आख़िरी बार गले तुझ को लगाता जाऊँ
जाने गुजरेंगे भला कैसे अब तुम्हारे बिन
अब इसी याद के तूफ़ां में समाता जाऊँ
सुरमई शाम तो ख़ुश रंग सवेरा देखा
ऐसे लमहात को आँखों में सजाता जाऊँ
तेरी हर एक अदा दिल में बसा रक्खी है
अपनी साँसों में तेरी साँस मिलाता जाऊँ
आसी हूँ ख़बर मेरी महबूब ए ख़ुदा लेना
मुझको भी मदीने में इक बार बुला लेना
🎋
उस गर्मीए महशर से सरकार बचा लेना
मुझकॊ भी मेरे आक़ा कमली में छुपा लेना
🎋
अल्लाह के महबूब का जब ज़िक्र करे कोई
उस वक़्त दुरूद अपने होंटों पे सजा लेना
🎋
पहुचूँगा जब मदीना ऐ मौत चली आना
जब सर हो दरे आक़ा उस वक़्त उठा लेना
🎋
फरियाद यही मेरी सरकारे दो आलम है
ब वक़्त ए नज़ा आक़ा रौज़े पे बुला लेना
🎋
चाहूँ मैं दर ए आक़ा की सिर्फ गुलामी को
दुनिया की शहँशाही से मुझको है क्या लेना
🎋
अल्लाह 'रज़ा' पर भी हो नज़रें करम तेरी
सदक़े में मुहम्मद के हर ग़म से बचा लेना
🎋
जिस वक़्त 'रज़ा' पहुंचो सरकार के रौज़े पर
तुम सबकी तरह बिगड़ी क़िस्मत को बना लेना
___________________________
221 1222 221 1222
🅰️ 20 ग़ज़लें 01 मुज्तस मुसम्मन मख़बून महज़ूफ़ मस्कन मुफ़ाइलुन फ़इलातुन मुफ़ाइलुन फ़ेलुन 1212 1122 1212 22 ——— ——— —— —— ———- हर एक शय से ज़ि...