Sunday, November 19, 2023

बिन तेरे रात गुज़र जाए बड़ी मुश्किल है- सलीम 'रज़ा'




बि तेरे रात गुज़र जाए बड़ी मुश्किल है
और फिर याद भी  आए बड़ी मुश्किल है

खोल कर बैठे हैं छत पर वो हसीं ज़ुल्फ़ों को
ऐसे में धूप निकल आए बड़ी मुश्किल है


मेरे महबूब का हो ज़िक्र अगर महफ़िल में
और फिर आँख  भर आए बड़ी मुश्किल है

वो हंसीं वक़्त जो मिल करके गुज़ारा था कभी
फिर वही लौट के  जाए बड़ी मुश्किल है

वो सदाक़त वो सख़ावत वो मोहब्बत लेकर
फिर कोई आप सा  जाए बड़ी मुश्किल है


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                       सली रज़ा रीवा

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A 20 GAZLEN SALEEM RAZA REWA

  🅰️ 20 ग़ज़लें  01 मुज्तस मुसम्मन मख़बून महज़ूफ़ मस्कन मुफ़ाइलुन फ़इलातुन मुफ़ाइलुन फ़ेलुन  1212 1122 1212 22 ——— ——— —— —— ———- हर एक शय से ज़ि...