आख़िरी बार गले तुझ को लगाता जाऊँ
जाने गुजरेंगे भला कैसे अब तुम्हारे बिन
अब इसी याद के तूफ़ां में समाता जाऊँ
सुरमई शाम तो ख़ुश रंग सवेरा देखा
ऐसे लमहात को आँखों में सजाता जाऊँ
तेरी हर एक अदा दिल में बसा रक्खी है
अपनी साँसों में तेरी साँस मिलाता जाऊँ
आसी हूँ ख़बर मेरी महबूब ए ख़ुदा लेना
मुझको भी मदीने में इक बार बुला लेना
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उस गर्मीए महशर से सरकार बचा लेना
मुझकॊ भी मेरे आक़ा कमली में छुपा लेना
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अल्लाह के महबूब का जब ज़िक्र करे कोई
उस वक़्त दुरूद अपने होंटों पे सजा लेना
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पहुचूँगा जब मदीना ऐ मौत चली आना
जब सर हो दरे आक़ा उस वक़्त उठा लेना
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फरियाद यही मेरी सरकारे दो आलम है
ब वक़्त ए नज़ा आक़ा रौज़े पे बुला लेना
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चाहूँ मैं दर ए आक़ा की सिर्फ गुलामी को
दुनिया की शहँशाही से मुझको है क्या लेना
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अल्लाह 'रज़ा' पर भी हो नज़रें करम तेरी
सदक़े में मुहम्मद के हर ग़म से बचा लेना
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जिस वक़्त 'रज़ा' पहुंचो सरकार के रौज़े पर
तुम सबकी तरह बिगड़ी क़िस्मत को बना लेना
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221 1222 221 1222
चांद का टुकड़ा है या कोई परी या हूर है
उसके चहरे पे चमकता हर घड़ी इक नूर है
हुस्न पर तो नाज़ उसको ख़ूब था पहले से ही
आइने को देख कर वो और भी मग़रूर है
हार कर रुकना नहीं ग़र तेरी मंज़िल दूर है
ठोकरें खाकर सम्हलना वक़्त का दस्तूर है
हौसले के सामने तक़दीर भी झुक जायेगी
तू बदल सकता है क़िस्मत किसलिए मजबूर है
आदमी की चाह हो तो खिलते है पत्थर में फूल
कौन सी मंज़िल भला इस आदमी से दूर है
ख़ाक का पुतला इंसाँ ख़ाक में मिल जाएगा
कैसी दौलत कैसी शोहरत क्यों भला मग़रूर है
वक़्त से पहले किसी को कुछ नहीं मिलता कभी
वक़्त के हाथो यहाँ हर एक शय मजबूर है
उसकि मर्ज़ी के बिना हिलता नहीं पत्ता कोई
उसका हर एक फैसला हमको रज़ा मंज़ूर है
🅰️ 20 ग़ज़लें 01 मुज्तस मुसम्मन मख़बून महज़ूफ़ मस्कन मुफ़ाइलुन फ़इलातुन मुफ़ाइलुन फ़ेलुन 1212 1122 1212 22 ——— ——— —— —— ———- हर एक शय से ज़ि...