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Friday, November 3, 2023

बूढ़ी आँखों में भी कितने ख़्वाब SALEEM RAZA REWA


बूढ़ी आँखों में भी कितने ख़्वाब सजाए बैठे हैं

जाने कब होंगे पूरे, उम्मीद लगाए बैठे हैं

 

दिल की बात ज़ुबाँ तक आए ये ना मुमकिन लगता है

ख़ामोशी में जाने कितने राज़ छुपाए बैठे हैं


किसको दिल का दर्द बताएँ किसको हाल सुनाएँ हम

ख़ुद ही अपनी मजबूरी का बोझ उठाये बैठे हैं


वो भी बदल जाएँगे इक दिन ऐसी हमें उम्मीद न थी

जिनके प्यार में हम अपना घरबार लुटाए बैठे हैं


कौन है अपना कौन पराया कैसे ‘रज़ा’ पहचानोगे

चेहरों पर तो फ़र्ज़ी चेहरे लोग लगाए बैठे  हैं


A 20 GAZLEN SALEEM RAZA REWA

  🅰️ 20 ग़ज़लें  01 मुज्तस मुसम्मन मख़बून महज़ूफ़ मस्कन मुफ़ाइलुन फ़इलातुन मुफ़ाइलुन फ़ेलुन  1212 1122 1212 22 ——— ——— —— —— ———- हर एक शय से ज़ि...