मेरे अपने कर रहे हैं साथ मेरे छल बहुत
ये घुटन अब खाए जाती है मुझे हर पल बहुत
बज रही है कानों में अब तक तेरी पायल बहुत
तेरी यादें कर रही हैं ज़ेहन में हलचल बहुत
मुझको लगता था मुहब्बत का सफ़र आसाँ मगर
‘इश्क़ की राहों में हैं काँटों भरे जंगल बहुत
सादगी ज़ेवर है उसका और शरारत पैरहन
भोली-भाली उसकी सूरत है मगर चंचल बहुत
जिसके लहजे पर मुहब्बत की चढ़ी थी चाशनी
उसकी बातों ने किया जज़्बात को घायल बहुत
आज भी उसकी अदाओं में वही हैं शोख़ियाँ
आज भी तकते हैं उसका, रास्ता पागल बहुत
अब मेरी तन्हाई भी हँसने लगी मुझ पर ‘रज़ा’
मेरी आदत ने किया है ज़ेहन को घायल बहुत
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میرے اپنے کر رہے ہیں، ساتھ میرے چل بہت
یہ گھٹن اب کھائے جاتی ہے مجھے ہر پل بہت
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بج رہی ہے کانوں میں اب تک تیری پائل بہت
تیری یادیں کر رہی ہیں ذہن میں حلچل بہت
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مج کو لگتا تھا محبت کا سفر آساں مگر
عشق کی راہوں میں ہیں کانٹوں بھرے جنگل بہت
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سادگی زیور ہے اس کا، اور شرارت پیرہن
بھولی بھالی اس کی صورت، ہے مگر چنچل بہت
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جس کے لہجے پر محبت کی چڑھی تھی چاشنی
اس کی باتوں نے کیا جذبات کو گھائل بہت
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آج بھی اس کی اداؤں میں وہی ہیں شوخیاں
آج بھی تکتے ہیںاسکا راستہ ے پاگل بہت
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اب میری تنہائی بھی ہنسنے لگی مجھ پر “رضا”
میری عادت نے کیا ہے ذہن کو گھائل بہت
———— 2122–2122–2122–212————
ग़ज़ल की बह्र है:
रमल मुसम्मन महज़ूफ़
फ़ाएलातुन फ़ाएलातुन फ़ाएलातुन फ़ाइलुन
——salim raza rewa - سلیم رضا ریو ——

