जीने की आरज़ू तो है सब को खुशी के साथ
ग़म भी लगे हुए हैं मगर ज़िन्दगी के साथ
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नाज़-ओ-अदा के साथ कभी बे-रुख़ी के साथ
दिल में उतर गया वो बड़ी सादगी के साथ
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आएगा मुश्क़िलों में भी जीने का फ़न तुझे
कूछ दिन गुज़ार ले तू मेरी ज़िदगी के साथ
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ख़ून-ए- जिगर निचोड़ के रखते हैं शेर में
यूँ ही नहीं है प्यार हमें शायरी के साथ
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अच्छी तरह से आपने जाना नहीं जिसे
यारी कभी न कीजिये उस अजनबी के साथ
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मुश्किल में कैसे जीते हैं यह उनसे पूछिये
गुज़रा है जिनका वक़्त सदा मुफ़लिसी के साथ
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उसपर न ऐतबार कभी कीजिए " रज़ा
धोका किया है जिसने हमेशा सभी के साथ
221 2121 1221 212
मफ़ऊल फ़ाइलात मुफ़ाईलु फ़ाइलुन
बहरे मज़ारिअ मुसमन अख़रब मकफूफ़ मकफूफ़ महज़ूफ़
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