Gazal by Salim Raza Rewa
Sunday, October 29, 2023
अपनी ज़ुल्फों को धो रही है शब - ग़ज़ल सलीम रज़ा
मेरी तरह वो भी हिम्मत SALEEM RAZA REWA
खुल्लम-खुल्ला मुझ से मिलने आएँ तो
रस्ता तकते तकते गर थक जाएँ तो
आँखों के पनघट पे मिलने आएँ तो
अपने दर पर मुझको कभी बुलाएँ तो
प्यार की सांसें जिस दम मुरझा जाएँ तो
मेल जोल पर पहरे लोग बिठाएँ तो
यादें उनकी आ कर हमें सताएँ तो
Wednesday, October 25, 2023
बहारें कब लबों को खोलती हैं -सलीम रज़ा रीवा
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امیرِ شہر کا قبضہ ہے لیکن
غریبوں کی دیواریں ٹوٹتی ہیں
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Shayar by Salim Raza
Tuesday, October 24, 2023
ख़राबी के नज़ारे उग रहे हैं Salimraza rewa
ख़राबी के नज़ारे उग रहे हैं
मुनाफ़े में ख़सारे उग रहे हैं
तेरे होंटों पे कलियाँ खिल रही हैं
मेरे आंखो में तारे उग रहे है
फ़लक चूमे है धरती के लबों को
कि धरती से किनारे उग रहे हैं
तुम्हारे इश्क़ में जलने की ख़ातिर
बदन में कुछ शरारे उग रहे हैं
फ़लक के चाँद को छूने की ज़िद में
'रज़ा' जी पर हमारे उग रहे हैं
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خرابی کے نظاریی اُگ رہے ہیں
منافع میں خسارے اُگ رہے ہیں
ترے ہونںٹوں پہ کلیاں کھل رہی ہیں
مری آنکھوں میں تارے اُگ رہے ہیں
فلک چومے ہے دھرتی کے لبوں کو
کہ دھرتی سے کنارے اُگ رہے ہیں
تمہارے عشق میں جلنے کی خاطر
بدن میں کچھ شرارے اُگ رہے ہیں
فلک کے چاند کو چھونے کی زد میں
رضٓا جی پر ہمارے اُگ رہے ہیں
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हज़ज मुसद्दस महज़ूफ़
1222 1222 122
मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन फ़ऊलुन
Thursday, October 19, 2023
तुम्हारे दिल में हमारा ख़्याल- SALIM RAZA REWA
तुम्हारे दिल में हमारा ख़याल है कि नहीं
कि साथ छोड़ने का कुछ मलाल है कि नहीं
तुझे लगा था कि मर जाऊँगा जुदा होकर
तेरे बग़ैर हूँ ज़िंदा कमाल है कि नहीं
नहीं कहा था जो देखोगे होश खो दोगे
बताओ यार मेरा बे - मिसाल है कि नहीं
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हमने हरिक उम्मीद का पुतला जला दिया
दुश्वारियों को पांव के नीचे दबा दिया
मेरी तमाम उँगलियाँ घायल तो हो गईं
लेकिन तुम्हारी याद का नक़्शा मिटा दिया
मैंने तमाम छाँव ग़रीबों में बांट दी
और ये किया कि धूप को पागल बना दिया
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उन्हे कुछ न छुपाना चाहिए था
अगर ग़म था बताना चाहिए था
मेरी ख़्वाहिश थी बस दो गज़ ज़मीं की
उन्हें सारा ज़माना चाहिए था
मुझे अपना बनाने के लिए तो
न माल-ओ-ज़र ख़ज़ाना चाहिए था
समझ लेता निगाहों का इशारा
ज़रा सा मुस्कुराना चाहिए था
महक जाता ये जिस्म-ओ-जां तुम्हारा
मोहब्बत में नहाना चाहिए था
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हर एक शय से ज़ियादा वो प्यार करता है
तमाम खुशियाँ वो मुझपे निसार करता है
मैं दिन को रात कहूँ वो भी दिन को रात कहे
यूँ आँख मूंद कर वो ऐतबार करता है
मै जिसके प्यार को अब तक समझ नही पाया
तमाम रात मेरा इंतज़ार करता है
हमें तो प्यार है गुल से चमन से खुश्बू से
वो कैसा शख्स है फूलों पे वार करता है
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तुम्हारी याद के लश्कर उदास बैठे हैं
हसीन ख़्वाब के मंज़र उदास बैठे हैं
तमाम गालियाँ हैं ख़ामोश तेरे जाने से
तमाम राह के पत्थर उदास बैठे हैं
बिना पिए तो सुना है उदास रिंदों को
मियाँ जी आप तो पी कर उदास बैठे हैं
ज़रा सी बात पे रिश्तों को कर दिया घायल
ज़रा सी बात को लेकर उदास बैठे हैं
तेरे बग़ैर हर एक शय की आँख पुरनम है
हमी नहीं मह-ओ-अख़्तर उदास बैठे हैं
तमाम शहर तरसता है उनसे मिलने को
'रज़ा' जी आप तो मिलकर उदास बैठे हैं
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हम जैसे पागल बहुतेरे फिरते हैं
आप भला क्यूँ बाल बिखेरे फिरते हैं
काँधों पर ज़ुल्फ़ें ऐसे बल खाती हैं
जैसे लेकर साँप सपेरे फिरते हैं
चाँद -सितारे क्यूँ मुझसे पंगा लेकर
मेरे पीछे डेरे - डेरे फिरते हैं
खुशियां मुझको ढूँढ रही हैं गलियों में
पर ग़म हैं की घेरे - घेरे फिरते हैं
ना जाने कब उनके करम की बारिश हो
और न जाने कब दिन मेरे फिरते है
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ज़िन्दगी का फैसला हो जाएगा
तू सनम जिस दिन मेरा हो जाएगा
प्यार की, कुछ बूँद ही मिल जाए तो
गुलशन-ए-दिल फिर हरा हो जाएगा
दामन-ए-महबूब जिस दम मिल गया
आंसुओं का हक़ अदा हो जाएगा
धड़कने किसको पुकारेंगी मेरी
तू अगर मुझसे जुदा हो जाएगा
गर्दिशों की आँच में तपकर 'रज़ा'
एक दिन तू भी खरा हो जाएगा
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Wednesday, October 11, 2023
'रज़ा' जी आप तो मिलकर उदास बैठे हैं - SALIM RAZA
जो मेरी छत पे कबूतर उदास बैठे हैं
तुम्हारी याद के लश्कर उदास बैठे हैं
हसीन ख़्वाब के मंज़र उदास बैठे हैं
तमाम गालियाँ हैं ख़ामोश तेरे जाने से
तमाम राह के पत्थर उदास बैठे हैं
बिना पिए तो सुना है उदास रिंदों को
हमी नहीं मह-ओ-अख़्तर उदास बैठे हैं
तमाम शहर तरसता है उनसे मिलने को
'रज़ा' जी आप तो मिलकर उदास बैठे हैं
A 20 GAZLEN SALEEM RAZA REWA
🅰️ 20 ग़ज़लें 01 मुज्तस मुसम्मन मख़बून महज़ूफ़ मस्कन मुफ़ाइलुन फ़इलातुन मुफ़ाइलुन फ़ेलुन 1212 1122 1212 22 ——— ——— —— —— ———- हर एक शय से ज़ि...
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01- मफ़ऊल फ़ाइलात मुफ़ाईलु फ़ाइलुन 221 2121 1221 212 बहरे मज़ारिअ मुसमन अख़रब मकफूफ़ मकफूफ़ महज़ूफ़ ——————————————– ह मने हरिक ...
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हँस दे तो खिले कलियाँ गुलशन में बहार आए वो ज़ुल्फ़ जो लहराएँ मौसम में निखार आए o o मदहोश हुआ दिल क्यूँ बेचैन है क्यूँ आँखें रंग...
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61 . मुज़ारे मुसम्मन अख़रब मकफ़ूफ़ महज़ूफ़ मफ़ऊल फ़ाइलात मुफ़ाईलु फ़ाइलुन 221/2121/1221/212 ——— ——— —————— ——— ——— मेरे वतन में आते हैं सारे जहा...