Saturday, November 18, 2023

दर - दर फिरते लोगों को दर दे मौला– SALIMRAZA REWA

दर - दर फिरते लोगों को दर दे मौला 
बंजारों   को  भी  अपना  घर दे मौला 
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जो  औरों  की खुशियों  में खुश होते हैं
उनका भी घर खुशियों से भर दे मौला
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दूर  गगन  में उड़ना चाहूँ  चिड़ियों सा
मुझ को भी वो ताक़त  वो पर दे मौला
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ज़ुल्मो सितम हो ख़त्म न हो दहशतगर्दी
अम्नो अमां  की यूं बारिश कर दे  मौला
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भूके प्यासे मुफ़लिस और  यतीम हैं जो
नज़रे इनायत उन  पर भी कर दे मौला
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जो करते हैं  खून  ख़राबा जुल्मो सितम
उन  के भी  दिल में थोडा  डर दे मौला

        10.10.2015 सलीम रजा
                  

Friday, November 17, 2023

रुखसार जहाँ में कोई ऐसा नही होगा – SALIMRAZA REWA

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रुखसार जहाँ  में  कोई  ऐसा  नही होगा 
उनसे भी हसीं चाँद का चेहरा नही होगा
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जो मेरे दिलो जान को करता है मुअत्तर
गुलशन में कोई फूल भी ऐसा नही होगा
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तुम चाँद सितारों की चमक में रहे उलझे
तुमने  मेरे    महबूब  को देखा नही होगा
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है कौन जिसे नूरे मुजस्सिम  कहा जाए
कोई भी तो सरकार के जैसा नही होगा
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अल्लाह के महबूब पे  है  ख़त्म  नबूबत
अब कोई नबी दुनिया में पैदा नही होगा
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है  कौन  भला  सर पे  बलाएं  जो ले तेरी
कोई भी तो मां  बाप  के जैसा नही होगा
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दिल खोल के करता है मुहब्बत जो किसी से
दुनिया  मे  रज़ा वो कभी रुसवा नही होगा
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 221   1221   1221    122





Thursday, November 16, 2023

गुलशन में फूल तो है मगर ताज़गी नहीं 2 - सलीम रज़ा रीवा

गुलशन में जैसे फूल नहीं ताज़गी नहीं

तेरे बग़ैर  ज़िन्दगी ये ज़िन्दगी  नहीं


ये और बात है कि वो मिलते नहीं मगर

किसने कहा कि उनसे मेरी दोस्ती नहीं

 

तेरे ही दम से खुशियां है घर बार में मेरे

होता जो तू नहीं तो ये होती ख़ुशी नहीं

 

ख़ून--जिगर से मैंने सवाँरी है हर ग़ज़ल

मेरेसुख़न  का  रंग कोई  काग़ज़ी नहीं

 

मैं खुद  गुनाहगार  हूँ अपनी  निगाह  में

उसके ख़ुलूस--इश्क़ में कोई कमी नहीं

 

छूके दरिचा लौट गया मौसम-बहार.

लगता  है अब नसीब मे मेरे खुशी नहीं.

 

तुझसे 'रज़ा' के शेरों में संदल सी है महक

मुमकिन  तेरे  बग़ैर  मेरी  शायरी  नहीं

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 ................... gazal by salim raza rew
    221    2121    1221    212
मफ़ऊल फ़ाइलात मुफ़ाईलु फ़ाइलुन




Wednesday, November 15, 2023

मैं मनाऊँ तो भला कैसे मनाऊँ उसको Saleem raza rewa

चौदवीं  शब  को सरे बाम वो जब आता है

माह-ए-कामिल भी उसे देख के शरमाता है 

چودویں شب کو سرے بام جب وہ آتا ہے 

ماہِ کامِل بھی اسے دیجھ کہ شرماتا ہے

मैं मनाऊँ तो भला  कैसे मनाऊँ उसको

मेरा महबूब तो बच्चो सा मचल जाता है

میں مناؤں تو بھلا کیسے مناؤں اُسکو

میرا محبُوب تو بچوں سا مچل جاتا ہے

मैं उसे चाँद कहूँ, फूल कहूँ, या  शबनम

उसका ही चेहरा हर एक शय पे नज़र आता है

میں اُسے چاند کہوں پھول کہوں یا شبنم

اُسکا ہی چہرہ ہر اِک شئے  پہ نظر آتا ہے

दूर हो जाती है दिनभर की थकन पल भर में

जब मेरा लख़्त-ए-जिगर आके लिपट जाता है

دور ہو جاتی ہے  دِنبھر کی تھکن پل بھر مین

جبل میرا لختِ جگر آکے لپٹ جاتا ہے

जब तसव्वुर में तेरा चेहरा  बना लेता हूँ

तब कहीं जाके मेरे दिल को सुकूं आता है 

جب تصّور میں تیرا چہرہ بنا لیتا ہوں

تب کہیں جاکے میرے دِل کو سکوں آتا ہے

कितने अल्फाज़ मचलते हैं संवरने के लिए

जब ख़्यालों में कोई  शेर उभर आता है

کتنے الفاظ مچلتے ہیں سنورنے کے لئے

جب خیالوں میں کوئی شیرِ اُبھر آتا ہے

रक़्स करती हैं बहारें भी तेरे आने से

हुस्न मौसम का ज़रा और निखर जाता है

رقص کرتی ہیں بہاریں بھی تیرے آنے سے

حُسن مؤسم کا ذرا اور نِکھر جاتا ہے

जब उठा लेती है माँ हाथ दुआओं के लिए

रास्ते से मेरे तूफ़ान भी हट जाता है

جب اُٹھا لیتی ہے ماں ہاتھ دعاؤں کے لئے

راستے سے میرے طوفان بھی ہٹ جاتا ہے


फ़ाइलातुन फ़यलातुन फ़यलातुन फ़ेलुन 4/2019

2122 1122 1122 22

बहरे रमल मुसम्मन मख़बून महज़ूफ़    

Monday, November 13, 2023

तेरा हसना ग़ज़ब मुस्कुराना ग़ज़ब SALIM RAZA REWA

तेरा हसना ग़ज़ब मुस्कुराना ग़ज़ब  तेरा चिलमन में चेहरा छुपाना ग़ज़ब 

देखकर क्यूँ न दिल गुनगुनाने लगे तेरी हर इक अदा शायराना ग़ज़ब
 
डालियाँ झूमकर गुनगुनाने लगीं हर कली देखकर मुस्कराने लगीं
दिल धड़कने लगा है हर-एक फूल का तेरा वन-ठन के गुलशन में आना ग़ज़ब
 
उफ़ ये  लाली ये शोख़ी ये चंचल नयन फूल से भी है नाज़ुक ये तेरा बदन
इक तो तेरी अदाएं हैं क़ातिल बड़ी उसपे मौसम भी है आशिक़ाना ग़ज़ब
 
इस क़दर नूर रुख़ से चमकने लगा हुस्न भी देखकर हाथ मलने लगा         
चाल नागन सी घायल करे है जिया उस पे मुखड़ा तेरा है सुहाना ग़ज़ब
 
रब से मांगा था जो वो ख़ुशी मिल गई आप क्या मिल गए ज़िंदगी मिल गई
खिल उठे हैं 'रज़ाफूल ख़ुशियों के अब मिल गया प्यार का इक ख़ज़ाना ग़ज़ब

_________________________ Jan20

अपने हर ग़म को वो अश्कों में SALIM RAZA REWA


अपने हर ग़म को वो अश्कों में पिरो लेती है

बेटी मुफ़लिस की खुले घर मे भी सो लेती है

💕

तब मुझे दर्द का एहसास बहुत होता है                 

जब मेरी लख़्त-ए-जिगर आंख भिगो लेती है      

 💕

मैं अकेला नहीं रोता हूँ शब-ए-हिज्राँ में 

मेरी तन्हाई मेरे साथ में रो लेती है 

💕

अपने दुःख दर्द को मैला नहीं होने देती

अपनी आँखों से वो हर दर्द को धो लेती है

💕

जब भी ख़ुश होके निकलता हूँ ‘रज़ा’ मैं घर से 

मेरी मायूसी मेरे साथ में हो लेती है

………………💕…………………

اپنے ہر غم کو وہ عشقوں میں  پِرو لیتی ہے

بیٹی مُفلِس کی کُھلے گھر میں بھی سو لیتی ہے

💕

تب مجھے درد کا احساس بہت ہوتا ہے 

جب میری لختِ جگر آنکھ بھِگو لیتی ہے

💕

میں اکیلا نہیں روتا ہوں شبِ ہجراں میں 

میری تنہائی میرے ساتھ میں رو لیتی ہے

💕

اپن ے دُکھ  درد کو میلہ نہیں ہونے دیتی                        

اپنی آنکھوں سے وہ ہر درد کو دھو لیتی ہے

💕

جب بھی خوش ہو کہ نکلتا ہوں رضآ میں گھر سے

میری  مایوسی میرے ساتھ  مین  ہو لیتی ہے 

——————💕——————- 

            10/10/2019

फ़ाइलातुन फ़यलातुन फ़यलातुन फ़ेलुन

2122 1122 1122 22

बहरे रमल मुसम्मन मख़बून महज़ूफ़

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अश्कों में पिरो - आंसुओं में गुथना,मुफ़लिस- ग़रीब,शब-ए-हिज्राँ में-विरह की रात

Sunday, November 12, 2023

ख़ुश्बू नहीं घुली है पवन में अभी तलक -सलीम रज़ा


ख़ुश्बू  नहीं घुली है पवन में अभी तलक

क्या मौसम-ए-ख़िज़ाँ है चमन में अभी तलक क्या


मेरे सुनहरे ख़ाब जलाकर हैं खुश बहुत

करते हैं शोले रक़्स कफ़न में अभी तलक


इस रोशनी ने हमको चबाया है इस क़दर

दाँतों के हैं निशान बदन में अभी तलक


हर धर्म के गुलो से महकता है ये चमन

ख़ुश्बू बसी है मेरे वतन में अभी तलक


अब तो बदन में पहली सी ताक़त नहीं रही

लज़्ज़त मगर वही है सुख़न में अभी तलक

…………………………..

خوشبو نہیں گُھلی ہے پون میں ابھی تلک

کیا موسمِ خِزاں ہے چمن میں ابھی تلک

 

میرے سنہرے خواب جلاکر میں خوش بہت

کرتے ہیں شعلےً رقش کفن میں ابھی تلک


اِس رَوشنی نے ہمکو چبایا ہے اِس قدر

دانتوں کے ہیں نِشان بدن میں ابھی تلک


ہر دھرم کے گلوں سے مہکتا ہے یہ چمن

خوشبو بسی ہے میرے وطن میں ابھی تلک


اب  تو  بدن میں پہلی سی طاقت نہی رہی

لذّت مگر وہی ہے سُخن میں ابھی تلک

………………………..


—— salim raza rewa 

मफ़ऊल फ़ाइलात मुफ़ाईलु फ़ाइलुन

221 2121 1221 212

बहरे मज़ारिअ मुसमन अख़रब मकफूफ़ मकफूफ़ महज़ूफ़

A 20 GAZLEN SALEEM RAZA REWA

  🅰️ 20 ग़ज़लें  01 मुज्तस मुसम्मन मख़बून महज़ूफ़ मस्कन मुफ़ाइलुन फ़इलातुन मुफ़ाइलुन फ़ेलुन  1212 1122 1212 22 ——— ——— —— —— ———- हर एक शय से ज़ि...