Wednesday, November 22, 2023

जिस तरह से फूलों की डालियाँ महकती हैं Salim Raza rewa

 


जिस तरह से फूलों की डालियाँ महकती हैं 

मेरे घर के आँगन में बेटियाँ महकती हैं 

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फूल सा बदन तेरा इस क़दर मोअ'त्तर है 

ख़्वाब में भी छू लूँ तो उँगलियाँ महकती हैं 

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माँ ने जो खिलाई थीं अपने प्यारे हाथों से 

ज़ेहन में अभी तक वो रोटियाँ महकती हैं 

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उम्र सारी गुज़री हो जिस की हक़-परस्ती में 

उस की तो क़यामत तक नेकियाँ महकती हैं 

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हो गई 'रज़ा' रुख़्सत घर से बेटियाँ लेकिन 

अब तलक निगाहों में डोलियाँ महकती हैं 

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جس طرح سے پھولوں کی ڈالیاں مہکتی ہیں 

میرے گھر کے آنگن میں بیٹیاں مہکتی ہیں 

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پھول سا بدن تیرا اس قدر معطر ہے 

خواب میں بھی چھو لوں تو انگلیاں مہکتی ہیں 

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ماں نے جو کھلائی تھیں اپنے پیارے ہاتھوں سے 

ذہن میں ابھی تک وہ روٹیاں مہکتی ہیں 

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عمر ساری گزری ہو جس کی حق پرستی میں 

اس کی تو قیامت تک نیکیاں مہکتی ہیں 

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ہو گئی رضاؔ رخصت گھر سے بیٹیاں لیکن 

اب تلک نگاہوں میں ڈولیاں مہکتی ہیں

……………💕……………

फ़ाइलुन मुफ़ाईलुन फ़ाइलुन मुफ़ाईलुन

212 1222 212 1222

बहरे हज़ज मुसम्मन अशतर मक़्फूफ़ मक़्बूज़ मुख़न्नक सालिम

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Gazal by salim raza rewa 06/19

मोअ'त्तर-ख़ुश्बूदार,सुगंधित, ज़ेहन-दिमाग़, हक़-परस्ती-सच्चाई का काम करते हुए,

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