Wednesday, April 24, 2024

A 20 GAZLEN SALEEM RAZA REWA

 

🅰️ 20 ग़ज़लें 

01

मुज्तस मुसम्मन मख़बून महज़ूफ़ मस्कन

मुफ़ाइलुन फ़इलातुन मुफ़ाइलुन फ़ेलुन 
  • 1212
  • 1122
  • 1212
  • 22


—————————————-

हर एक शय से ज़ियादा वो प्यार करता है

तमाम खुशियाँ वो मुझपर निसार करता है

 

मैं दिन को रात कहूँ वो भी दिन को रात कहे

यूँ आँख  मूँद  के वो  ऐ’तिबार  करता है

 

मै जिसके प्यार को अब तक समझ नही पाया

तमाम  रात  मेरा  इंतज़ार  करता   है

 

हमें तो प्यार है गुल से चमन से ख़ुशबू से

वो कैसा शख़्स है फूलों पे वार करता है

 

मुझे उदास निगाहों  से देखना उनका

अभी भी दिल को मेरे बेक़रार करता है

 

उसे ही ख़ुल्द की नेमत नसीब होगी ‘रज़ा’

ख़ुदा का  ज़िक्र जो लैल-ओ-नहार करता है


…..……………ए शेर………………

अब तलक इन ज़'ईफ़ आँखों में

सिर्फ़ तेरा बदन चमकता है

________________________

हर शय- हर चीज़ ।लैल-ओ-नहार-रात और दिन

____________xxx____________


 02


मुज्तस मुसम्मन मख़बून महज़ूफ़ मस्कन

मुफ़ाइलुन फ़इलातुन मुफ़ाइलुन फ़ेलुन 
  • 1212
  • 1122
  • 1212
  • 22


—————————————-

जहाँ में तेरी मिसालों से रौशनी फैले
कि जैसे चाँद सितारों से रौशनी फैले
 
तुम्हारे इल्म की ख़ुशबू से ये जहाँ महके 
तुम्हारे रुख़ के चराग़ों से रौशनी फैले
 
क़दम क़दम पे उजालों का शामियाना हो
क़दम क़दम पे बहारों से रौशनी फैले
 
तुम्हारे नाम की शोहरत हो सारी दुनिया में
तुम्हारे इल्म के धारों से रौशनी फैले
 
तेरे हवाले से लिक्खी है जो ग़ज़ल मैंने
ग़ज़ल वो महके किताबों से रौशनी फैले

…..……………ए शेर………………

मुझकॊ मेरे ख़्यालों के पर काटने पड़े

उसकी उड़ान थी मेरी औक़ात से सिवा

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03

हज़ज मुसद्दस महज़ूफ़

मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन फ़ऊलुन 
  • 1222
  • 1222
  • 122

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निछावर जिसपे मैंने ज़िंदगी की

उसे पर्वा नहीं मेरी ख़ुशी की


समझता ही नहीं जो दर्द मेरा

निगाहों  ने उसी की बंदगी की 


वही इक शख़्स जो कुछ भी नहीं है 

हर इक  मुश्किल में उसने रहबरी की 


अँधेरे भागते हैं दुम दबाकर 

उजालों से जो मैंने दोस्ती की


उसे पागल बना डाला किसी ने

कभी जो अबरू थी इस गली की


…..……………ए शेर………………

हर इक ज़र्रे का वो ख़ालिक है यारो

उसी के हाथ में सब की ज़िंदगी है 

……………………………………..,

पर्वा, परवाह - चिंता। ख़ालिक-सष्टि की रचना करनेवाला, ख़ुदा

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04

मुज्तस मुसम्मन मख़बून महज़ूफ़ मस्कन

मुफ़ाइलुन फ़इलातुन मुफ़ाइलुन फ़ेलुन 
  • 1212
  • 1122
  • 1212
  • 22

—————————————-

तुम्हारे दिल में हमारा ख़्याल है कि नहीं
कि साथ छोड़ने का कुछ मलाल है कि नहीं


तुझे लगा था कि मर जाऊँगा जुदा होकर 
तेरे बग़ैर हूँ ज़िंदा कमाल है कि नहीं


नहीं कहा था, जो देखोगे होश खो दोगे 
बताओ यार मेरा बे-मिसाल है कि नहीं


खिला रहा है जो बच्चों को तू मोहब्बत से
ये देख ले कि ये रोज़ी हलाल है कि नहीं 


बुलंदियों पे पहुँचकर गिरे जो नज़रों से
तुम्ही बताओ कि  ये भी ज़वाल है कि नहीं


ख़ुद अपने आपको माज़ी से जोड़ने वाले
बता कि तुझमें वो जाह-ओ-जलाल है कि नहीं


रज़ा’ बताओ कि तर्क-ए-त'अल्लुक़ात के बाद
हमारे जैसा ही उनका भी हाल है कि नहीं

………………………………………..

रोज़ी हलाल- ईमानदारी की कमाई।ज़वाल - उन्नति का उलटा,पद से गिर जान।माज़ी-गुज़रा हुआ वक़्त, अतीत।जाह-ओ-जलाल :-पद और वैभव, गरिमा।तर्क-ए-त'अल्लुक़ात :-रिश्ता तोड़/छोड़ देना, 

____________ xxx____________ 


05


मतदारक मुसम्मन सालिम सोलह रकनी

फ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ाइलुन 
  • 212
  • 212
  • 212
  • 212
  • 212
  • 212
  • 212
  • 212


—————————————-

तेरा हँसना ग़ज़ब मुस्कुराना ग़ज़ब  तेरा चिलमन में चेहरा छुपाना ग़ज़ब

देखकर क्यूँ न दिल गुनगुनाने लगे तेरी हर-इक अदा शायराना ग़ज़ब

 

डालियाँ झूमकर गुनगुनाने लगीं हर कली देखकर मुस्कराने लगीं

दिल धड़कने लगा है हर-इक फूल का तेरा वन-ठन के गुलशन में आना ग़ज़ब

 

उफ़ ये लाली ये शोख़ी ये चंचल नयन फूल से भी है नाज़ुक ये तेरा बदन

इक तो तेरी अदाएँ हैं क़ातिल बड़ी उसपे मौसम भी है आशिक़ाना ग़ज़ब

 

इस क़दर नूर रुख़ से चमकने लगा हुस्न भी देखकर हाथ मलने लगा         

चाल नागन सी घायल करे है जिया उस पे मुखड़ा तेरा है सुहाना ग़ज़ब

 

रब से माँगा था जो वो ख़ुशी मिल गई आप क्या मिल गए ज़िंदगी मिल गई

खिल उठे हैं  रज़ा' फूल ख़ुशियों के अब मिल गया प्यार का इक ख़ज़ाना ग़ज़ब


…..……………ए शेर………………

जिनके खिलने से दुनिया का हर गुलशन आबाद हुआ

उन कलिओं की ख़ुशी सजाकर शहनाई मुस्काती है

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06


हज़ज मुसद्दस महज़ूफ़

मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन फ़ऊलुन 
  • 1222
  • 1222
  • 122


—————————————-

नहीं कुछ भी छुपाना चाहिए था 

अगर ग़म था बताना चाहिए था


मेरी ख़्वाहिश थी बस दो गज़ ज़मीं की 

उन्हें सारा ज़माना चाहिए था

  

मुझे अपना बनाने के लिए तो

न माल--ज़र ख़ज़ाना चाहिए था  

 

समझ लेता निगाहों का इशारा

ज़रा सा मुस्कुराना चाहिए था

 

महक जाता ये जिस्म--जाँ तुम्हारा

मोहब्बत में नहाना चाहिए था


…..……………ए शेर………………

मैं मनाऊँ तो भला  कैसे मनाऊँ उसको

मेरा महबूब तो बच्चों सा मचल जाता है

____________ _____________

ख़्वाहिश- इच्छा। माल--ज़र-धन-दौलत, रुपया-पैसा। ख़ुश्की का- सूखने का।

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    07  

मुज़ारे मुसम्मन अख़रब मकफ़ूफ़ महज़ूफ़

मफ़ऊल फ़ाइलात मुफ़ाईलु फ़ाइलुन 
  • 221
  • 2121
  • 1221
  • 212


—————————————-

           कैसे कहें की इश्क़ ने क्या क्या बना दिया              

           राधा को श्याम, श्याम को राधा बना दिया               

 

उस बेर की मिठास तो बस जाने राम जी      

शबरी ने जिसको चख के है मीठा बना दिया   

  

यूसुफ़ न बन सका कभी तेरी निगाह में

लेकिन तुझे तो मैंने ज़ुलेख़ा बना दिया

 

ये  इश्क़ है जुनूँ  है मोहब्बत है या नशा                  

मजनू बना दिया कभी राँझा बना दिया 

 

खिलता रहे ख़ुलूस--मोहब्बत का ये चमन

ये सोच के ख़ुदा ने ज़माना बना दिया


…..……………ए शेर………………

एक दफ़ा ख़्वाब में वो क्या आया

घर मेरा अब तलक महकता है

_______________________

यूसुफ़-पैग़म्बर जो अत्यंत सुन्दर थे। ज़ुलेख़ा -मिस्र की महारानी जो यूसुफ़ पर आशिक़ थी, यूसुफ़-ज़ुलेख़ा की प्रेम कहानी की प्रेमिका। ख़ुलूस--मोहब्बत- प्यार और मोहब्बत,

_______________________


08

रमल मुसम्मन मख़बून महज़ूफ़ मक़तू

फ़ाएलातुन फ़इलातुन फ़इलातुन फ़ेलुन 
  • 2122
  • 1122
  • 1122
  • 22


—————————————-

अपने हर ग़म को वो अश्कों में पिरो लेती है

बेटी मुफ़लिस की खुले घर में भी सो लेती है

 

              तब मुझे दर्द का एहसास बहुत होता है                 

          जब मेरी लख़्त--जिगर आंख भिगो लेती है      

 

मैं अकेला नहीं रोता हूँ शब--हिज्राँ में 

मेरी तन्हाई मेरे साथ में रो लेती है 

 

अपने दुःख दर्द को मैला नहीं होने देती

अपनी आँखों से वो हर दर्द को धो लेती है

 

जब भी ख़ुश होके निकलता हूँ ‘रज़ा’ मैं घर से 

मेरी मायूसी मेरे साथ में हो लेती है


…..……………ए शेर………………

कितने अल्फाज़ मचलते हैं सँवरने के लिए

जब ख़्यालों में कोई  शेर उभर आता है

………………………………..

मुफ़लिस-ग़रीब। लख़्त--जिगर-बेटा या बेटी,

शब--हिज्राँ- वियोग की रात

____________xxx_____________


09

मुज्तस मुसम्मन मख़बून महज़ूफ़ मस्कन

मुफ़ाइलुन फ़इलातुन मुफ़ाइलुन फ़ेलुन 
  • 1212
  • 1122
  • 1212
  • 22

—————————————-

समझ रहा था जिसे अपना वाक़ई अब तक 

वो कर रहा था मेरे दिल से दिल-लगी अब तक 


हसीन जाल मोहब्बत का फेंकने वाले 
समझ चुका हूँ हर-इक चाल मैं तेरी अब तक


मेरे बदन का लहू ख़ुश्क हो गया होता 
अगर न होती मेरे जिस्म में नमी अब तक 


रदीफ़ क़ाफ़िया बंदिश ख़याल सब तू है

मैं तेरे नाम से करता हूँ शा’इरी अब तक


उछल-उछल के ख़ुशी नाचती थी आँगन में 
खटक रही है उसी बात की कमी अब तक 


वो जिसके हुस्न का चर्चा था सारे आलम में 
भटक रही है वो गलियों में बावरी अब तक 


उमड़ रहा है समुंदर मेरे ख़्यालों का 
टपक रही है निगाहों से आगही अब तक 


…..……………ए शेर………………

वाक़ई- सच में। ख़ुश्क-सूख जाना

आगही-समझ-बूझ, awareness।

_____________ ____________ 


10

❗️ फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़े ❗️

—————————————-

सुख उसका है दुख उसका है तो काहे का रोना है 
दौलत उसकी शोहरत उसकी क्या पाना क्या खोना है 

चाँद-सितारे उससे रौशन फूलों में उससे ख़ुश्बू 
ज़र्रे-ज़र्रे में वो शामिल वो चांदी वो सोना है

सारी दुनिया का वो मालिक हर-शय उसके क़ब्ज़े में 
उसके आगे सब कुछ फीका क्या जादू क्या टोना है 

गॉड ख़ुदा भगवान कहो या ईश्वर अल्लाह उसे कहो
वो  ख़ालिक है वो मालिक है उसका कोना-कोना है 


खुशिओं के वो मोती भर दे या ग़म की बरसात करे
वो मालिक है सारे जग का जो चाहे सो होना है


इक रस्ता जो बंद किया तो दस रस्ते वो खोलेगा 
उसपे भरोसा रख तू प्यारे जो लिक्खा वो होना है 


साँसों पे उसका है पहरा धड़कन है उसके दम से 
जिस्‍म 'रज़ा' है मिट्टी का तो क्या रोना क्या धोना है 

………………..…………….

ज़र्रे-ज़र्रे में- कण कण में। हर-शय-हर चीज़

 _________________________ 


11

रमल मुसम्मन मख़बून महज़ूफ़ मक़तू

फ़ाएलातुन फ़इलातुन फ़इलातुन फ़ेलुन 
  • 2122
  • 1122
  • 1122
  • 22


—————————————-

मेरी आँखों में हुआ जब से ठिकाना तेरा 
लोग कहते हैं सरे आम दिवाना तेरा


रोज़ मिलने की तसल्ली न दिया कर मुझको 
जान ले लेगा किसी रोज़ बहाना तेरा

छीन लेगा ये मेरा होश यक़ीनन इक दिन 
यूँ ख़यालों में शब-ओ-रोज़ का आना तेरा 

होश वालों को कहीं फिर न बना दे  पागल
महफिल-ए- हुस्न में बन-ठन के यूँ आना तेरा  

भूल पाना बड़ा मुश्किल है वो दिलकश मंज़र
मुस्कुरा कर लब--नाज़ुक को दबाना तेरा


…..……………ए शेर………………

यूसुफ़ न बन सका कभी तेरी निगाह में

लेकिन तुझे तो मैंने ज़ुलेख़ा बना दिया

———————-———————-

तसल्ली-दिलासा। शब-ओ-रोज़-रात दिन। महफिल-ए- हुस्न- सौंदर्य का सभा। दिलकश मंज़र- दिल को लुभाने वाला दृश्य। -लब--नाज़ुक-कोमल होट

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12

 मुज्तस मुसम्मन मख़बून महज़ूफ़ मस्कन

मुफ़ाइलुन फ़इलातुन मुफ़ाइलुन फ़ेलुन 
  • 1212
  • 1122
  • 1212
  • 22

—————————————-

तुम्हारी याद के लश्कर उदास बैठे हैं
हसीन ख़्वाब के मंज़र उदास बैठे हैं

तमाम गलीयाँ हैं ख़ामोश तेरे जाने से  
तमाम राह के पत्थर उदास बैठे हैं

बिना पिए तो सुना है उदास रिंदों को
मियाँ जी आप तो पी कर उदास बैठे हैं


ज़रा सी बात पे रिश्तों को कर दिया घायल
ज़रा सी बात को लेकर उदास बैठे हैं 

तेरे बग़ैर हर एक शय की आँख पुरनम है 
हमी नहीं मह-ओ-अख़्तर उदास बैठे हैं 

तमाम शहर तरसता है उनसे मिलने को

'रज़ा' जी आप तो मिलकर उदास बैठे हैं


…..……………ए शेर………………

बिन तेरे रात गुज़र जाए बड़ी मुश्किल है

और फिर याद भी न आए बड़ी मुश्किल है

………………………………….

याद के लश्कर- यादों का समूह।मंज़र- दृश्य,। रिंदों- शराबी,। मह-ओ-अख़्तर- चाँद और सूरज,

____________ xxx _____________          

 

   13 

रमल मुसम्मन मख़बून महज़ूफ़ मक़तू

फ़ाएलातुन फ़इलातुन फ़इलातुन फ़ेलुन 
  • 2122
  • 1122
  • 1122
  • 22


—————————————-

बिन तेरे रात गुज़र जाए बड़ी मुश्किल है

और फिर याद भी न आए बड़ी मुश्किल है

 

खोल कर बैठे हैं छत पर वो हसीं ज़ुल्फ़ों को

ऐसे में धूप निकल आए बड़ी मुश्किल है

 

मेरे महबूब का हो ज़िक्र अगर महफ़िल में

और फिर आँख न भर आए बड़ी मुश्किल है

 

वो हसीं वक़्त जो मिल कर के गुज़ारा था कभी

फिर वही लौट के आ जाए बड़ी मुश्किल है

 

वो सदाक़त वो सख़ावत वो मोहब्बत लेकर

फिर कोई आप सा आ जाए बड़ी मुश्किल है


…..……………ए शेर………………

दिल की बातें वो  ऐसे पढ़  लेता है

दिल न हुआ जैसे कोई अख़बार हुआ

……………………..…………………….

सदाक़त- सच्चाई,। सख़ावत- उदारता, दरियादिली,

_________________________


14

रमल मुसम्मन मख़बून महज़ूफ़ मक़तू

फ़ाएलातुन फ़इलातुन फ़इलातुन फ़ेलुन 
  • 2122
  • 1122
  • 1122
  • 22


—————————————-

चौदवीं शब  को सर-ए-बाम वो जब आता है

माह-ए-कामिल भी उसे देख के शरमाता है

 

मैं उसे चाँद कहूँ, फूल कहूँ, या  शबनम

उसका ही चेहरा हर इक शय में नज़र आता है

 

रक़्स करती हैं बहारें भी तेरे आने से

हुस्न मौसम का ज़रा और निखर जाता है

 

कितने अल्फाज़ मचलते हैं सँवरने के लिए

जब ख़्यालों में कोई  शेर उभर आता है

 

मैं मनाऊँ तो भला  कैसे मनाऊँ उसको

मेरा महबूब तो बच्चो सा मचल जाता है

 

जब उठा लेती है माँ हाथ दुआओं के लिए

रास्ते से मेरे तूफ़ान भी हट जाता है


…..……………ए शेर………………

जिसकी ख़ुशबू से महक जाए ये दुनिया सारी

फूल ऐसा कोई गुलशन में खिलाना होगा

………………….……………….

सर-ए-बाम-छत के ऊपर। माह-ए-कामिल -चौदहवीं का पूरा चाँद । तसव्वुर-ख़्यालों। रक़्स- नाचना। अल्फाज़-शब्द समूह, बोल।

 ———————-xxx———————-


15.

मुज्तस मुसम्मन मख़बून महज़ूफ़ मस्कन

मुफ़ाइलुन फ़इलातुन मुफ़ाइलुन फ़ेलुन 
  • 1212
  • 1122
  • 1212
  • 22

—————————————-

जनाब-ए-‘मीर’ के लहजे की नाज़ुकी की तरह 
तुम्हारे लब हैं गुलाबों की पंखुड़ी की तरह 

शगुफ़्ता चेहरा ये ज़ुल्फ़ें ये नर्गिसी आँखें
तेरा हसीन तसव्वुर है शायरी की तरह 

तुम्हारे आने से हर-सू ख़ुशी बरसती है
अँधेरी रात चमकती है चाँदनी की तरह  

यूँ ही न बज़्म से तारीकियाँ हुईं ग़ाएब
कोई न कोई तो आया है रौशनी की तरह

यही ख़ुदा से दुआ माँगता हूँ रातो दिन
कि मैं भी जी लूँ ज़माने में आदमी की तरह


…..……………ए शेर………………

ये और बात है कि वो मिलते नहीं मगर

किसने कहा कि उनसे मेरी दोस्ती नहीं

…………………………………

लहजा-कहने या बात करने का ढंग।नाज़ुकी-कोमलता।शगुफ्ता चेहरा-खिला हुआ चेहरा, नर्गिसी-एक फूल जोआँखों की तरह का होता है, तसव्वुर-ख़्याल। तारीकियाँ- अँधेरा

____________xxx____________


16

ख़फ़ीफ़ मुसद्दस मख़बून महज़ूफ़ मक़तू

फ़ाएलातुन मुफ़ाइलुन फ़ेलुन 
  • 2122
  • 1212
  • 22


—————————————-

अपनी ज़ुल्फों को धो रही है शब

और ख़ुश्बू निचो रही है शब

 

मेरे ख़्वाबों की ओढ़कर चादर

मेरे बिस्तर पे सो रही है शब

 

अब अँधेरों से जंग की ख़ातिर

कुछ चराग़ों को बो रही है शब

 

सुब्ह-ए-नौ के क़रीब आते ही

अपना अस्तित्व खो रही है शब

 

दिन के सदमों को सह रहा है दिन

रात का बोझ ढो रही है शब


…..……………ए शेर………………

अब तो बदन में पहली सी ताक़त नहीं रही

लज़्ज़त मगर वही है सुख़न में अभी तलक

……………………………….

शब-रात।निचो- निचोड़ने की क्रिया।

जंग की ख़ातिर- लड़ाई के लिए। चराग़-दीपक।

सुब्ह-ए-नौ,,नए दिन का प्रारंभ। अस्तित्व-स्वरूप।सदमा-यातना।

____________xxx_____________


17

मुज़ारे मुसम्मन अख़रब मकफ़ूफ़ महज़ूफ़

मफ़ऊल फ़ाइलात मुफ़ाईलु फ़ाइलुन 
  • 221
  • 2121
  • 1221
  • 212


—————————————-

गुलशन में जैसे फूल नहीं ताज़गी नहीं

तेरे बग़ैर  ज़िन्दगी ये ज़िन्दगी  नहीं


ये और बात है कि वो मिलते नहीं मगर

किसने कहा कि उनसे मेरी दोस्ती नहीं

 

तेरे ही दम से खुशियाँ हैं घर बार में मेरे

होता जो तू नहीं तो ये होती ख़ुशी नहीं

 

ख़ून-ए-जिगर से मैंने सवाँरी है हर ग़ज़ल

मेरे सुख़न का  रंग कोई  काग़ज़ी नहीं

 

मैं ख़ुद गुनाहगार  हूँ अपनी  निगाह  में

उसके ख़ुलूस-ओ-इश्क़ में कोई कमी नहीं

 

छूके दरिचा लौट गया मौसम-ए- बहार

लगता  है अब नसीब मे मेरे ख़ुशी नहीं


तुझसे 'रज़ा' के शेरों में संदल सी है महक

मुमकिन  तेरे  बग़ैर  मेरी  शायरी  नहीं

……………………………………….

ख़ून-ए-जिगर-दिल के ख़ून। ख़ुलूस-ओ-इश्क़-प्रेम और मित्रता। दरिचा-खिड़की या रौशनदान। संदल-चंदन

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18

❗️ फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़े ❗️

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जिनके होटों पर उल्फ़त की  सच्चाई मुस्काती है

उनके आँगन में ख़ुशियों की रानाई मुस्काती है


जिसके ख़ुशबू से ख़ुशबू है गुलशन के सब फूलों में

उसको छूकर आने वाली पुरवाई मुस्काती है


जिनके खिलने से दुनिया का हर गुलशन आबाद हुआ

उन कलिओं की ख़ुशी सजाकर शहनाई मुस्काती है


जब मेहनत के छाँव तले ये बोझिल मन सुस्ताता है

तब बाँहों में आकर पगली अंगड़ाई मुस्काती है


जिसके ख़्यालों के ‘शॉवर’ में मन बेचैन नहाता है 

उसकी ख़ुशबू पाकर दिल की अँगनाई मुस्काती है


यादें घायल साँसें बोझल जीना है दुश्वार मेरा

मेरी हालत देख के अब तो तन्हाई मुस्काती है

 …..……………ए शेर………………

तू कहे तो मैं खुरच डालूँ बदन को लेकिन

तेरी ख़ुशबू को मैं साँसों से मिटाऊँ कैसे

…………………………………

उल्फ़त- प्रेम।रा’नाई-सुंदरता, बोझिल-थका हारा। शॉवर-स्नान करने वाला शॉवर नल।दुश्वार-मुश्क़िल

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19

ख़फ़ीफ़ मुसद्दस मख़बून महज़ूफ़ मक़तू

फ़ाएलातुन मुफ़ाइलुन फ़ेलुन 
  • 2122
  • 1212
  • 22


—————————————-

नूर चेहरे से यूँ छलकता है
जैसे सूरज कोई चमकता है


इक दफ़ा ख़्वाब में वो क्या आया
घर मेरा अब तलक महकता है


क्या कशिश है तुम्हारी आँखों में

देखकर तुमको दिल धड़कता है


उसकी दिलकश अदा हसीं चेहरा 
सबकी नज़रों में क्यूँ खटकता है


इश्क़ के जब हथौड़े पड़ते हैं

दर्द-ए-दिल आँखों से छलकता है


अब तलक इन ज़’ईफ़ आँखों में

सिर्फ़  तेरा  बदन चमकता है


…..……………ए शेर………………

माँ ने जो खिलाई थीं अपने प्यारे हाथों से 

ज़ेहन में अभी तक वो रोटियाँ महकती हैं 

……………………………….

नूर-आभाया रौशनी। एक दफ़ा-एक बार। 

ज़ईफ़- वृद्ध या कमज़ोर।

———————-xxx———————-


20

❗️ फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़े ❗️

—————————————-

हम जैसे पागल बहुतेरे फिरते हैं

आप भला क्यूँ बाल बिखेरे फिरते हैं 


काँधों पर ज़ुल्फ़ें ऐसे बल खाती हैं 

जैसे लेकर साँप सपेरे फिरते हैं 


चाँद -सितारे क्यूँ मुझसे पंगा लेकर 

मेरे पीछे डेरे - डेरे फिरते हैं 


ख़ुशियाँ मुझको ढूँढ रही हैं गलियों में 

पर ग़म हैं जो घेरे - घेरे फिरते हैं


वो जाने कब उनके करम की बारिश हो

और वो जाने कब दिन मेरे फिरते है


…..……………ए शेर…………

ख़ुशियाँ मुझको ढूँढ रही हैं गलियों में

पर ग़म हैं की घेरे - घेरे फिरते हैं

……………………………

बहुतेरे-बहुत सारे। पंगा-दुश्मनी। ग़म- परेशानी

———————-xxx———————-

A 20 GAZLEN SALEEM RAZA REWA

  🅰️ 20 ग़ज़लें  01 मुज्तस मुसम्मन मख़बून महज़ूफ़ मस्कन मुफ़ाइलुन फ़इलातुन मुफ़ाइलुन फ़ेलुन  1212 1122 1212 22 ——— ——— —— —— ———- हर एक शय से ज़ि...