Saturday, November 3, 2018

अन-गिनत फूल मोहब्बत के चढ़ाता जाऊँ - सलीम रज़ा रीवा SALIM RAZA REWA


अन-गिनत फूल मोहब्बत के चढ़ाता जाऊँ
आख़िरी बार गले तुझ को लगाता जाऊँ

oo
जाने इस शहर में फिर लौट के कब आऊँगा

पर ये वादा है तुझे भूल नहीं पाऊंगा

तेरी तस्वीर को आँखो में बसाता जाऊँ

आख़िरी बार गले..................... 

oo
साथ मिलकर जो गुज़ारे थे हसीं रातो दिन
जाने गुजरेंगे भला कैसे अब तुम्हारे बिन
अब इसी याद के तूफ़ां में समाता जाऊँ 

आख़िरी बार गले..................... 

oo
तेरी प्यारी सी छुअन जिस्‍म मुअत्तर कर दे

तेरे चेहरे की चमक रात को रोशन कर दे

तेरी शोखी तेरी रंगत को चुराता जाऊँ

आख़िरी बार गले.....................

oo
तेरे इस शहर में खुशीओं का बसेरा देखा
सुरमई शाम तो ख़ुश रंग सवेरा देखा
ऐसे लमहात को आँखों में सजाता जाऊँ

आख़िरी बार गले..................... 

oo
तेरी साँसों ने महकने की अदा बख़्शी है

तूने इस दिल को धड़कने की अदा बख़्शी है

तेरी यादों के दिए दिल में जलाता जाऊँ

आख़िरी बार गले..................... 

oo
तेरी तस्वीर को आँखो में छुपा रक्खी है
तेरी हर एक अदा दिल में बसा रक्खी है
अपनी साँसों में तेरी साँस मिलाता जाऊँ

आख़िरी बार गले..................... 

oo
मुझसे ख़ाबों में कभी मिलने मिलाने आना

चाँद सा चेहरा कभी मुझको दिखाने आना

तेरी आँखों की ज़रा नीद चुराता जाऊँ

आख़िरी बार गले.....................

oo
मेरे आँसू तेरी चाहत नहीं लिखने देते

कांपते हाथ हक़ीक़त नहीं लिखने देते

दर्द-ए-दिल तुमको मेरी जान सुनाता जाऊँ

आख़िरी बार गले.....................

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             सालिरज़ा रीवा 25/09/2018






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