Saturday, November 18, 2017

ये मत कहना कोई कमतर होता है - सलीम रज़ा रीवा

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ये मत कहना कोई कमतर होता है 
दुनिया  में  इन्सान  बराबर होता है 
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टूटा-फूटा  गिरा-पड़ा कुछ तंग सही 
अपना घर तो अपना ही घर होता है
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ताल  में  पंछी पनघट गागर चौपालें 
कितना सुन्दर गाँव का मंज़र होता है
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काम नहीं  है तीरों का  तलवारों का
प्यार तो एटम बम से बेहतर होता है
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पाकीज़ा  जज़्बात है जिसके सीने में 
उसका चेहरा रू-ए-मुनव्वर होता है  
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ज़ाहिद का तो काम नहीं मयख़ाने में  
मयख़ाना तो  रिंदों  का घर  होता है 
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जो तारीकी  में  भी  रस्ता दिखलाए 
वो  ही हमदम वो ही रहबर होता है
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अपना बनकर जो भी धोका देता है
बुज़दिल होता  है वो कायर होता है
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कैद करो न  इसको पिंजरों में कोई 
अम्न  का पंछी रज़ा कबूतर होता है

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A 20 GAZLEN SALEEM RAZA REWA

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