Friday, August 22, 2025

मेरे अपने कर रहे हैं, साथ मेरे छल बहुत salim raza reaa


मेरे  अपने  कर  रहे  हैं  साथ  मेरे  छल  बहुत

ये घुटन अब खाए जाती है मुझे हर पल बहुत


बज रही है कानों में अब तक तेरी पायल बहुत

तेरी  यादें  कर  रही  हैं ज़ेहन में हलचल बहुत


मुझको लगता था मुहब्बत का सफ़र आसाँ मगर

‘इश्क़ की  राहों  में  हैं  काँटों  भरे  जंगल  बहुत 


सादगी  ज़ेवर  है  उसका  और शरारत पैरहन

भोली-भाली उसकी सूरत है मगर चंचल बहुत


जिसके लहजे पर मुहब्बत की चढ़ी थी चाशनी

उसकी बातों ने किया जज़्बात को घायल बहुत


आज भी  उसकी  अदाओं  में वही हैं शोख़ियाँ

आज भी तकते हैं उसका, रास्ता पागल बहुत


अब मेरी तन्हाई भी हँसने लगी मुझ पर ‘रज़ा’

मेरी आदत ने किया है ज़ेहन को घायल बहुत

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میرے اپنے کر رہے ہیں، ساتھ میرے چل بہت

یہ گھٹن اب کھائے جاتی ہے مجھے ہر پل بہت

بج رہی ہے کانوں میں اب تک تیری پائل بہت

تیری یادیں کر رہی ہیں ذہن میں حلچل بہت

مج   کو  لگتا  تھا  محبت  کا  سفر  آساں  مگر

عشق کی راہوں میں ہیں کانٹوں بھرے جنگل بہت

سادگی زیور ہے اس کا، اور شرارت پیرہن

بھولی بھالی اس کی صورت، ہے مگر چنچل بہت

جس کے لہجے پر محبت کی چڑھی تھی چاشنی

اس کی باتوں نے کیا جذبات کو گھائل بہت


آج بھی اس کی اداؤں میں وہی ہیں شوخیاں

آج بھی تکتے ہیںاسکا راستہ ے پاگل بہت


اب میری تنہائی بھی ہنسنے لگی مجھ پر “رضا”

میری عادت نے کیا ہے ذہن کو گھائل بہت


——— 212221222122212——— 

ग़ज़ल की बह्र है:

रमल मुसम्मन महज़ूफ़

फ़ाएलातुन फ़ाएलातुन फ़ाएलातुन फ़ाइलुन

——salim raza rewa - سلیم رضا ریو ——


Wednesday, August 20, 2025

कुछ देर बैठने दे मुझे अपनी छाँव में - ग़ज़ल सलीम रज़ा

 




कुछ देर बैठने दे मुझे अपनी छाँव में

ताक़त नहीं बची है मेरे हाथ-पाँव में

मैं थक चुका हूँ शहर की इस भीड़-भाड़ से

पहले ही ठीक-ठाक था मैं अपने गाँव में

अब कुछ नहीं बचा है के बाज़ी लगाऊँ मैं 

सब कुछ तो तूने जीत लिया एक दाँव में

जी भर के मुझको नाच-नचा ले ऐ ज़िंदगी

अब मैंने घुँघरू बाँध लिये अपने पाँव में 

हुस्न--सदा को लील गया शोर का हुजूम

कोयल की मीठी बोली गई काँव-काँव में

औरों के घर बसाए हैं जिसने तमाम उम्र

वो ख़ुद ठिकाना ढूँढ रहा अपने गाँव में

मुझको ग़मों की धूप ने झुलसा दियारज़ा

पल-भर न चैन पाया मैं रिश्तों की छाँव में

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کچھ دیر بیٹھنے دے مجھے اپنی چھاؤں میں

طاقت نہیں بچی ہے میرے ہاتھ پاؤں میں

میں تھک چکا ہوں شہر کی اس بھیڑ بھاڑ سے

پہلے ہی ٹھیک ٹھاک تھا میں اپنے گاؤں میں

اب کچھ نہیں بچا ہے کہ  بازی لگاؤں میں

سب کچھ تو تُو نے جیت لیا ایک داؤ میں

جی بھر کے مجھ کو ناچ نچا لے اے زندگی

اب میں نے گھنگرو باندھ لیے اپنے پاؤں میں

حسنِ صدا کو لے گیا شور کا ہجوم

کوئل کی میٹھی بولی گئی کاؤں کاؤں میں

اوروں کے گھر بسائے ہیں جس نے تمام عمر

وہ خود ٹھکانہ ڈھونڈ رہا اپنے گاؤں میں

مجھ کو غموں کی دھوپ نے جھلسا دیا ‘رضا’

پل بھر نہ چین پایا میں رشتوں کی چھاؤں میں


-———221/2121/1221/ 212——-

(बह्र)

मुज़ारे मुसम्मन अख़रब मकफ़ूफ़ महज़ूफ़

मफ़ऊल फ़ाइलात मुफ़ाईलु फ़ाइलुन


15/07/25

हुस्न--सदा-ख़ूबसूरत आवाज़, हुजूम-भीड़ भाड़, ग़मों की धूप-परिशानिओं की तपिश,

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सलीम रज़ा रीवा 

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salim raza rewa -سلیم رضا ریو ا 


Sunday, August 10, 2025

मौसमों का इशारा है आ जाइए - सलीम रज़ा रीवा

 


मौसमों का इशारा है आ जाइए

धड़कनों ने पुकारा है आ जाइए


ऐसा मौक़ा दुबारा मिले या नहीं 

ख़ूबसूरत  नज़ारा  है  आ जाइए


जब से रुख़्सत हुए आप इस शहर से

बरकतों  का  ख़सारा  है  आ  जाइए


आपके ग़म से जीने का फ़न आ गया

हर सितम  अब  गवारा  है आ जाइए


तुमको अपना बनाने की ख़ातिर सनम

दिल  अभी  तक कुँवारा है, आ जाइए


अब तसव्वुर में भी कोई आता नहीं

दिल  मेरा  बे-सहारा है, आ जाइए


इश्क़  में  इस  क़दर  हो गया हूँ मगन 

अब तो सब कुछ तुम्हारा है आ जाइए


एक तुम्हारे लिए सब को ठुकरा चुका 

ये  ‘रज़ा’  अब  तुम्हारा  है  आ  जाइए


——- 212/212/212/212——-

रुख़्सत-रवाना, ख़सारा-नुक़सान, फ़न-कला, गवारा-मंज़ूर, तसव्वुर-कल्पना, 


موسموں کا اشارہ ہے آ جائیے

دھڑکنوں نے پکارا ہے آ جائیے


ایسا  موقع  دوبارہ  ملے یا  نہیں

خوبصورت نظارہ ہے آ جائیے


جب سے رخصت ہوئے آپ اس شہر سے

برکتوں   کا   خسارہ   ہے   آ   جا  ئیے


آپ کے غم سے جینے کا فن آ گیا

ہر  ستم  اب  گوارا  ہے  آ جائیے


تم  کو  اپنا  بنانے  کی  خاطر صنم

دل ابھی تک کنوارا ہے، آ جائیے


اب تصور میں بھی کوئی آتا نہیں

دل مرا بے سہارا ہے، آ جائیے


عشق میں اس قدر ہو گیا ہوں مگن

اب تو سب کچھ تمہارا ہے آ جائیے


ایک تمہارے لیے سب کو ٹھکرا چکا

یہ  رضا   اب  تمہارا  ہے  آ   جائی


10/07/25


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SALIM RAZA REWA 


मेरे अपने कर रहे हैं, साथ मेरे छल बहुत salim raza reaa

मेरे  अपने  कर  रहे  हैं  साथ  मेरे  छल  बहुत ये घुटन अब खाए जाती है मुझे हर पल बहुत बज रही है कानों में अब तक तेरी पायल बहुत तेरी  यादें  क...