Saturday, November 11, 2023

मेरी आँखों में हुआ जब से ठिकाना तेरा Salim Raza rewa

 मेरी आँखों में हुआ जब से ठिकाना तेरा 

लोग कहते हैं सरे आम दिवाना तेरा

रोज़ मिलने की तसल्ली न दिया कर मुझको 
जान ले लेगा किसी रोज़ बहाना तेरा

छीन लेगा ये मेरा होश यक़ीनन इक दिन 
यूँ ख़यालों में शब--रोज़ का आना तेरा 

होश वालों को कहीं फिर न बना दे  पागल
महफिले हुस्न में बन-ठन के यूँ आना तेरा  

भूल पाना बड़ा मुश्किल है वो दिलकश मंज़र
मुस्कुरा कर लब--नाज़ुक को दबाना तेरा

 _________________________ Sep/19

Thursday, November 9, 2023

जनाब-ए-‘मीर’ के लहजे की नाज़ुकी कि तरह Salim Raza rewa


जनाब-ए-‘मीर’ के लहजे की नाज़ुकी कि तरह

तुम्हारे लब हैं गुलाबों की पंखुड़ी की तरह

💕  

शगुफ़्ता चेहरा ये  ज़ुल्फ़ें ये नरगिसी आँखे 

तेरा हसीन तसव्वुर है शायरी की तरह 

💕

महक रहा है ज़माने का हर चमन जिनसे 

वो बेटियां हैं उन्हें खिलने दो कली की तरह

💕

तमाम उम्र समझता  रहा  जिन्हे अपना

गया जो वक़्त गए वो  भी अज़नबी की तरह

💕

 अगर ऐ जाने तमन्ना तू छत पे आ जाए 

अंधेरी रात भी चमकेगी चांदनी की तरह

💕

यूँ ही न बज़्म से तारीकियाँ हुईं ग़ायब

कोई न कोई तो आया है रोशनी की तरह

💕

यही ख़ुदा से दुआ मांगता हूँ रातो दिन

कि मै भी जी लूं ज़माने में आदमी तरह


جنابِ مٓیر کے لہجے کی نازوکی کی طرح 

تمہارے لب ہیں گلابوں کی پنکھڑی کی طرح

💕

شگفتہ چہرہ یہ زلفیں یہ نرگِسی آنکھیں

تیرا حسین تصوّر ہے شاعری کی طرح

💕

مہک رہا ہے زمانے کا ہر چین جنسی

وہ بیٹیاں ہیں اُنہیں کھِلنے دو کلی کی طرح

💕

تمام عمر سمجھتا رہا جسے اپنا

گیا جو وقت گئے وہ بھی اجنبی بنکر

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اگر اے جانے تمنا تو چھتیں آجائے

اندھیری رات بھی چمکے گی چاندنی کی طرف

💕

یوں ہی نہ بزم سے تاریکیاں ہوئی غائب

کوئی نہ کوئی تو آیا ہے روشنی کی طرح

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یہی خدا سے دعا مانگتا ہو رات و دن 

 ی لوں زمانے میں آدمی کی طرح کی میں بھی ج

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10.18 Shayar- salim raza rewa 

मुफ़ाइलुन फ़यलातुन मुफ़ाइलुन फ़ेलुन

1212 1122 1212 22/112

बहरे मुजतस मुसमन मख़बून महज़ूफ

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नाज़ुकी-कोमलता, शगुफ़्ता-खिला हुआ, नरगिसी- नरगिस एक फूलजो आँखों की तरह होता है, तसव्वुर- ख़याल, तारीकियाँ- अंधेरा

Monday, November 6, 2023

कोशिशे बेकार होती जा रही हैं आज कल Salim Raza rewa

 कोशिशे बेकार होती जा रही हैं आज कल

मुश्किलें भरमार होती जा रही हैं आज कल

کوُششیں   بیکار ہوتی جا  رہی ہیں آج کل

مشکلیں۔ بھرمار ہوتو جا رہی ہیں آج کل

 चाहिए इनको हमेशा इक दवाई की ख़ुराक

ख़्वाहिशें बीमार होती जा रही हैं आज कल

چاہئے انکو ہمیشہ اِک دوائی کی خوراک

خواہشیں   بیمار ہوتی جا رہی ہیں آج کل

वो अदा-ए-दिल नशीं, क़ातिल नज़र हुस्न ओ हुनर

क़ाबिल-ए-इज़हार होती जा रही हैं आज कल

  وہ ادا  دِل نشیں قاتِل نظر حُسن وہ   ہُنَر

 قابِل اِظہار ہوتی جا رہی ہیں آج کل

   दौलत-ओ-शोहरत का लालच बढ़ गया है इस क़दर

ज़िंदगी आज़ार होती जा रही हैं आज कल

دولت و شُہرت کا لالچ بڈھ گیا ہے اس قدر

زندگی آزر ہوتی جا رہی ہے آج کل

ऐ 'रज़ा' कुछ लड़कियाँ जो घर की ज़ीनत थीं कभी

रौनक़-ए-बाज़ार होती जा रही हैं आज कल

اے رضاؔ کچھ لڑکیاں جو گھر کی زِینت تھیں کبھی 

رونقِ   بازار   ہوتی  جا  رہی   ہیں آج  کل

Saturday, November 4, 2023

मेरा महबूब जब संवरता है - salim raza rewa


मेरा महबूब जब सँवरता है
हुस्न रह-रह के हाथ मलता है


नूर चेहरे से यूँ छलकता है
जैसे सूरज कोई चमकता है


एक दफ़ा ख़्वाब में वो क्या आया
घर मेरा अब तलक महकता है


क्या कशिश है तुम्हारे आंखो में

देखकर तुमको दिल धड़कता है


अब तलक इन ज़’ईफ़ आँखों में

सिर्फ़  तेरा  बदन चमकता है

………………05/11/18………………..

नूर-आभाया रौशनी। एक दफ़ा-एक बार। 

ज़ईफ़- वृद्ध या कमज़ोर।


……………………………
میرا محبوب جب سنورتا ہے
 حُسن رہ رہ کے ہاتھ ملتا ہے
💕
نور چہرے سے یوں چھلکتا ہے
 جیسے سورج  کوئی چمکتا ہے
💕
ایک دفعہ خواب میں وہ کیا آ یا
گھر  میرا اب تلگ مہکتا ہے

💕

       کیا کشِش ہے تمہاری آنکھوں میں

    دیکھکر تمکو دلِ دھڑکتا ہے

💕

 اب تلک اِن ضعیف آنکھوں میں 

صرف تیرا بدن چمکتا ہے


……………………………

Shayar Salim raza rewa 

……………………बह्र…………………..


ख़फ़ीफ़ मुसद्दस मख़बून महज़ूफ़ मक़तू

2122  1212  22

फ़ाएलातुन मुफ़ाइलुन फ़ेलुन 

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Friday, November 3, 2023

बूढ़ी आँखों में भी कितने ख़्वाब SALEEM RAZA REWA


बूढ़ी आँखों में भी कितने ख़्वाब सजाए बैठे हैं

जाने कब होंगे पूरे, उम्मीद लगाए बैठे हैं

 

दिल की बात ज़ुबाँ तक आए ये ना मुमकिन लगता है

ख़ामोशी में जाने कितने राज़ छुपाए बैठे हैं


किसको दिल का दर्द बताएँ किसको हाल सुनाएँ हम

ख़ुद ही अपनी मजबूरी का बोझ उठाये बैठे हैं


वो भी बदल जाएँगे इक दिन ऐसी हमें उम्मीद न थी

जिनके प्यार में हम अपना घरबार लुटाए बैठे हैं


कौन है अपना कौन पराया कैसे ‘रज़ा’ पहचानोगे

चेहरों पर तो फ़र्ज़ी चेहरे लोग लगाए बैठे  हैं


Thursday, November 2, 2023

जिनके होटों पर उल्फ़त की सच्चाई मुस्काती है SALIM RAZA REWA


जिनके होटों पर उल्फ़त की  सच्चाई मुस्काती है

उनके आँगन में ख़ुशियों की रा’नाई मुस्काती है


उनकी ख़ुश्बू से ख़ुश्बू है गुलशन के सब फूलों में

उनको छूकर आने वाली पुरवाई मुस्काती है


जिनके खिलने से दुनिया का हर गुलशन आबाद हुआ

उन कलिओं की ख़ुशी सजाकर शहनाई मुस्काती है


जब मेहनत के छाँव तले ये बोझिल मन सुस्ताता है

तब बाँहों में आकर पगली अंगड़ाई मुस्काती है


जिसके ख़्यालों के ‘शॉवर’ में मन बेचैन नहाता है 

उसकी खुश्बू पाकर दिल की अँगनाई मुस्काती है


यादें घायल सांसें बोझिल जीना है दुश्वार मेरा

मेरी हालत देख के अब तो तन्हाई मुस्काती है

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جنکے ہونٹھو پراُلفت کی سچائی مئسکاتی ہے

اُنکے آنگن میں خوشیوں کی رعنائی مُسکاتی ہے


اُنکی خوشبو سے خوشبو ہے گالشن کے  سب پھولوں مین

اُنکو  چھوکر  آنے  والی  پُروائی  مُسکاتی ہے


جسکے کھِلنے سے دُنیا کا ہر گلشن آباد ہوا

ان کلیوم کی خوشی سجاکر شہنائی مسکتی ہے


جب مہنت کے چھاؤں تلے یہ بوجھل مین سستاتا ہے 

تب بانہوںمیں آکر پگلی انگڑائی مسکاتی ہے


جسکے خیالوں کے شاور میں  بیچیںن نہاتا ہے

اُسکی خوشبو پاکر  دِل کی انگنائی مسکاتی ہے


یادیں گھائل سانسیں بوجھل جینا ہے دُشوار میرا

میری حالت دیکھ کے ابپ تو تنہائی مُسکاتی ہے

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Wednesday, November 1, 2023

सुख उसका दुख उसका है - SALIM RAZA REWA




सुख उसका है दुख उसका है तो काहे का रोना है
दौलत उसकी शोहरत उसकी क्या पाना क्या खोना है
 

चाँद-सितारे उससे रौशन फूल में उससे खुशबू है
ज़र्रे-ज़र्रे में वो शामिल वो चांदी वो सोना है

सारी दुनिया का वो मालिक हर शय उसके क़ब्ज़े में
उसके आगे सब कुछ फीका क्या जादू क्या टोना है
 

गॉड ख़ुदा भगवान कहो या ईश्वर अल्लाह उसे कहो
वो  ख़ालिक है वो मालिक है उसका कोना-कोना है 

खुशिओं के वो मोती भर दे या ग़म की बरसात करे
वो मालिक है सारे जग का जो चाहे सो होना है

इक रस्ता जो बंद किया तो दस रस्ते वो खोलेगा
उसपे भरोसा रख तू प्यारे जो लिक्खा वो होना है 


साँसों पे उसका है पहरा धड़कन उसके दम से है
जिस्‍म 'रज़ा' है मिट्टी का तो क्या रोना क्या धोना है 


A 20 GAZLEN SALEEM RAZA REWA

  🅰️ 20 ग़ज़लें  01 मुज्तस मुसम्मन मख़बून महज़ूफ़ मस्कन मुफ़ाइलुन फ़इलातुन मुफ़ाइलुन फ़ेलुन  1212 1122 1212 22 ——— ——— —— —— ———- हर एक शय से ज़ि...