Friday, November 3, 2023

बूढ़ी आँखों में भी कितने ख़्वाब SALEEM RAZA REWA


बूढ़ी आँखों में भी कितने ख़्वाब सजाए बैठे हैं

जाने कब होंगे पूरे, उम्मीद लगाए बैठे हैं

 

दिल की बात ज़ुबाँ तक आए ये ना मुमकिन लगता है

ख़ामोशी में जाने कितने राज़ छुपाए बैठे हैं


किसको दिल का दर्द बताएँ किसको हाल सुनाएँ हम

ख़ुद ही अपनी मजबूरी का बोझ उठाये बैठे हैं


वो भी बदल जाएँगे इक दिन ऐसी हमें उम्मीद न थी

जिनके प्यार में हम अपना घरबार लुटाए बैठे हैं


कौन है अपना कौन पराया कैसे ‘रज़ा’ पहचानोगे

चेहरों पर तो फ़र्ज़ी चेहरे लोग लगाए बैठे  हैं


Thursday, November 2, 2023

जिनके होटों पर उल्फ़त की सच्चाई मुस्काती है SALIM RAZA REWA


जिनके होटों पर उल्फ़त की  सच्चाई मुस्काती है

उनके आँगन में ख़ुशियों की रा’नाई मुस्काती है


उनकी ख़ुश्बू से ख़ुश्बू है गुलशन के सब फूलों में

उनको छूकर आने वाली पुरवाई मुस्काती है


जिनके खिलने से दुनिया का हर गुलशन आबाद हुआ

उन कलिओं की ख़ुशी सजाकर शहनाई मुस्काती है


जब मेहनत के छाँव तले ये बोझिल मन सुस्ताता है

तब बाँहों में आकर पगली अंगड़ाई मुस्काती है


जिसके ख़्यालों के ‘शॉवर’ में मन बेचैन नहाता है 

उसकी खुश्बू पाकर दिल की अँगनाई मुस्काती है


यादें घायल सांसें बोझिल जीना है दुश्वार मेरा

मेरी हालत देख के अब तो तन्हाई मुस्काती है

…………………………………………


جنکے ہونٹھو پراُلفت کی سچائی مئسکاتی ہے

اُنکے آنگن میں خوشیوں کی رعنائی مُسکاتی ہے


اُنکی خوشبو سے خوشبو ہے گالشن کے  سب پھولوں مین

اُنکو  چھوکر  آنے  والی  پُروائی  مُسکاتی ہے


جسکے کھِلنے سے دُنیا کا ہر گلشن آباد ہوا

ان کلیوم کی خوشی سجاکر شہنائی مسکتی ہے


جب مہنت کے چھاؤں تلے یہ بوجھل مین سستاتا ہے 

تب بانہوںمیں آکر پگلی انگڑائی مسکاتی ہے


جسکے خیالوں کے شاور میں  بیچیںن نہاتا ہے

اُسکی خوشبو پاکر  دِل کی انگنائی مسکاتی ہے


یادیں گھائل سانسیں بوجھل جینا ہے دُشوار میرا

میری حالت دیکھ کے ابپ تو تنہائی مُسکاتی ہے

 ……………………………………………


 

Wednesday, November 1, 2023

सुख उसका दुख उसका है - SALIM RAZA REWA




सुख उसका है दुख उसका है तो काहे का रोना है
दौलत उसकी शोहरत उसकी क्या पाना क्या खोना है
 

चाँद-सितारे उससे रौशन फूल में उससे खुशबू है
ज़र्रे-ज़र्रे में वो शामिल वो चांदी वो सोना है

सारी दुनिया का वो मालिक हर शय उसके क़ब्ज़े में
उसके आगे सब कुछ फीका क्या जादू क्या टोना है
 

गॉड ख़ुदा भगवान कहो या ईश्वर अल्लाह उसे कहो
वो  ख़ालिक है वो मालिक है उसका कोना-कोना है 

खुशिओं के वो मोती भर दे या ग़म की बरसात करे
वो मालिक है सारे जग का जो चाहे सो होना है

इक रस्ता जो बंद किया तो दस रस्ते वो खोलेगा
उसपे भरोसा रख तू प्यारे जो लिक्खा वो होना है 


साँसों पे उसका है पहरा धड़कन उसके दम से है
जिस्‍म 'रज़ा' है मिट्टी का तो क्या रोना क्या धोना है 


Tuesday, October 31, 2023

हद से गुज़र गई हैं ख़ताएँ तो क्या करें SALEEM RAZA REWA

 

हद से गुज़र गई हैं ख़ताएँ तो क्या करें
ऐसे में उनसे दूर ना जाएँ तो क्या करें
 
सकी अना ने सारे त’अल्लुक़ मिटा दिए
उस बे-वफ़ा को भूल  जाएँ तो क्या करें
 
मीना भी तू है मय भी तू साक़ी भी जाम भी
आँखों में तेरी डूब  जाएँ तो क्या करें
 
श्ती को डूबने से बचाया बहुत मगर
हो जाएं गर ख़िलाफ़ हवाएँ तो क्या करें
 
खुशियों का इंतज़ार 'रज़ा' मुद्दतों से है
पीछा अगर  छोड़ें बलाएँ तो क्या करें

Monday, October 30, 2023

रुख़ से जो मेरे यार ने पर्दा हटा दिया

रुख़ से जो मेरे यार ने पर्दा हटा दिया   

महफ़िल में हुस्न वालों को पागल बना दिया
 
उसकी  हर एक अदा पे तो क़ुर्बान जाइए        
मौसम को जिसने छू के नशीला बना दिया
 
आई बाहर झूम के ख़ुश्बू बिखेरती 
ज़ुल्फें उड़ा के कौन सा जादू चला दिया 
 
महफ़िल में होश वाले भी मदहोश हो गए
ये क्या किया की सबको  दिवाना बना दिया

देखा जो उसने प्यार से बस इक नज़र 'रज़ा
दिल में हमारे प्यार का गुलशन खिला दिया
                     सलीम रज़ा रीवा
  _________________________ Nov-1
 

चमक रही है फ़ज़ाओं में चांदनी अब तक SALIM RAZA REWA


चमक रही है फ़ज़ाओं में चांदनी अब तक

तुम्हारे दम से ही रौशन है रौशनी अब तक


उमड़ रहा है समुंदर मेरे ख़्यालों का 

टपक रही है निगाहों से रौशनी अब तक


मेरे बदन का लहू ख़ुश्क हो गया होता 

अगर न होती मेरे जिस्म में नमी अब तक


उछल-उछल के ख़ुशी नाचती थी आँगन में 

खटक रही है उसी बात की कमी अब तक


कि जिसके हुस्न का चर्चा था सारे आलम में 

भटक रही है वो गालियों में बावरी अब तक


हसीन जाल मोहब्बत का  फेंक कर मुझ पर

वो कर रहा था मेरे साथ दिल लगी अब तक


तुम्हारी याद से रौशन है प्यार की गालियाँ 

तुम्हारे दम से मुनव्वर है ज़िंदगी अब तक

…………………❣️………………..

چم رہی ہے فضاؤں میں چاندنی اب تک

تمہارے دم سے ہی روشن ہے روشنی ابتک 


اُمنڈ رہاہے سمندر میرے خیالوں کا

تپکرہی ہے نگاہوں سے روشنی اب تک   


میرے بدن کا لہو خُشک ہو گیا ہوتا

اگر نہ ہوتی میرے  جِسم میں نمی اب تک


اُچھال اُچھل کے خوشی ناچتی تھی آنگن میں

کھٹک رہی ہے اُسی بات کی کمیں اب تک


 کِ جسکے حُسن کا چرچا تھا سارے عالم میں

بھٹک رہی ہے وہ گلیوں میں بابری اب تک


 حسین جل محبّت کا  پھینک  کر  مُجھ پر

وہ کر رہا تھا میرے ساتھ دِلّگی  اب تک 


تمہاری یاد سے روشن ہے  پیار کی گلیاں

تمہارے دم سے مُنوّر ہے زندگی اب تک

…………………❣️………………..

मुफ़ाइलुन फ़यलातुन मुफ़ाइलुन फ़ेलुन

1212 1122 1212 22/112

बहरे मुजतस मुसमन मख़बून महज़ूफ

…………………❣️………………..


_________________________ Oct-19  

Sunday, October 29, 2023

अपनी ज़ुल्फों को धो रही है शब - ग़ज़ल सलीम रज़ा

 
अपनी ज़ुल्फों को धो रही है शब 
और ख़ुश्बू निचो रही है शब 
💕
मेरे ख़ाबों की ओढ़कर चादर
मेरे बिस्तर पे सो रही है शब 
💕
अब अंधेरों से जंग की ख़ातिर
कुछ चारागों को बो रही है शब
💕
सुब्ह-ए-नौ के क़रीब आते ही
अपना अस्तित्व खो रही है शब
💕
दिन के सदमों को सह रहा है दिन
रात का बोझ ढो रही है शब
💕
चाँद है मुंतज़िर चकोरी का 
आ भी जाओ कि हो रही है शब
…………..💕…………..
اپنی زلفوں کو دھو رہی ہے شب
اور خوشبو نِچو رہی ہے شب
💕
میرے خوابوں کی اوڑھ کر چادر
میرے بستر پہ سو رہی ہے شب
💕
اب اندھیروں سے جنگ کی خاطر
کچھ چراغوں کو بو رہی ہے شب
💕
صبح نو کے قریب آتے ہی
اپنا استتو کھو رہی ہے شب
💕
دن کے صدموں کوسہ رہا ہے دن
رات کا بوجھ دھو رہی ہے شب
💕
چاند ہے منتظر چکوری کا
آ بھی جاؤ کہ ہو رہی ہے شب
…………..💕…………..

Gazal by Salim Raza Rewa

A 20 GAZLEN SALEEM RAZA REWA

  🅰️ 20 ग़ज़लें  01 मुज्तस मुसम्मन मख़बून महज़ूफ़ मस्कन मुफ़ाइलुन फ़इलातुन मुफ़ाइलुन फ़ेलुन  1212 1122 1212 22 ——— ——— —— —— ———- हर एक शय से ज़ि...