا
مست  نظروں سے وہی جام پلانے آئے


تیرے  دیدار سے آنکھوں کو سکون مِلتا ہے
خود سے کر کر کے کئی  بار  بہانے آئے


تیری نِسبت سے زمانے کی خوشی حاصِل ہے
میرے  ہاتھوں  میں  تو  انمول  خزانے  آئے
______________________02/19

2122 1122 1122 22

Friday, November 10, 2017

नाराज़गी है कैसी भला ज़िन्दगी के साथ - SALIM RAZA REWA

जीने की आरज़ू तो है सब को खुशी के साथ
ग़म भी लगे हुए हैं मगर ज़िन्दगी के  साथ
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नाज़-ओ-अदा के साथ कभी बे-रुख़ी के साथ
दिल में उतर  गया वो बड़ी सादगी के साथ  
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आएगा मुश्क़िलों में भी जीने का फ़न तुझे
कूछ दिन गुज़ार ले तू मेरी ज़िदगी के साथ
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ख़ून-ए- जिगर निचोड़ के रखते हैं शेर में
यूँ ही नहीं है  प्यार हमें  शायरी के साथ 
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अच्छी तरह से आपने जाना नहीं जिसे
यारी कभी न कीजिये उस अजनबी के साथ
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मुश्किल में कैसे जीते हैं यह उनसे पूछिये
गुज़रा है जिनका वक़्त सदा मुफ़लिसी के साथ
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उसपर न ऐतबार  कभी कीजिए  " रज़ा 
धोका किया है जिसने हमेशा सभी के साथ

221 2121 1221 212
मफ़ऊल फ़ाइलात मुफ़ाईलु फ़ाइलुन
बहरे मज़ारिअ मुसमन अख़रब मकफूफ़ मकफूफ़ महज़ूफ़

Saturday, November 4, 2017

बातों ही बातों में उनसे प्यार हुआ- सलीम रज़ा रीवा

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बातों ही बातों में उनसे प्यार  हुआ.
ये मत पूछो कैसे कब इक़रार हुआ
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जब से आँखें उनसे मेरी चार हुईं.
तब से मेरा जीना भी दुश्वार हुआ
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वो शरमाएँ जैसे  शरमाएँ कलियाँ.
रफ्ता रफ्ता चाहत का इज़हार हुआ
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दिल की बातें वो  ऐसे पढ़  लेता है.
दिल हुआ जैसे कोईअख़बार हुआ
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उनसे  ही खुशियाँ है मेरे आंगन में.
उनसे ही रौशन मेरा घर बार हुआ
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आँखों में बस उनका चेहरा दिखता है.
शोख़ हसीना का जब से दीदार हुआ
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Gazal by salimrazarewa

A 20 GAZLEN SALEEM RAZA REWA

  🅰️ 20 ग़ज़लें  01 मुज्तस मुसम्मन मख़बून महज़ूफ़ मस्कन मुफ़ाइलुन फ़इलातुन मुफ़ाइलुन फ़ेलुन  1212 1122 1212 22 ——— ——— —— —— ———- हर एक शय से ज़ि...