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Monday, November 13, 2023

अपने हर ग़म को वो अश्कों में SALIM RAZA REWA


अपने हर ग़म को वो अश्कों में पिरो लेती है

बेटी मुफ़लिस की खुले घर मे भी सो लेती है

💕

तब मुझे दर्द का एहसास बहुत होता है                 

जब मेरी लख़्त-ए-जिगर आंख भिगो लेती है      

 💕

मैं अकेला नहीं रोता हूँ शब-ए-हिज्राँ में 

मेरी तन्हाई मेरे साथ में रो लेती है 

💕

अपने दुःख दर्द को मैला नहीं होने देती

अपनी आँखों से वो हर दर्द को धो लेती है

💕

जब भी ख़ुश होके निकलता हूँ ‘रज़ा’ मैं घर से 

मेरी मायूसी मेरे साथ में हो लेती है

………………💕…………………

اپنے ہر غم کو وہ عشقوں میں  پِرو لیتی ہے

بیٹی مُفلِس کی کُھلے گھر میں بھی سو لیتی ہے

💕

تب مجھے درد کا احساس بہت ہوتا ہے 

جب میری لختِ جگر آنکھ بھِگو لیتی ہے

💕

میں اکیلا نہیں روتا ہوں شبِ ہجراں میں 

میری تنہائی میرے ساتھ میں رو لیتی ہے

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اپن ے دُکھ  درد کو میلہ نہیں ہونے دیتی                        

اپنی آنکھوں سے وہ ہر درد کو دھو لیتی ہے

💕

جب بھی خوش ہو کہ نکلتا ہوں رضآ میں گھر سے

میری  مایوسی میرے ساتھ  مین  ہو لیتی ہے 

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            10/10/2019

फ़ाइलातुन फ़यलातुन फ़यलातुन फ़ेलुन

2122 1122 1122 22

बहरे रमल मुसम्मन मख़बून महज़ूफ़

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अश्कों में पिरो - आंसुओं में गुथना,मुफ़लिस- ग़रीब,शब-ए-हिज्राँ में-विरह की रात

A 20 GAZLEN SALEEM RAZA REWA

  🅰️ 20 ग़ज़लें  01 मुज्तस मुसम्मन मख़बून महज़ूफ़ मस्कन मुफ़ाइलुन फ़इलातुन मुफ़ाइलुन फ़ेलुन  1212 1122 1212 22 ——— ——— —— —— ———- हर एक शय से ज़ि...