Wednesday, October 25, 2023

बहारें कब लबों को खोलती हैं -सलीम रज़ा रीवा

 

बहारें कब लबों को खोलती हैं
बड़ी हसरत से कलियाँ देखती हैं 

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भले ख़ामोश हैं ये लब तुम्हारे 
मगर आँखे बहुत कुछ बोलती हैं 
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अमीर-ए-शहर का, क़ब्ज़ा है लेकिन 
ग़रीबों की दीवारें टूटती हैं 

💕
समुंदर को कहाँ ख़ुश्की का डर है
वो नदिया हैं जो अक्सर सूखती हैं
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न जाने कब हटा दें ज़ुल्फ अपनी
उन्हें एक टक ये आँखें देखती हैं
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रज़ा' है रब का ये अहसान मुझपर 
जो खुशियां मेरे घर में खेलती

……………🌺……………

بہاری کب لبوں کو کھولتی ہیں
بڑی حسرت سے کلیاں دیکھتیں ہیں

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بھلے خاموش ہیں یہ لب تمہارے 
مگر آنکھیں بہت کچھ دیکھتی ہیں

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امیرِ شہر کا قبضہ ہے لیکن 

غریبوں کی دیواریں ٹوٹتی ہیں

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سمندر کو کہا خوشکی کا ڈر ہے
وہ ندیاں ہیں جو اکثر سوکھتی ہیں

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نہ جانے کب ہٹا دی زلف اپنی
انہیں اک ٹک یہ آنکھیں دیکھتی ہیں

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رضا ہے رت کا یہ احسان مجھ پر
جو خوشیاں میرے گھر میں کھیلتی ہیں
……………🌺……………

Shayar by Salim Raza  

Tuesday, October 24, 2023

ख़राबी के नज़ारे उग रहे हैं Salimraza rewa


ख़राबी के नज़ारे उग रहे हैं 

मुनाफ़े में ख़सारे उग रहे हैं 


तेरे होंटों पे कलियाँ खिल रही हैं 

मेरे आंखो में तारे उग रहे है


फ़लक चूमे है धरती के लबों को

कि धरती से किनारे उग रहे हैं


तुम्हारे इश्क़ में जलने की ख़ातिर 

बदन में कुछ शरारे उग रहे हैं


फ़लक के चाँद को छूने की ज़िद में 

'रज़ा' जी पर हमारे उग रहे हैं

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خرابی کے نظاریی اُگ رہے ہیں 

منافع میں خسارے اُگ رہے ہیں


ترے ہونںٹوں پہ کلیاں کھل رہی ہیں 

مری آنکھوں میں تارے اُگ رہے ہیں 


فلک چومے ہے دھرتی کے لبوں کو 

کہ دھرتی سے کنارے اُگ رہے ہیں  


تمہارے عشق میں جلنے کی خاطر 

بدن میں کچھ شرارے اُگ رہے ہیں


فلک کے چاند کو چھونے کی زد میں 

رضٓا جی پر ہمارے اُگ رہے ہیں

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हज़ज मुसद्दस महज़ूफ़

1222 1222 122 

मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन फ़ऊलुन

Thursday, October 19, 2023

तुम्हारे दिल में हमारा ख़्याल- SALIM RAZA REWA


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तुम्हारे दिल में हमारा ख़याल है कि नहीं

कि साथ छोड़ने का कुछ मलाल है कि नहीं


तुझे लगा था कि मर जाऊँगा जुदा होकर

तेरे बग़ैर हूँ ज़िंदा कमाल है कि नहीं

 

नहीं कहा था जो देखोगे होश खो दोगे

बताओ यार मेरा बे - मिसाल है कि नहीं

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हमने हरिक उम्मीद का पुतला जला दिया

दुश्वारियों को पांव के नीचे दबा दिया

 

मेरी तमाम उँगलियाँ घायल तो हो गईं

लेकिन तुम्हारी याद का नक़्शा मिटा दिया


मैंने तमाम छाँव ग़रीबों में बांट दी

और ये किया कि धूप को पागल बना दिया

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उन्हे कुछ न छुपाना चाहिए था 

अगर ग़म था बताना चाहिए था


मेरी ख़्वाहिश थी बस दो गज़ ज़मीं की 

उन्हें सारा ज़माना चाहिए था

  

मुझे अपना बनाने के लिए तो

न माल--ज़र ख़ज़ाना चाहिए था  

 

समझ लेता निगाहों  का इशारा

ज़रा सा मुस्कुराना चाहिए था

 

महक जाता ये जिस्म--जां तुम्हारा

मोहब्बत में नहाना चाहिए था

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हर एक शय से ज़ियादा वो प्यार करता है

तमाम खुशियाँ वो मुझपे निसार करता है

 

मैं दिन को रात कहूँ वो भी दिन को रात कहे

यूँ आँख  मूंद  कर वो  ऐतबार  करता है

 

मै जिसके प्यार को अब तक समझ नही पाया

तमाम   रात   मेरा   इंतज़ार  करता   है

 

हमें तो प्यार है गुल से चमन से खुश्बू से

वो कैसा शख्स है फूलों पे वार करता है

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तुम्हारी याद के लश्कर उदास बैठे हैं

हसीन ख़्वाब के मंज़र उदास बैठे हैं


तमाम गालियाँ हैं ख़ामोश तेरे जाने से

तमाम राह के पत्थर उदास बैठे हैं


बिना पिए तो सुना है उदास रिंदों को           

मियाँ जी आप तो पी कर उदास बैठे हैं

 

ज़रा सी बात पे रिश्तों को कर दिया घायल

ज़रा सी बात को लेकर उदास बैठे हैं


तेरे बग़ैर हर एक शय की आँख पुरनम है 

हमी नहीं मह-ओ-अख़्तर उदास बैठे हैं  


तमाम शहर तरसता है उनसे मिलने को

'रज़ा' जी आप तो मिलकर उदास बैठे हैं  

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हम जैसे पागल बहुतेरे फिरते हैं

आप भला क्यूँ बाल बिखेरे फिरते हैं 


काँधों पर ज़ुल्फ़ें ऐसे बल खाती हैं 

जैसे लेकर साँप सपेरे फिरते हैं 


चाँद -सितारे क्यूँ मुझसे पंगा लेकर 

मेरे पीछे डेरे - डेरे फिरते हैं 


खुशियां मुझको ढूँढ रही हैं गलियों में 

पर ग़म हैं की घेरे - घेरे फिरते हैं


ना जाने कब उनके करम की बारिश हो

और न जाने कब दिन मेरे फिरते है

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ज़िन्दगी का फैसला हो जाएगा

तू सनम जिस दिन मेरा हो जाएगा

 

प्यार की, कुछ बूँद ही मिल जाए तो

गुलशन-ए-दिल फिर हरा हो जाएगा

 

दामन-ए-महबूब जिस दम मिल गया

आंसुओं का हक़ अदा हो जाएगा

 

धड़कने किसको पुकारेंगी मेरी

तू अगर मुझसे जुदा हो जाएगा

 

गर्दिशों की आँच में तपकर 'रज़ा'

एक दिन तू भी खरा हो जाएगा

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Mohd Salim Raza 
9424336644

Wednesday, October 11, 2023

'रज़ा' जी आप तो मिलकर उदास बैठे हैं - SALIM RAZA



जो मेरी छत पे कबूतर उदास बैठे हैं
वो तेरी याद में दिलबर उदास बैठे हैं

तुम्हारी याद के लश्कर उदास बैठे हैं
हसीन ख़्वाब के मंज़र उदास बैठे हैं

माम गालियाँ हैं ख़ामोश तेरे जाने से
तमाम राह के पत्थर उदास बैठे हैं

बिना पिए तो सुना है उदास रिंदों को           
मियाँ जी आप तो पी कर उदास बैठे हैं


ज़रा सी बात ने रिश्तों को कर दिया घायल
ज़रा सी बात को लेकर उदास बैठे हैं

तेरे बग़ैर हर एक शय की आँख पुरनम है 
हमी नहीं मह-ओ-अख़्तर उदास बैठे हैं  

तमाम शहर तरसता है उनसे मिलने को
'रज़ा' जी आप तो मिलकर उदास बैठे हैं  
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                  सली रज़ा रीवा

Saturday, August 19, 2023

जिंदगी का सहारा N


ज़िंदगी का  सहारा   मिले  ना  मिले
साथ  मुझको  तुम्हारा  मिले ना मिले
🎋
आजा  तुझको गले से लगा लू  सनम
फिर ये  लम्हें  दुबारा  मिले  ना मिले
🎋
जी ले खुशिओं की पतवार है हाँथ में
बहरे ग़म  में  किनारा  मिले न मिले
🎋
नीद में  ख़्वाब में  दिन  में  औ  रात  में
तू   मिले  कुछ  भी यारा  मिले ना मिले
🎋
क्या बताये  हुई  क्या है  मुझसे  ख़ता
सुनके  नज़रे  दुबारा    मिले ना मिले
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हमसफ़र तुम सा प्यारा मिले न मिले
साथ मुझको   तुम्हारा  मिले न मिले
🎋
इश्क़ का कर दे इज़हार तन्हा है वो
ऐसा  मौक़ा दुबारा   मिले  न  मिले
🎋
साँस बनकर रहो धड़कनों में मेरी
मुझको जन्नत ख़ुदारा मिले न मिले
🎋
वो भी होते तो आता मज़ा और भी
फिर सुहाना  नज़ारा  मिले न मिले
🎋
क्या बताये हुई क्या है मुझसे ख़ता
सुनके  नज़रे  दुबारा मिले ना मिले

Friday, March 13, 2020

बेटी बचाइए

बेटी से ये जहान है बेटी बचाइए
ये मान है सम्मान है बेटी बचाइए

पापा की लाडली हैं ये मम्मी की जान हैं
परियों सी हैं ये बेटियाँ कुनबे की शान हैं
औरत का हरिक रूप इन्हीं बेटियों से है
दुनिया का ये स्वरुप इन्हीं बेटियों से है
ये दो कुलों की शान है बेटी बचाइए

बेटी मे न बेटों में कोई फर्क़ जानिए
बेटी को भी बेटों की तरह ख़ूब मानिए
उसको पड़ा लिखा के होनहार कीजिए
बेटी को भी बेटों की तरह प्यार कीजिए
मां बाप की ये जान है बेटी बचाइए

सारी ये क़ायनात बदौलत इन्हीं से है
सारे जहाँ में फैली मोहब्बत इन्हीं से है
बेटी चमेली बनके चमन में महक रही
बातों से यूं लगे की है बुलबुल चहक रही
बेटी से ही मुस्कान है बेटी बचाइए

बेटी कही पे माँ कही बहना के रूप में
पत्नी बहु ये बनके निकलती है धूप में
हर क्षेत्र में सम्मान इन्हीं बेटियों से है
भारत मेरा महान इन्हीं बेटियों से है
बेटी वतन की शान है बेटी बचाइए

बेटी को मारिए न बहु को जलाइए
बेटी बहन किसी की हो इज़्ज़त बचाइए
बन कर बहू ये घर को ही मंदिर बनाएगी
मां बन के एक रोज़ ये ममता लुटाएगी
इससे ही हर इंसान है बेटी बचाइए

सलीम रज़ा रीवा

Thursday, December 26, 2019

ऐ मेरे दोस्त मोहब्बत को बचाए रखना - सलीम रज़ा


ऐ मेरे दोस्त मोहब्बत को बचाए रखना   
दिल में ईमान की शम्अ' को जलाए  रखना 
ꣻ   
इस नए साल में खुशियों का चमन खिल जाए
सबको मनचाही  मुरादों का सिला मिल जाए 
इस नए साल में खुशियों की हो बारिश घर घर
इस नए साल को ख़ुश रंग बनाए रखना
ꣻ    
जान पुरखों ने लुटाई है वतन की ख़ातिर 
गोलियाँ सीने में खाई है वतन की ख़ातिर
सारे धर्मों से ही ताक़त  है वतन  की मेरे 
सारे धर्मों की मोहब्बत को बनाए रखना
ꣻ    
ज़ात के नाम पे दंगों को कराने वालो
बाज़ आ जाओ मोहब्बत को मिटाने वालो
धर्म के नाम पे यूँ आग लगाने वालो
ख़ुद के दामन को भी जलने से बचाए रखना
ꣻ  
क्यूँ मिटाने में लगे हो ये चमन की ख़ुश्बू
ख़ून से सींचा तो पाई है वतन की ख़ुश्बू 
हर तरफ जलने लगा है ये वतन का आंचल 
लाज इस मां की मेरे यार बचाए रखना 
ꣻ   
सारी दुनियां में मोहब्बत की ज़बाँ हो जाए 
सारी दुनियां में ख़ुशी अम्न--अमाँ हो जाए
भूल कर भी न कोई भूल हो हरगिज़ हमसे 
हम पे भी नज़रे करम अपनी बनाए रखना 
ꣻ  
दिल से नफ़रत की दीवारों को गिराना होगा 
दोस्त बनकर के गले सबको लगाना होगा 
जिसकी ख़ुश्बू से महक जाए सभी का आँगन 
ऐसे फूलों को भी गुलशन में  लगाए रखना
ꣻ 
salim raza rewa  #salimazarewa

A 20 GAZLEN SALEEM RAZA REWA

  🅰️ 20 ग़ज़लें  01 मुज्तस मुसम्मन मख़बून महज़ूफ़ मस्कन मुफ़ाइलुन फ़इलातुन मुफ़ाइलुन फ़ेलुन  1212 1122 1212 22 ——— ——— —— —— ———- हर एक शय से ज़ि...